अयोध्या मामला : फैसले से पहले सौहार्द की चिंता, सरकार और धर्मगुरुओं ने एक सुर में की शांति की अपील
अजय कुमार, लखनऊ
‘लम्हों ने खता की, सदियों ने सजा पाई।’ अयोध्या के करीब पांच सौ साल पुराने भगवान राम की जन्म भूमि बनाम बाबरी मस्जिद विवाद के बारे में उक्त पंक्तियों को बार-बार दोहराया जा सकता है, लेकिन देर से ही सही अब यह उम्मीद बंधने लगी है कि मोदी सरकार यानी भारतीय जनता पार्टी द्वारा अपने घोषणा पत्र में किए वायदे को पूरा करने की गंभीर इच्छा शक्ति और सुप्रीम कोर्ट के सख्त रूख के बाद अयोध्या विवाद पर फैसले की घड़ी आ गई है। अगर ऐसा हुआ तो सदियों पुराना अयोध्या विवाद हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगा। अयोध्या विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के 12 वर्षो के बाद 16 अक्टूबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो चुकी है। फैसला रिजर्व कर लिया गया है। करीब एक दस दिनों के भीतर अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों वाली बैंच का अंतिम(संभवता) फैसला आ जाएगा। माहौल न बिगड़े, सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सभी पक्ष सहज स्वीकार करें इसको लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित तमाम धर्मगुरूओं के द्वारा ही नहीं अयोध्या विवाद का मुकदमा लड़ रहे तमाम पक्षकार भी यही चाहते हैं कि कोर्ट के फैसले का सम्मान हो।
अयोध्या मामले पर फैसला आने से पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सभी पक्ष से आपसी भाईचारे और शांति की अपील की। संघ ने ट्वीट कर कहा, उच्चतम न्यायालय के आने वाले निर्णय का सभी को खुले दिल से स्वागत करना चाहिए। फैसला चाहे जो हो सौहार्द बनाए रखना सभी की जिम्मेदारी है। पीएम मोदी ने ‘मन की बात’ में कोर्ट के फैसले का सम्मान करने और सौहार्द बनाए रखने की बात कही है। सीएम योगी ने भी सौहार्द बनाएं रखने की अपील करते हुए अपने मंत्रियों से कहा है कि वह अपने प्रभार वाले जिलों में 12 नवंबर के पहले दौरा कर लें। शांति समितियों,धर्मगुरूओं व सामाजिक कार्यकर्ताओं से संवाद कायम करें। साथ ही अनावश्यक बयानबजी से बचंें। ऐसा लगता है कि कोई भी पक्ष नहीं चाहता है कि 1985 में एक मुस्लिम महिला को गुजारा भत्ता देने या फिर बीते वर्ष तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कोर्ट के खिलाफ जो माहौल बना था,अनाप-शनाप टिप्पणी की गई थी, उसे पुनः दोहराया जाए।
अतीत के पन्नों को पलटा जाए तो इस हकीकत को अनदेखा नहीं किया जा सकता है कि अयोध्या विवाद को हल करने की एक तो कभी ईमानदारी से कोशिश नहीं हुई और अगर हुई भी तो विवाद सुलझाने के नाम पर इसको और उलझा दिया गया। आजादी से पहले मुगल सम्राट एवं अंगे्रजों ने तो आजादी के बाद हमारे सियासतदारों ने इस विवाद की चिंगारी से शोले भड़काने का कभी कोई मौका नहीं छोड़ा। नेताओं ने राजनैतिक रोटियां सेंकी तो तमाम दल इसके सहारे सत्ता की सीढ़ियां भी चढ़े। भाजपा तो जब भी अपना चुनावी घोषणा पत्र जारी करती थी तो अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बनाने का वादा जनता से करना नहीं भूलती थी। भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी द्वारा राम मंदिर निर्माण के लिए सोमनाथ से अयोध्या तक के लिए निकाली गई रथ यात्रा को कौन भूल सकता है। हालांकि इस यात्रा की जड़ें कुछ साल पहले रखी गई थीं। अक्टूबर 1984 में वीएचपी ने अयोध्या में मंदिर के लिए रामजन्म भूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया। 8 अक्टूबर 1984 को अयोध्या से लखनऊ की 130 किलोमीटर की यात्रा से आंदोलन शुरू हुआ। 1986 में वीएचपी ने मंदिर आंदोलन को बड़े पैमाने पर शुरू कर दिया। 1989 में वीएचपी ने विवादित स्थल के नजदीक ही राम मंदिर की नींव रख दी। 1989 में वीएचपी के आंदोलन को तब बड़ा मंच मिला जब बीजेपी उसके साथ खड़ी हो गई।
