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8.10.21

रहस्यमय पीएम केयर्स फंड : देश का धन है तो फिर देश जानकारी क्यों नहीं ले सकता?

करणीदानसिंह राजपूत-

देश में पहले से ही प्रधानमंत्री राहत कोष सन 1948 ईसवी से स्थापित है और 73 वर्षों से संचालित है। प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अपने कार्यकाल में प्रधानमंत्री राहत कोष का संपूर्ण संचालन प्रधानमंत्री कार्यालय के अधीन कर दिया था जो वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ही अधीन है। ऐसी अधिकारिता के होते हुए पीएम केयर्स फंड की स्थापना की आवश्यकता क्यों हुई? इसमें देश का धन लगा है तो देश को इसके संचालन व जमा खर्च की जानकारी भी होनी चाहिए, लेकिन वह जानकारी दी नहीं जा रही।


प्रधानमंत्री राहत कोष के होते हुए यदि पीएम केयर्स फंड की स्थापना की आवश्यकता हुई तो वह देश को बताया जाना चाहिए था और अभी भी बताया जा सकता है।


पीएम केयर्स फंड स्थापना से ही विवादों से घिरा है।

आखिर इसमें ऐसा क्या रहस्य है जिसके कारण देश से छुपाया जा रहा है? इसका नाम जरूर पीएम केयर्स फंड है लेकिन क्या इसके वर्तमान संचालक पदों से हटने/हटाने/छोड़ने के बखद भी इसका संचालन करने के अधिकारी होंगे?

अनेक शंकाएं इस छुपाने से पैदा हो रही है और आगे भी होती रहेगी।

देश का प्रधानमंत्री देश से छिपाए तो उससे पैदा होने वाली शंकाओं का तो अंत ही नहीं हो सकता।

एक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही नहीं इसके सभी संचालकों पर सदा प्रश्न छाए रहेंगे। अभी तो देश में मामूली धड़कन सी है लेकिन कभी यह तूफानी ताकत तक पहुंच कर अपूर्णीय हानि भी पहुंचा सकती है। जब सत्ता होती है तब हर प्रश्न को हवा में उड़ा देने या दबा देने की ताकत होती है लेकिन सत्ता कमजोर होने या चली जाने पर परेशानियां रुक नहीं पाती। लोकतंत्र में सत्ता स्थाई नहीं हो सकती इसलिए  मानना चाहिए कि ऐसा वक्त भी आ सकता है जब न चाहते हुए भी जगजाहिर हो सकता है। देश में जागरूक लोगों की कमी नहीं है।

इस फंड पर अभी भी लोग प्रश्न कर रहे हैं।

कांग्रेस का कहना है कि यह सरकारी फंड नहीं है तो प्रधानमंत्री के पते का इस्तेमाल क्यों हुआ?

मेरे एक विचार में ऐसा भी हो सकता है कि फंड की किसी भी जानकारी को कांग्रेस व विपक्ष से जानबूझ कर छुपाया जा रहा हो कि जब तूफान मचेगा तब सब खोल देंगे और उसमें कोई उलटा पुलटा नहीं निकलेगा। उसको  आक्रामक रूप में कांग्रेस और विपक्ष के विरुद्ध उपयोग किया जाएगा।

एक जनहित याचिका भी दिल्ली उच्च न्यायालय में  सम्यक गंगवाल की ओर से लगी हुई है जिसकी सुनवाई चल रही है। अभी तक न्यायालय में क्या हुआ है?

 दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार 6 अक्टूबर 2022 को कहा- सरकार को इसे निजी कोष बताने का अधिकार नहीं। उन्होंने कहा कि “हम यह नहीं कह रहे हैं कि इसकी गतिविधियां खराब हैं, बल्कि हम केवल यह कहना चाह रहे हैं कि यह संविधान के अनुशासन के अधीन होना चाहिए। सही बात यह है कि यह राजकीय के अलावा और कुछ नहीं है।”

याचिकाकर्ता ने कहा कि इसे निजी मानने का कोई औचित्य नहीं है।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि पीएम केयर्स फंड  को संविधान द्वारा आवश्यक पारदर्शिता के सिद्धांत का पालन करना चाहिए और इसे राजकीय निधि घोषित किया जाना चाहिए।

