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9.2.23

अपनी कुंठाओं की पूर्ति के लिए निर्दोषों को फँसाती है गोरखपुर की शाहपुर पुलिस

सत्येंद्र कुमार-
satyendragudiya@gmail.com

गोरखपुर : जिस तरह यह बात सच है कि सभी पुलिस वाले बेईमान और भ्रष्ट नही होते ठीक उसी तरह यह बात भी सच है कि यदि पुलिस अपना काम ईमानदारी से करती  तो योगी आदित्यनाथ के रामराज्य का स्वप्न कब का पूरा हो जाता । ऐसी रिपोटर्स आती रही है कि लगभग 75 प्रतिशत से ज्यादा लोगों को पुलिस पर भरोसा ही नही है । कुछ भ्रष्ट और बेईमान पुलिस वालों की वजह से आज भारत एक ऐसा देश बन चुका है जहाँ पुलिस को देखकर लोग सेफ फील करने की बजाय डरते हैं । एक 15 साल के बच्चे को पता होता है कि आई पी एल में सट्टा लगाने के लिए किसके पास जाना है लेकिन हमारी पुलिस को पता नहीं होता । हर एक चरसिये से लेकर हर एक स्मैकिए को पता है कि किस दरवाजे पर उनका माल मिलेगा लेकिन हमारी पुलिस को पता नही होता । गोरखपुर शहर के थाना शाहपुर की पुलिस ने भी अजीबोगरीब कारनामा कर दिखाया है । इनका जोर भले अपराधियों पर न चलता हो लेकिन सामान्य व्यक्ति को अपराधी बनाने में ये कोई कसर नही छोड़ते हैं ।


ड्रग माफिया का स्टिंग आपरेशन करने वाले गोरखपुर के खोजी पत्रकार सत्येन्द्र कुमार पर बगैर किसी जाँच या प्रमाण के, गुपचुप तरीके से गिरफ्तारी की धारा में मुकदमा लिखने वाली शाहपुर पुलिस की असलियत खुलकर सामने आ गयी है । ड्रग माफिया और अपराधियों के चरणों मे चरणलोटन होने वाली शाहपुर पुलिस ने ड्रग माफिया के इशारे पर सत्येन्द्र कुमार पर फर्जी मुकदमा दर्ज करते ही आधी रात को गिरफ्तारी की धारा बताते हुए उनके घर पर दबिश दे दी थी ।

पुलिस के उच्चाधिकारियों के संज्ञान में बात आते ही पूरे मामले पर जब जाँच बैठा दी गयी तो शाहपुर पुलिस ने भांडा खुलने के डर से बिना किसी ठोस प्रमाण के, बगैर गिरफ्तारी वाली धारा में आरोप पत्र भेज कर मामले को निपटाने की कोशिश शुरू कर दी, लेकिन सी ओ साहब पत्रकार से खार खाये हुए है इसलिए जनाब ने शाहपुर पुलिस को फ़ाइल वापस भेजकर फिर से मामले में गिरफ्तारी की धारा बढ़ाने को कहा है। साहब यह समझ पा रहे हैं कि यदि सबूत होता तो गिरफ्तारी की धारा हटाई ही क्यो जाती । सी ओ साहब की पत्रकार से निजी खुन्नस यह है कि पत्रकार ने सी ओ साहब की पोलखोल करते हुए उनके खिलाफ हाइकोर्ट में याचिका दायर कर पिछले साल भर से उनका सिरदर्द बढ़ा रखा है । क्या अब शाहपुर पुलिस से यह पूछा जाएगा कि जब गिरफ्तारी करने लायक ऑफेंस था ही नही तब बगैर जी. डी. में एंट्री किये, "ऑफ द रिकॉर्ड" जाकर आधी रात पत्रकार के घर दबिश देने की जल्दबाजी किसके इशारे पर और क्यों की गयी ? क्या यह पूछा जाएगा कि जब उच्चाधिकारी के यहाँ प्रकरण की जाँच लंबित है तो यह जानने के बाद भी इतनी तत्परता में आरोप पत्र प्रेषित करने की क्या जल्दी थी ?

बगैर गिरफ्तारी वाली धारा में चार्जशीट लगाने के लिए मित्र और ईमानदार थाना शाहपुर की पुलिस ने पाँच ऐसे गवाहों को चुना है जो मानव जीवन के भक्षक झोलाछाप डॉक्टर हैं । ये सभी झोलाछाप पहले से ही पुलिस प्रशासन की रडार पर हैं और इनके खिलाफ पत्रकार सत्येन्द्र कुमार ने प्रसाशनिक कार्यवाही कराते हुए इनके अस्पताल रूपी कत्लखाने को सील करा रखा है और अब तक इनके खिलाफ पैरवी कर रहे हैं ।

अपनी कुत्सित मानसिकता की कुंठाओं की पूर्ति के लिए तथा चंद नोटों की खातिर माफियाओ को खुश करने के लिए कुछ बेलगाम और भ्रष्ट पुलिस वाले अपने पावर का दुरुपयोग कर किसी सामान्य व्यक्ति पर फर्जी धाराएं लगाकर उसे जेल भेजने का कुचक्र कुछ इस कदर रचते हैं ,कि यदि उच्चधिकारियों ने दखल न दिया होता और पत्रकार सत्येन्द्र की जगह कोई और होता तो उसे कब का निपटा दिया गया होता । पत्रकार सत्येन्द्र कुमार का यह प्रकरण इस बात का जीता जागता उदाहरण है कि कुछ भ्रष्ट और बेलगाम पुलिस वालों की वजह से हमारा सिस्टम एक ऐसे पुलिस स्टेट मे तब्दील होता जा रहा है जिस पर हुक्मरानों का लगाम लगाना जरूरी हो चला है। जिस देश और राज्य की सत्ता तथा सिस्टम के लिए बेईमान और भ्रष्ट वर्दीधारी चुनौती बनने लग जाएं वहाँ पतन तय है ।

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