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16.11.23

ताकि बहिष्कार की नौबत ही न आए

राजीव शर्मा-

इन दिनों सोशल मीडिया पर एक सूची बहुत तेज़ी से शेयर की जा रही है, जिनमें ग़ाज़ा मामले को लेकर कुछ ख़ास कंपनियों के प्रॉडक्ट्स का बहिष्कार करने की अपील की गई है। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। इससे पहले भी जब-जब फ़लस्तीन-इसराइल तनाव बढ़ा तो मेरे पास ऐसी ही एक सूची पहुँची थी।


हर साल दीपावली से पहले भी ऐसी सूची सोशल मीडिया पर वायरल होती है, जिनमें चीनी प्रॉडक्ट्स के बहिष्कार की अपील की जाती है।

किसी कंपनी का प्रॉडक्ट ख़रीदना या न ख़रीदना लोगों की भावनाओं से जुड़ा है। उन्हें बहिष्कार करने का पूरा अधिकार है। जहाँ तक मेरी पसंद का सवाल है, तो भाई मैं देसी आदमी हूँ। मैं किसी विदेशी ब्रांड-व्रांड के चक्कर में वैसे भी नहीं पड़ता। जहाँ तक मुमकिन होता है, दंत मंजन, जूता, क़लम से लेकर ... तमाम चीज़ें देसी ही लेने की कोशिश करता हूँ। अगर वह न मिले / अच्छी न मिले तो बात और है।

सवाल है- क्या बहिष्कार की ऐसी अपीलों से कोई ख़ास फ़र्क़ पड़ता है? मेरा जवाब है- नहीं। ऐसा देखने में आता है कि लोग कुछ दिन तो जोश में आकर बहिष्कार कर देते हैं। फिर पहले वाले ढर्रे पर चलना शुरू कर देते हैं।

साबुन, तेल, चॉकलेट, शीतल पेय ... तो जाने दें, हमारे पास सोशल मीडिया, मैसेजिंग ऐप, सर्च इंजन के नाम पर अपना कुछ ख़ास नहीं है। इक्का-दुक्का है भी, तो उनके प्रदर्शन में दम नहीं है। दूसरी ओर, इतने बड़े-बड़े इस्लामी देश हैं, जो तेल व गैस जैसी दौलत से मालामाल हैं। उनके पास ढंग का ऐप नहीं है।

भारत की ही बात करें तो हर ठीक-ठाक इंजीनियरिंग कॉलेज में ऐसे बच्चे मिल जाएंगे, जिन्हें प्रोत्साहन दिया जाए तो वे कमाल कर सकते हैं। लेकिन उनकी ओर ध्यान नहीं है।

हममें आत्मविश्वास की बड़ी कमी है। हममें से ज़्यादातर का सपना है कि नौ से पांच की सरकारी नौकरी मिल जाए, एक ख़ूबसूरत-सी लड़की (गोरे रंग को प्राथमिकता) से शादी हो जाए, बढ़िया दहेज़ मिल जाए, दो बच्चे हों, तगड़ा बैंक बैलेंस हो ... फिर जब विदेशी सामान के बहिष्कार की सूची घूमते-घामते हम तक आ जाती है तो यह कहते हुए उन्हीं के ऐप पर उसे आगे बढ़ा देते हैं कि दुनिया में ज़ुल्म बहुत बढ़ गया है!

अगर ज़ुल्म से बचना चाहते हैं, स्वाभिमान से जीना चाहते हैं तो अपने कारोबार बढ़ाएं, अपनी ओर से नई खोज करें, नए आविष्कार लेकर आएं, अपने ऐप बनाएं, ताकि बहिष्कार की नौबत ही न आए।

.. राजीव शर्मा ..

कोलसिया, झुंझुनूं, राजस्थान

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