जून 1989 में बीजेपी ने पालमपुर प्रस्ताव में मंदिर आंदोलन के पक्ष में खड़े होने का फैसला किया। बीजेपी के कूदने के बावजूद तब तक वीएचपी ही आंदोलन की अगुवा थी। 1989 के आम चुनाव से ठीक पहले राजीव गांधी सरकार ने वीएचपी को मंदिर के लिए अयोध्या में 9 नवंबर को शिलान्यास की इजाजत दे दी। इसे वीएचपी की बड़ी सफलता माना गया लेकिन माहौल ऐसा बन गया था कि इस दौर में देश ने सांप्रदायिक दंगों का सबसे भयंकर दौर देखा। 22 से 24 नवंबर 1989 को आम चुनाव से पहले हिंदी प्रदेशों में दंगों में करीब 800 लोगों की जान चली गई। बीजेपी को 88 सीटें मिलीं जिसके समर्थन से वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने। अब धीरे-धीरे आंदोलन की कमान बीजेपी के हाथ आने लगी थी। लाल कृष्ण आडवाणी, कल्याण सिंह,उमा भारती, वीपी सिंघल, आदि 12 नेताओं के खिलाफ आज भी बाबरी मस्जिद तोड़े जाने के विवाद में कानून को ठंेगा दिखाकर अयोध्या में भीड़ एकत्र करने, जान-माल को नुकसान पहुंचाने,धार्मिक भावनाएं भड़काने आदि की धाराओं में मुकदमा चल रहा है।
कांग्रेस भी समय-समय पर अयोध्या विवाद पर सियासत करने में पीछे नहीं रही। कांगे्रस नेता और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर तो यहां तक आरोप लगते रहे कि उन्होंने हिन्दुओं को खुश करने के लिए विवादित स्थल का ताला खुलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी । हालांकि यह भी सच्चाई है कि कोर्ट के आदेश पर ताला खुला था। हाॅ, उस समय केन्द्र में राजीव गांधी की तो यूपी में वीर बहादुर सरकार थी। कोर्ट में जब ताला खोले जाने की पिटीशन दाखिल हुई तो जिला न्यायाधीश इन्दु प्रकाश पांडेय महोदय ने प्रशासन से उनका पक्ष जानना चाह तो प्रशासन की तरफ से मौजूद अधिकारी ने कहा कि वहां पूजा-अर्चना तो होती ही है,ताल खुल जाएगा तो इससे माहौल खराब होने जैसी कोई समस्या नहीं खड़ी होगी,उस समय कुछ मुस्लिम नेताओं ने यहां तक आरोप लगाया था कि उन्होंने कोर्ट में ताला खोले जाने का विरोध किया था,परंतु अदालत ने उनकी एक नहीं सुनी।
कहा जाता है कि वर्ष 1985 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मुस्लिम महिला शाहबानों को गुजारा भत्ता देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कठमुल्लाओं के कहने पर कानून बना कर रोक लगा दी थी। इससे राजीव गांधी की छवि तो धूमिल हुई ही थी, तमाम हिन्दू संगठन भी राजीव गांधी के कठमुल्लाओं के सामने घुटने टेक देने से नाराज हो गए थे,इसी नाराजगी को दूर करने के लिए राजीव गांधी ने फरवरी 1886 में अयोध्या में विवादित स्थल का ताला खुलावाया था। विवादित स्थल का ताला खुलवाए जाने की पूरी रणनीति के पीछे उस समय राजीव गांधी के सलाहाकार रहे अरूण नेहरू का दिमाग बताया जाता था। यह बात वीर बहादुर सिंह कई बार अनौपचारिक तौर पर कह भी चुके थे। यह और बात है कि कांग्रेस का यह दांव उल्टा पड़ा। क्योंकि तब तक आडवाणी जैसे भाजपा नेताओं के साथ बीजेपी पूरे मंदिर आंदोलन को अपनी सियासी धारा में साध चुकी थी। राजीव गांधी को इस विवाद के साथ-साथ बोफोर्स तोप घोटाले के आरोपों के चलते लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा।
