तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा
इंसान की औलाद है इंसान बनेगा
प्रसिद्ध गीतकार शाहिर लुधियानवी का यह गीत आज उस समय यकायक याद आ रहा है जब हजरत अमीर खुसरो और गोस्वामी तुलसीदास की जन्म स्थली,पूरी दुनिया मे आपसी भाई चारे और साम्प्रदायिक शौहार्द की मशाल पेश करने वाली, भगवान वराह की जन्मभूमि कासगंज ने उस समय एक अनूठी मिशाल पेश की जब यहां मुस्लिम समुदाय के लोगों ने एक बुजुर्ग ब्राह्मण की मौत पर उसकी अर्थी बनाने, अर्थी को कंधा देने,शमशान घाट तक ले जाने और हिन्दू रीति रिवाजों से उसका अंतिम संस्कार करने का कार्य किया।
हिन्दू मुस्लिम, मंदिर मस्जिद के नाम पर खून बहाने वालों के लिए कासगंज के मुसलमानों ने एक अनूठी मिशाल पेश कर उनके मुंह पर जबरदस्त तमाचा जड़ा है। भारतीय संस्कृति और धर्म के मर्म को समझने वाले लोगों ने आज हन्दुस्तान की गंगा जमुनी तहजीब को जीवित होते हुए देखा।
उत्तर प्रदेश के कासगंज जनपद में कोरोना वायरस के खौफ के चलते लगाए गए साप्ताहिक लॉकडाउन के बीच सहावर ब्लाक के सहावर थाना छेत्र के गांव गढ़का में हिन्दू-मुस्लिम एकता की अनूठी मिसाल देखने को मिली है। बता दें कि यहां मुस्लिम आबादी के बीच रहने वाले हिन्दू समुदाय के एक बुजुर्ग बाबा हरिओम पंडित का देहान्त हो गया । इसी बीच गांव के मुस्लिमों ने अंतिम संस्कार का बीड़ा उठाते हुए, अंतिम संस्कार की सभी सामग्री को एकत्र किया,बल्कि अर्थी को कांधा देकर पूरे हिंदू रीति-रिवाज से मृतक को अंतिम विदाई भी दी। मुस्लिम समुदाय द्वारा की गई इस पहल की अब हर कोई चर्चा कर रहा है।
दरअसल यह मामला सहावर ब्लाक के मुस्लिम बाहुल्य गांव गढ़का का है। गांव के ही हाजी राशिद अली ने बताया कि पन्द्रह वर्ष पूर्व गणका रेलवे स्टेशन पर 80 वर्षीय वृद्ध बाबा हरीओम पंडित मिले जो कि काफी बीमार थे । उनकी परेशानी देख राशिद अली उन्हें अपने घर ले आए और उन्हें रहने के लिए जगह दे दी और उनकी पूरी देखभाल की। तभी से वह वहां रह रहे थे। उनकी देखभाल व खाने पीने का इंतजाम आसपास के गांव के ही मुस्लिम लोग कर रहे थे। शनिवार सुबह अचानक उनका निधन हो गया तो उनके अंतिम संस्कार करने के लिए मुस्लिम समुदाय के लोगों ने पूरा इंतजाम किया। खुद ही अपने हाथों से नहलाया, अर्थी को बनाया, पिंड लगाकर सभी मुस्लिम समाज के लोगों ने वृद्ध को कंधा देकर श्मशान भूमि पर ले जाकर हिन्दू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार किया। वृद्ध को मुखाग्नि हाजी राशिद अली ने दी। पूरे अंतिम संस्कार का इंतजाम गड़का के ग्राम प्रधान उमरु प्रधान की देख रेख में सम्पन्न हुआ।
इलाके में मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा वृद्ध का अंतिम संस्कार चर्चा का विषय बना हुआ है। लोग खुलकर मुस्लिम समुदाय के उन लोगों की तारीफ कर रहे हैं, जिन्होंने पूरे रीति-रिवाज के साथ एक हिन्दू का अंतिम संस्कार किया है। यहाँ जाति, धर्म, साम्प्रदाय और ऊंच नीच की सभी बेड़ियां टूट गयी।
प्रसिद्ध मुस्लिम विद्वान और शायर अल्लामा इकबाल ने ठीक ही कहा है--
मजहब नही सिखाता आपस मे बैर रखना
हिंदी हैं हम वतन हैं,हिन्दोस्तां हमारा.....
राकेश प्रताप सिंह भदौरिया
वरिष्ठ पत्रकार,एटा/कासगंज
मो0 9456037346
1 comment:
वाह ! इस आदर्श को प्रस्तुत करने वालो शान्ती दूतो को सजदा करता हूॅ । ईश्वर उन्है लम्बी उम्र दराज करै।
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