याचिकाकर्ता सम्यक गंगवाल का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा कि उच्च स्तर के सरकारी अधिकारियों ने ऐसा बताया था कि केंद्र धर्मार्थ ट्रस्ट की स्थापना कर रहा है। याचिकाकर्ता केंद्र के इस रुख का विरोध कर रहा है कि पीएम केयर्स फंड एक सरकारी फंड नहीं है और इसकी राशि भारत के समेकित कोष में नहीं जाती है।

उन्होंने मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की खंडपीठ से कहा, “आप यह नहीं कह सकते कि ‘देखो, हम तय करते हैं कि संविधान हम पर लागू नहीं होता है, हम राज्य नहीं हैं और हम कहीं और चले जाते हैं।”
अदालत ने बुधवार को उस याचिका पर दलीलें सुननी शुरू की जो चाहती है कि संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत पीएम केयर्स फंड को ‘राजकीय’ घोषित किया जाए। गंगवाल ने तर्क दिया कि देश के नागरिक इस बात से परेशान हैं कि प्रधान मंत्री द्वारा स्थापित एक कोष जिसके न्यासी प्रधानमंत्री, गृह, रक्षा और वित्त मंत्री हैं, उस पर कोई सरकारी नियंत्रण नहीं है।

दीवान ने तर्क दिया: “यह सरकारी मशीनरी के समानांतर काम कर रहा है। इस पर शासन का गहरा और व्यापक नियंत्रण है। जिस तरह से वित्तीय सहायता और इसके बारे में सब कुछ…संचालित किया जा रहा है, इससे यह नहीं समझ में आ रहा है कि पीएम केयर्स में ऐसा क्या है जो निजी है? क्या कोई कह सकता है कि यह राजकीय नहीं है। उस स्व-प्रमाणन के अलावा, हम ऐसा कोई कारक नहीं खोज पा रहे हैं कि यह राज्य नहीं है।”

यह भी तर्क दिया गया कि अधिकारियों ने  पीएम केयर्स फंड राज्य के रूप में पेश किया तथा राज्य के प्रतीक और .gov.in पोर्टल के उपयोग से यह आधिकारिक मंजूरी देता है। दीवान ने तर्क दिया “प्रतीक आधिकारिक स्वीकृति देता है, जनता का विश्वास, एक संदेश देता है कि यह आपकी सरकार से संबंधित है और संविधान के अनुशासन और भारत के कानूनों के संदर्भ में सब कुछ उसके अधीन होगा। यह निजी मामला नहीं है, जिसे कोई देख नहीं सकता है, जहां सभी दान अपारदर्शी हैं, और जिसका किसी के सामने खुलासा नहीं किया जा सकता है।”

दीवान ने यह भी तर्क दिया कि संविधान को “सूर्य के प्रकाश की तरह पारदर्शिता चाहिए।”

पीएम केयर्स फंड की संरचना स्वयं में काफी “दोषपूर्ण और त्रुटिपूर्ण” है।“ उन्होंने कहा कि “हम यह नहीं कह रहे हैं कि इसकी गतिविधियां खराब हैं, बल्कि हम केवल यह कहना चाह रहे हैं कि यह संविधान के अनुशासन के अधीन होना चाहिए। सही बात यह है कि यह राजकीय के अलावा और कुछ नहीं है।”

अदालत को बताया गया कि PIB (पत्र सूचना ब्यूरो ) के माध्यम से PMO ने एक प्रेस नोट जारी कर पीएम केयर्स फंड में चंदा देने की अपील की थी। यह धारणा बनाई थी कि यह भारत सरकार के अलावा और कुछ नहीं है। अदालत को बताया गया कि उपराष्ट्रपति के साथ-साथ एक कैबिनेट मंत्री और कैबिनेट सचिव ने क्रमशः राज्यसभा के सदस्यों और सरकारी कर्मचारियों से इसी तरह की अपील की और इसे भारत सरकार के धर्मार्थ कोष के रूप में बताया।

करणीदानसिंह राजपूत,
स्वतंत्र पत्रकार ( सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय,राजस्थान सरकार से अधिस्वीकृत)
सूरतगढ़ ( राजस्थान)
94143 81356

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