इसी प्रकार मुसलमानों के बीच यह भी आम धारणा बनी हुई है कि कांगे्रस नेता और पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव 06 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा विध्वंस के कसूरवार हैं, क्योंकि समय रहते उन्होंने यूपी की कल्याण को बर्खास्त नहीं किया, जबकि कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया था कि बाबरी मस्जिद को कोई नुकसान नहीं होगा। इतना ही नहीं 06 दिसंबर को स्वयं पीएम नरसिंह राव देर से सोकर उठे थे। इसके बाद एक्सरसाइज और पूजा-पाठ में भी काफी समय लगा दिया। दोपहर में जब राव ने टीवी खोला तब तक कारसेवकों ने एक विवादित गुम्बद जमींदोज कर दिया था। उधर, 06 दिसंबर को विवादित ढांचा गिरने के बाद बर्खास्तगी से बचने के लिए मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया और प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया।
खैर, अतीत से निकलकर वर्तमान पर आया जाए तो इस बार माहौल काफी बदल हुआ नजर आ रहा है। केन्द्र और राज्य की सरकारें पूरा प्रयास कर ही रही हैं कि कहीं माहौल नहीं बिगड़े, सोशल मीडिया पर भी नजर रखी जा रही है। एडीजी लॉ ऐंड ऑर्डर पीवी रामाशास्त्री ने भी अयोध्या व इससे सीमा से जुड़े जिलों के पुलिस अधिकारियों व अयोध्या के प्रशासनिक अधिकारियों के साथ बैठक की। इसके अलावा चाहें मुस्लिम हो या फिर हिन्दू पक्षकार सब फंूक-फूंक बयान दे रहे हैं। सुन्नी पक्षकार इकबाल अंसारी ने तो यहां तक कह दिया है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला जो भी आए, अब वह इस विवाद को आगे नहीं ले जाएंगे।
इसी प्रकार बाबरी मस्जिद के पक्षकार हाजी महबूब ने भी कहा है कि अगर वह केस जीत भी जाएंगे तो वहां मस्जिद नहीं बनेगी,बल्कि जमीन की घेराबंदी करके छोड़ दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि मुस्लिम पक्ष फिलहाल दोबारा मस्जिद तामीर करने के हक में नहीं है और न ही इसकी कोई तैयारी ही की गई है। उन्होंने यहां एक बातचीत में कहा कि मुल्क में चैन और सुकून कायम रहे, यही हमारी प्राथमिकता है। उधर, शिया सेन्ट्रल वफ्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी तो शुरू से ही अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बनाए जाने की वकालत कर रहे हैं।
देश में अमन-चैन कायम रहे इसके लिए वरिष्ठ शिया धर्मगुरु और इस्लामी विद्वान मौलाना कल्बे सादिक कहते हैं कि उनकी निजी राय है कि उच्चतम न्यायालय का फैसला आने से पहले मुसलमानों को चाहिए कि वे अयोध्या के विवादित स्थल की जमीन हिन्दुओं को मंदिर निर्माण के लिए सौंप दें। मौलाना कल्बे जव्वाद ने प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष से मुलाकात की और कहा कि अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला आएगा हम उसका सम्मान करेंगे।
अयोध्या मसले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को देखते हुए मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने प्रदेश और देशवासियों से शांति की अपील की है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला कुछ भी हो लेकिन देश में माहौल बिगाड़ने की कोशिश नहीं होनी चाहिए। साथ ही सोशल मीडिया पर गलत ब्यान बाजियों से सबसे ज्यादा माहौल खराब होता है। सोशल मीडिया का लोग गलत तरीके से इस्तेमाल न करें। किसी को भी डर और खौफ में मुब्तिला होने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि अदालत का फैसला जो भी हो सबको चाहिए कि अमन और चैन बनाए रखें। फरंगी महली ने कहा कि फैसला जिनके पक्ष में आए वो खुशी में कोई ऐसा काम ना करे जिससे दूसरे पक्ष का दिल दुखे और ना ही जिनके खिलाफ आए वो विरोध करे। हर इंसान को देश की सर्वोच्च अदालत के फैसले का सम्मान करना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या भूमि विवाद मामले में फैसले की संभावना के बीच एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कहा कि ‘कुछ ताकतें’ देश में स्थिति का लाभ उठाते हुए समुदायों के बीच दरार डालने की कोशिश कर सकती हैं। उन्होंने समाज के सभी वर्गों में शांति कायम रखने की बात कही।
लेखक अजय कुमार लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार हैं.
