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5.8.20

कविता का काम जितना वर्णन करना होता है उतना सवाल उठाना भी होता है - प्रो. चित्तरंजन मिश्र


अलवर, राजस्थान। नोबल्स स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रामगढ़, अलवर (राज ऋषि भर्तृहरि मत्स्य विश्वविद्यालय, अलवर से संबद्ध) एवं भर्तृहरि टाइम्स पाक्षिक समाचार पत्र, अलवर के संयुक्त तत्त्वावधान में एक दिवसीय राष्ट्रीय स्वरचित काव्यपाठ/ मूल्यांकन ई-संगोष्ठी- 5 का आयोजन किया गया; जिसका विषय ‘स्वेच्छानुसार' था। इस ई-संगोष्ठी में 23 राज्यों एवं 5 केंद्र शासित प्रदेशों से संभागी जुड़े, जिनमें 21 कवि-कवयित्रियों ने अपना काव्य-पाठ प्रस्तुत किया।

इस ई-संगोष्ठी में मूल्यांकनकर्ता वरिष्ठ आलोचक एवं साहित्य-मर्मज्ञ प्रो. चित्तरंजन मिश्र थे। कार्यक्रम की शुरुआत में डॉ. सर्वेश जैन, प्राचार्य, नोबल्स स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रामगढ़ (अलवर) ने टिप्पणीकार का स्वागत करते हुए बताया कि प्रो. मिश्र की हिंदी साहित्य में अब तक 7 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। वर्तमान में प्रो. मिश्र साहित्य अकादेमी, नयी दिल्ली के हिंदी परामर्श मंडल के संयोजक हैं। डॉ. जैन ने सभी कवि-कवयित्रियों और श्रोताओं/ संभागियों का भी स्वागत किया।

काव्य-पाठ के उपरांत प्रो. चित्तरंजन मिश्र ने सभी कवि-कवयित्रियों की कविताओं का मूल्यांकन करते हुए प्रत्येक कविता पर अलग-अलग टिप्पणी की। अपने विद्वत्तापूर्ण वक्तव्य में आगे उन्होंने कहा कि कविता कम शब्दों का व्यापार है। कविता जितना शब्दों और पंक्तियों से कहती है, उतना ही वह शब्दों और पंक्तियों के अंतराल से भी कहती है। यह बात मैं सभी कवियों से कह रहा हूं। हर बात कविता में कही नहीं जाती, कुछ संकेत छोड़े जाते हैं और उन संकेतों के आधार पर पाठक और श्रोता खुद ही उस कविता में आशय को खोजता है। कई बार पंक्तियों में अंतराल रहता है, शब्दों में जो गैप होता है, बिटवीन-द-लाइंस, उसमें पाठक उस आशय को खोज लेता है। किसी एक बड़े आलोचक ने कहा है कि कविता का काम जितना कहना होता है, उतना ही न कहना भी होता है। छिपाने और दिखाने का द्वंद कविता में आना चाहिए। आगे उन्होंने कहा कि कविता हमारे भीतर के सूखते हुए भावों को हरा करती है। हमारे भीतर के भाव, हमारे भीतर की जो संवेदनशीलता कम हो रही होती है, कविता उस संवेदनशीलता को बढ़ाती है। कविता आदमी के मन को थोड़ा भारी करती है। खुशियों में उसे चुप करती है और दुखों में उसे उत्साह देती है।

अपने वकतव्य में आगे उन्होंने कहा कि कविता का काम जितना वर्णन करना होता है उतना सवाल उठाना भी होता है। सवाल उठाने वाली कविता अच्छी मानी जाती है। वर्णन करने वाली कविता सवाल उठाकर और अच्छी हो जाती है।

लगभग 3 घंटे तक चली इस ई-संगोष्ठी में काव्य-पाठ करने वालों में सर्वश्री अमोद कुमार (दरभंगा, बिहार) ने अपनी ‘औद्योगिक मिथिला निर्माण’, आकांक्षा कुरील (वर्धा, महाराष्ट्र) ने ‘किसान’, अनीता वर्मा (भुज, गुजरात) ने ‘कड़वा सच’, मोहन दास (तेजपुर, असम) ने ‘तिरंगा की आवृत्ति’, के. कविता (पुडुचेरी) ने ‘रिश्तों की कविता’, केदार रविंद्र केंद्रेकर (परभणी, महाराष्ट्र) ने ‘लोकमान्य तिलक स्मृति शताब्दी वर्ष’, डॉ. निशा शर्मा (बरेली, उत्तर प्रदेश) ने ‘करुण पुकार’, लव कुमार गुप्ता (जौनपुर, उत्तर प्रदेश) ने ‘भारत ये जिंदाबाद रहे’, वंदना राणा (कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश) ने ‘उजले आसमान का तारा हूं मैं’, देवेंद्र नाथ त्रिपाठी (डुमरी, झारखंड) ने ‘मजदूर’, जोनाली बरुवा (धेमजी, असम) ने ‘आर्तनाद’, उमा रानी (नोएडा, उत्तर प्रदेश) ने ‘ऐसे होते हैं पापा’, संजय कुमार (आजमगढ़, उत्तर प्रदेश) ने ‘कोरोना का कहर’, अंचल कुमार राय (गुवाहाटी, असम) ने ‘मैं दुखियारी सड़क किनारे’, प्रदीप कुमार माथुर ने (अलवर, राजस्थान) ने ‘महंगाई’ एवं ‘नारियों के प्रश्न’, के. इन्द्राणी (नमक्कल, तमिलनाडु) ने ‘आत्मनिर्भरता’, कमलेश भट्टाचार्य (करीमगंज, असम) ने ‘जमाई शोष्ठी’, अंजनी शर्मा (गुरुग्राम, हरियाणा) ने ‘जिंदगी’ तथा प्रीति शर्मा (बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश) ने ‘मां के साथ पहला कदम’ शीर्षक कविता पढ़ी।

ई-संगोष्ठी का संयोजन एवं संचालन युवा पत्रकार कादम्बरी ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. मंजू, सह-आचार्य, नोबल्स स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रामगढ़, अलवर ने किया।

 

रिपोर्टिंग

कादम्बरी

संपादक, भर्तृहरि टाइम्स, पाक्षिक समाचार-पत्र, अलवर

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