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13.2.22

इमरान खान मुसीबत में, पाकिस्तान में अनिश्चितता

pankaj mishra-
 
1965 के भारत -पाकिस्तान के युद्ध के बाद सोवियत संघ की मध्यस्थता में दोनों देशों के बीच ताशकन्द में समझौते की बातचीत हो रही थी. इस बातचीत में भारत के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान कर रहे थे. पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो भी पाकिस्तान के प्रतिनिधिमंडल में  थे .इसी दौरान एक बार  सोवियत प्रतिनिधिमंडल  से बातचीत के बीच जुल्फिकार अली भुट्टो ने जनरल अयूब के कान में कुछ कहा .भुट्टो की बात सुनते ही जनरल साहब को गुस्सा आ  गया और जोर से बोले "उल्लू के पट्ठे बकवास बंद करो ".


वो दिन और आज का दिन ,इस बीच में कभी भी पाकिस्तान की फ़ौज को यह नहीं लगा कि जनता के प्रतिनिधि बकवास नही करते हैं.

पाकिस्तान के पिछले 75 साल के इतिहास में पाकिस्तान फौज ने या तो ख़ुद शासन किया है या  जनता के नेताओं को कठपुतलियों की तरह चलाया है .जनरल अयूब ने तो जिन्ना की बहन फातिमा जिन्ना  को भारत का एजेंट तक कहा .हर वो इंसान पाकिस्तान में गद्दार है जो असली प्रजातंत्र के बारे में बात करे और फौज को अपनी बैरकों  में रहने के लिये कहे .

कारगिल के बारे में तो लोग जानते ही हैं कि कैसे उस समय के प्रधानमंत्री को धोखे में रख कर जनरल मुसर्रफ ने भारत मे घुसपैठ की थी.इस तरह के अनेक मामले रहे हैं .कुछ साल पहले पाकिस्तान के पूर्व  सूचना मंत्री मुशाहिद हुसैन सईद ने बीबीसी को दिए  एक इंटरव्यू में बताया था कि पाकिस्तान ने 1996 में जब तालिबान की सरकार को मान्यता दे दी थी तो उनको इस बात का पता नहीं था .उनका कहना था कि उनको इसका पता पाकिस्तान टेलीविजन की एक खबर  से  चला .उनका यह भी कहना था कि उस समय के  प्रधानमंत्री नवाज़ शरिफ को भी नही पता था कि उनकी सरकार ने तालिबान को मान्यता दे दी है .उनका साफ कहना था कि यह फौज का निर्णय और सरकार से पूछा भी नही गया था कि वो तालीबान को मान्यता देने के बारे में क्या सोचती है .

इस समय भी हालात पहले से बेहतर नहीं हैं .2017 में फौज ने  प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को भ्रस्टाचार के आरोपों का बहाना बना कर निकलने पर मजबूर सिर्फ इसलिए कर दिया था कि वो अपने दिमाग से सत्ता चलाने लगे थे.एक बार फिर अपने तीसरे कार्यकाल में नवाज़ शरीफ़ ने फौज की बात न मानते हुए भारत से दोस्ती के प्रयास तेज किये  तो उनके विरोध में पाकिस्तान में पोस्टर लगवाए गए जिसमे लिखा था ' जो मोदी का यार है ,वो गद्दार है '.इसके बाद उनके विरुद्ध होने वाले षडयंत्र बढ़ गये .

2018 के चुनावों के बाद ,अगर बिलावल भुट्टो के शब्दों का प्रयोग करें, "सेलेक्टेड" - इमरान खान को फौज ने प्रधानमंत्री बनाया .लेकिन केवल साढ़े तीन  साल ही बीते थे कि इमरान खान और पाकिस्तान की फौज के चीफ जनरल बाजवा में बीच लड़ाई छिड़ गई .इस साल के अक्टूबर महीने में आई एस आई के नए चीफ की नियुक्ति को लेकर दोनों में  मतभेद सामने आये . जानकारों का कहना कि इमरान खान कोई नया आई एस आई चीफ इसलिए नही चाहते थे क्योंकि उन्हें लगता है था 2023 में होने वाले आम चुनाव में  जनरल फ़ैज़ हामिद ही उनकी सहायता कर सकते हैं और उनको जीतने के लिये चुनाव को "मैनेज" कर सकते हैं .वास्तव में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आई एस आई का चीफ ही वो ताकत है जो फौज के कहने पर किसी राजनेता के लिये पूरे चुनाव में न केवल फ़र्ज़ीवाड़ा करता है बल्कि  नेताओं को ब्लैकमेल भी करता है .जनरल बाजवा पर इमरान को भरोसा नही था क्योंकि बाजवा के बारे में यह कहा जाता है कि वो अपने पंजाबी भाई  नवाज़ शरीफ़ के बहुत करीबी हैं.

पाकिस्तान इस समय अनिश्चितता के दौर से गुज़र रहा है .एक तरफ तो आतंकवादी  ताकतें दिन पर दिन  मजबूत हो रही हैं तो दूसरी तरफ फौज के चीफ और प्रधानमंत्री में शह और मात का खेल चल रहा है. आर्थिक हालात भी बहुत बुरे हो चुके हैं.लोग जबरदस्त महंगाई से जूझ रहे हैं.अभी हाल में आई  संयुक्त राष्ट्र की एक  रिपोर्ट के अनुसार पूरे विश्व में सबसे ज़्यादा महंगाई वाले देशों में पाकिस्तान का तीसरा स्थान है.भ्रस्टाचार की यह हालत है कि ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट ने पाकिस्तान को 140 स्थान दिया है और अब दुनिया मे केवल  चालीस देश ही ऐसे हैं जँहा पाकिस्तान से कम भ्रष्टाचार है .

ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान की इस  हालत के लिये सिर्फ फौज ही जिम्मेदार है .पाकिस्तान बनने के बाद के कुछ सालों  को और 1971 के युद्ध मे भारत से हारने के बाद बनी जुल्फिकार अली भुट्टो  सरकार  को छोड़ दें तो कभी भी पाकिस्तान में कोई भी गैर फौजी शासक की सरकार बिना फ़ौज के आर्शीवाद से नही रही .बेनज़ीर भुट्टो हों, नवाज़ शरीफ़ हों या इमरान खान सभी ने पहले फौज से गुप्त  समझौते किये और उसकी शर्तें मानी तब जा कर वो सत्ता में आये.इस समय भी यही हो रहा है .आज कल इस्लामाबाद और रावलपिंडी में रोज़ नई नई गुप्त डील की बात सुनाई देती है .इस बार विपक्ष के नेताओं की फौज से डील होने की खबरें आ रही हैं.इमरान खान के ऊपर बहुत बड़ा संकट है और यह देखना होगा कि वो इससे कैसे निपटते हैं क्योंकि अब उनके  सिर पर से "हाथ"उठ चुका है .

Pankaj Mishra
Barabanki
Mob :8799642987

3 comments:

Unknown said...

बहुत खूब

evoseedbox said...

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