अजय कुमार, लखनऊ
‘लम्हों ने खता की, सदियों ने सजा पाई।’ अयोध्या के करीब पांच सौ साल पुराने भगवान राम की जन्म भूमि बनाम बाबरी मस्जिद विवाद के बारे में उक्त पंक्तियों को बार-बार दोहराया जा सकता है, लेकिन देर से ही सही अब यह उम्मीद बंधने लगी है कि मोदी सरकार यानी भारतीय जनता पार्टी द्वारा अपने घोषणा पत्र में किए वायदे को पूरा करने की गंभीर इच्छा शक्ति और सुप्रीम कोर्ट के सख्त रूख के बाद अयोध्या विवाद पर फैसले की घड़ी आ गई है। अगर ऐसा हुआ तो सदियों पुराना अयोध्या विवाद हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगा। अयोध्या विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के 12 वर्षो के बाद 16 अक्टूबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो चुकी है। फैसला रिजर्व कर लिया गया है। करीब एक दस दिनों के भीतर अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों वाली बैंच का अंतिम(संभवता) फैसला आ जाएगा। माहौल न बिगड़े, सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सभी पक्ष सहज स्वीकार करें इसको लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित तमाम धर्मगुरूओं के द्वारा ही नहीं अयोध्या विवाद का मुकदमा लड़ रहे तमाम पक्षकार भी यही चाहते हैं कि कोर्ट के फैसले का सम्मान हो।
अयोध्या मामले पर फैसला आने से पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सभी पक्ष से आपसी भाईचारे और शांति की अपील की। संघ ने ट्वीट कर कहा, उच्चतम न्यायालय के आने वाले निर्णय का सभी को खुले दिल से स्वागत करना चाहिए। फैसला चाहे जो हो सौहार्द बनाए रखना सभी की जिम्मेदारी है। पीएम मोदी ने ‘मन की बात’ में कोर्ट के फैसले का सम्मान करने और सौहार्द बनाए रखने की बात कही है। सीएम योगी ने भी सौहार्द बनाएं रखने की अपील करते हुए अपने मंत्रियों से कहा है कि वह अपने प्रभार वाले जिलों में 12 नवंबर के पहले दौरा कर लें। शांति समितियों,धर्मगुरूओं व सामाजिक कार्यकर्ताओं से संवाद कायम करें। साथ ही अनावश्यक बयानबजी से बचंें। ऐसा लगता है कि कोई भी पक्ष नहीं चाहता है कि 1985 में एक मुस्लिम महिला को गुजारा भत्ता देने या फिर बीते वर्ष तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कोर्ट के खिलाफ जो माहौल बना था,अनाप-शनाप टिप्पणी की गई थी, उसे पुनः दोहराया जाए।
अतीत के पन्नों को पलटा जाए तो इस हकीकत को अनदेखा नहीं किया जा सकता है कि अयोध्या विवाद को हल करने की एक तो कभी ईमानदारी से कोशिश नहीं हुई और अगर हुई भी तो विवाद सुलझाने के नाम पर इसको और उलझा दिया गया। आजादी से पहले मुगल सम्राट एवं अंगे्रजों ने तो आजादी के बाद हमारे सियासतदारों ने इस विवाद की चिंगारी से शोले भड़काने का कभी कोई मौका नहीं छोड़ा। नेताओं ने राजनैतिक रोटियां सेंकी तो तमाम दल इसके सहारे सत्ता की सीढ़ियां भी चढ़े। भाजपा तो जब भी अपना चुनावी घोषणा पत्र जारी करती थी तो अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बनाने का वादा जनता से करना नहीं भूलती थी। भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी द्वारा राम मंदिर निर्माण के लिए सोमनाथ से अयोध्या तक के लिए निकाली गई रथ यात्रा को कौन भूल सकता है। हालांकि इस यात्रा की जड़ें कुछ साल पहले रखी गई थीं। अक्टूबर 1984 में वीएचपी ने अयोध्या में मंदिर के लिए रामजन्म भूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया। 8 अक्टूबर 1984 को अयोध्या से लखनऊ की 130 किलोमीटर की यात्रा से आंदोलन शुरू हुआ। 1986 में वीएचपी ने मंदिर आंदोलन को बड़े पैमाने पर शुरू कर दिया। 1989 में वीएचपी ने विवादित स्थल के नजदीक ही राम मंदिर की नींव रख दी। 1989 में वीएचपी के आंदोलन को तब बड़ा मंच मिला जब बीजेपी उसके साथ खड़ी हो गई।
जून 1989 में बीजेपी ने पालमपुर प्रस्ताव में मंदिर आंदोलन के पक्ष में खड़े होने का फैसला किया। बीजेपी के कूदने के बावजूद तब तक वीएचपी ही आंदोलन की अगुवा थी। 1989 के आम चुनाव से ठीक पहले राजीव गांधी सरकार ने वीएचपी को मंदिर के लिए अयोध्या में 9 नवंबर को शिलान्यास की इजाजत दे दी। इसे वीएचपी की बड़ी सफलता माना गया लेकिन माहौल ऐसा बन गया था कि इस दौर में देश ने सांप्रदायिक दंगों का सबसे भयंकर दौर देखा। 22 से 24 नवंबर 1989 को आम चुनाव से पहले हिंदी प्रदेशों में दंगों में करीब 800 लोगों की जान चली गई। बीजेपी को 88 सीटें मिलीं जिसके समर्थन से वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने। अब धीरे-धीरे आंदोलन की कमान बीजेपी के हाथ आने लगी थी। लाल कृष्ण आडवाणी, कल्याण सिंह,उमा भारती, वीपी सिंघल, आदि 12 नेताओं के खिलाफ आज भी बाबरी मस्जिद तोड़े जाने के विवाद में कानून को ठंेगा दिखाकर अयोध्या में भीड़ एकत्र करने, जान-माल को नुकसान पहुंचाने,धार्मिक भावनाएं भड़काने आदि की धाराओं में मुकदमा चल रहा है।
कांग्रेस भी समय-समय पर अयोध्या विवाद पर सियासत करने में पीछे नहीं रही। कांगे्रस नेता और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर तो यहां तक आरोप लगते रहे कि उन्होंने हिन्दुओं को खुश करने के लिए विवादित स्थल का ताला खुलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी । हालांकि यह भी सच्चाई है कि कोर्ट के आदेश पर ताला खुला था। हाॅ, उस समय केन्द्र में राजीव गांधी की तो यूपी में वीर बहादुर सरकार थी। कोर्ट में जब ताला खोले जाने की पिटीशन दाखिल हुई तो जिला न्यायाधीश इन्दु प्रकाश पांडेय महोदय ने प्रशासन से उनका पक्ष जानना चाह तो प्रशासन की तरफ से मौजूद अधिकारी ने कहा कि वहां पूजा-अर्चना तो होती ही है,ताल खुल जाएगा तो इससे माहौल खराब होने जैसी कोई समस्या नहीं खड़ी होगी,उस समय कुछ मुस्लिम नेताओं ने यहां तक आरोप लगाया था कि उन्होंने कोर्ट में ताला खोले जाने का विरोध किया था,परंतु अदालत ने उनकी एक नहीं सुनी।
कहा जाता है कि वर्ष 1985 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मुस्लिम महिला शाहबानों को गुजारा भत्ता देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कठमुल्लाओं के कहने पर कानून बना कर रोक लगा दी थी। इससे राजीव गांधी की छवि तो धूमिल हुई ही थी, तमाम हिन्दू संगठन भी राजीव गांधी के कठमुल्लाओं के सामने घुटने टेक देने से नाराज हो गए थे,इसी नाराजगी को दूर करने के लिए राजीव गांधी ने फरवरी 1886 में अयोध्या में विवादित स्थल का ताला खुलावाया था। विवादित स्थल का ताला खुलवाए जाने की पूरी रणनीति के पीछे उस समय राजीव गांधी के सलाहाकार रहे अरूण नेहरू का दिमाग बताया जाता था। यह बात वीर बहादुर सिंह कई बार अनौपचारिक तौर पर कह भी चुके थे। यह और बात है कि कांग्रेस का यह दांव उल्टा पड़ा। क्योंकि तब तक आडवाणी जैसे भाजपा नेताओं के साथ बीजेपी पूरे मंदिर आंदोलन को अपनी सियासी धारा में साध चुकी थी। राजीव गांधी को इस विवाद के साथ-साथ बोफोर्स तोप घोटाले के आरोपों के चलते लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा।
इसी प्रकार मुसलमानों के बीच यह भी आम धारणा बनी हुई है कि कांगे्रस नेता और पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव 06 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा विध्वंस के कसूरवार हैं, क्योंकि समय रहते उन्होंने यूपी की कल्याण को बर्खास्त नहीं किया, जबकि कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया था कि बाबरी मस्जिद को कोई नुकसान नहीं होगा। इतना ही नहीं 06 दिसंबर को स्वयं पीएम नरसिंह राव देर से सोकर उठे थे। इसके बाद एक्सरसाइज और पूजा-पाठ में भी काफी समय लगा दिया। दोपहर में जब राव ने टीवी खोला तब तक कारसेवकों ने एक विवादित गुम्बद जमींदोज कर दिया था। उधर, 06 दिसंबर को विवादित ढांचा गिरने के बाद बर्खास्तगी से बचने के लिए मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया और प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया।
खैर, अतीत से निकलकर वर्तमान पर आया जाए तो इस बार माहौल काफी बदल हुआ नजर आ रहा है। केन्द्र और राज्य की सरकारें पूरा प्रयास कर ही रही हैं कि कहीं माहौल नहीं बिगड़े, सोशल मीडिया पर भी नजर रखी जा रही है। एडीजी लॉ ऐंड ऑर्डर पीवी रामाशास्त्री ने भी अयोध्या व इससे सीमा से जुड़े जिलों के पुलिस अधिकारियों व अयोध्या के प्रशासनिक अधिकारियों के साथ बैठक की। इसके अलावा चाहें मुस्लिम हो या फिर हिन्दू पक्षकार सब फंूक-फूंक बयान दे रहे हैं। सुन्नी पक्षकार इकबाल अंसारी ने तो यहां तक कह दिया है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला जो भी आए, अब वह इस विवाद को आगे नहीं ले जाएंगे।
इसी प्रकार बाबरी मस्जिद के पक्षकार हाजी महबूब ने भी कहा है कि अगर वह केस जीत भी जाएंगे तो वहां मस्जिद नहीं बनेगी,बल्कि जमीन की घेराबंदी करके छोड़ दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि मुस्लिम पक्ष फिलहाल दोबारा मस्जिद तामीर करने के हक में नहीं है और न ही इसकी कोई तैयारी ही की गई है। उन्होंने यहां एक बातचीत में कहा कि मुल्क में चैन और सुकून कायम रहे, यही हमारी प्राथमिकता है। उधर, शिया सेन्ट्रल वफ्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी तो शुरू से ही अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बनाए जाने की वकालत कर रहे हैं।
देश में अमन-चैन कायम रहे इसके लिए वरिष्ठ शिया धर्मगुरु और इस्लामी विद्वान मौलाना कल्बे सादिक कहते हैं कि उनकी निजी राय है कि उच्चतम न्यायालय का फैसला आने से पहले मुसलमानों को चाहिए कि वे अयोध्या के विवादित स्थल की जमीन हिन्दुओं को मंदिर निर्माण के लिए सौंप दें। मौलाना कल्बे जव्वाद ने प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष से मुलाकात की और कहा कि अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला आएगा हम उसका सम्मान करेंगे।
अयोध्या मसले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को देखते हुए मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने प्रदेश और देशवासियों से शांति की अपील की है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला कुछ भी हो लेकिन देश में माहौल बिगाड़ने की कोशिश नहीं होनी चाहिए। साथ ही सोशल मीडिया पर गलत ब्यान बाजियों से सबसे ज्यादा माहौल खराब होता है। सोशल मीडिया का लोग गलत तरीके से इस्तेमाल न करें। किसी को भी डर और खौफ में मुब्तिला होने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि अदालत का फैसला जो भी हो सबको चाहिए कि अमन और चैन बनाए रखें। फरंगी महली ने कहा कि फैसला जिनके पक्ष में आए वो खुशी में कोई ऐसा काम ना करे जिससे दूसरे पक्ष का दिल दुखे और ना ही जिनके खिलाफ आए वो विरोध करे। हर इंसान को देश की सर्वोच्च अदालत के फैसले का सम्मान करना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या भूमि विवाद मामले में फैसले की संभावना के बीच एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कहा कि ‘कुछ ताकतें’ देश में स्थिति का लाभ उठाते हुए समुदायों के बीच दरार डालने की कोशिश कर सकती हैं। उन्होंने समाज के सभी वर्गों में शांति कायम रखने की बात कही।
लेखक अजय कुमार लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार हैं.
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