सत्येंद्र कुमार-
भारत एक ऐसा देश है जहाँ का कानून तमाम ख़ामियों से भरा होने के बावजूद इसके नायाब होने का ढिंढोरा पूरी बेशर्मी के साथ पीटा जाता है । अंग्रेजो ने ये कानून इसलिए बनाये थे कि इस कानून के जरिये गोरे लोग कालों को दबा कुचल सके और उनपर राज कर सकें । आज गोरे तो नही रहे लेकिन कानून वही है । नियति ने ऐसा खेल दिखाया कि आज इस कानून की बाग़डोर कालों के हाथ मे है और इसकी चोट अपने लोग अपनों पर ही कर रहे हैं । यहाँ 13 साल से ऊपर के बच्चे को वयस्क मानकर उसका पूरा टिकट वसूल किया जाता है लेकिन 16 साल के बलात्कारी को अवयस्क मानकर रियायत दे दी जाती है । यहाँ शराब और गुटखे के पाउच पर सेहत के लिए हानिकारक है लिखकर बेचा जा सकता है लेकिन पटाखों पर पर्यावरण के लिए हानिकारक है लिखकर उसे फोड़ा नही जा सकता ।
अंग्रेजी की एक कहावत है "रूल्स आर मेड फ़ॉर फूल्स" मतलब नियम कानून सिर्फ मूर्खों के लिए बनाए गए हैं । यहाँ मूर्ख का अर्थ मात्र ऐसे लोगों से है जो कानून से ही चलना चाहते हैं लेकिन एक न एक दिन कानून के ही चुंगल में फंसा दिए जाते हैं । इसके ठीक उलट हिंदी में एक कहावत है "समरथ को नही दोष गुसाई" मतलब नियम कानून को मानने की बाध्यता हमेशा कमजोर अर्थात मूर्खों के लिए होती है । कमजोर के लिए अपने को निर्दोष साबित करना केवल तभी संभव हो सकता है जब खुद उसके पास वैसी या उससे बड़ी ताकत आ जाये । यदि आज के माहौल की तुलना कुछ वर्षों पूर्व से कर ली जाए तो पहले मान्या सुर्वे, हाजी मस्तान, संदीप भाटी, लॉरेंस विशनोई, अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी, मुन्ना बजरंगी, सुधीर सिंह, प्रदीप सिंह, श्री प्रकाश शुक्ला जैसे खतरनाक लोगों को गैंगेस्टर का रुतबा और तमगा हासिल था लेकिन आज बिस्कुट और साइकिल चुराने वाला चिमरखी टाइप का मरियल आदमी भी गैंगेस्टर है बशर्ते ये चोरी उसने अकेले नही बल्कि किसी के साथ मिलकर की हो ।
आज प्रदेश के लगभग हर जिले में गैंगेस्टर का टास्क और टारगेट पूरा करने की ऐसी होड़ पुलिस में मची है कि मर चुके आदमी पर भी आंख बंद कर गैंगेस्टर ठोक दिया जा रहा है । चिमरखी टाइप का चोर भी गैंगेस्टर हो सकता है पोल खोलने वाला पत्रकार और डिग्री बेचने वाला डॉक्टर भी गैंगेस्टर हो सकता है । दुकानदार और व्यवसायी तथा किसान भी गैंगेस्टर हो सकता है लेकिन एक पुलिस वाला यदि चरस की स्मगलिंग में दो तीन लोगों के साथ पकड़ लिया जाए तो वो गैंगेस्टर नही हो सकता और वहाँ गैंगेस्टर एक्ट फेल हो जाता है ।
टारगेट पूरा करने की पुलिसिया ललक ने गैंगेस्टर शब्द का रुतबा और जलवा दोनो खत्म कर दिया है । वास्तव में जो गैंगेस्टर हैं उनका रुतबा और मोह अब गैंगेस्टर शब्द से भंग हो चुका है । कहने के लिए तो पुलिस रिकॉर्ड में गैंगेस्टरों की संख्या राक्षसी बालों की तरह बढ़ रही है लेकिन अभियोजन पक्ष का रिकॉर्ड देखने से पता चलता है कि गैंगेस्टर के मामलों मे अदालतों में सजा सिर्फ मुख्तार अंसारी जैसे लोगों को होती है जो वाकई में गैंगेस्टर शब्द को परिभाषित करते हैं । बाकी चिमरखी टाइप लोगों को कटघरे में देखते ही अदालतें समझ जाती हैं ये चिमरखी गैंगेस्टर है नही बल्कि बनाये गए हैं अदालत का वक्त जाया करने के लिए !
अब सवाल यह उठता है कि क्या हमारी पुलिस वाकई अपराध समाप्त करने की ओर बढ़ रही है या गैंगेस्टर जैसी धारा का उपयोग कर उन लोगो को भी सामाजिक तौर पर एक बड़ा अपराधी घोषित कर दे रही है,जो समाज की मुख्य धारा से फिर वापस जुड़ सकते थे और एक सामान्य जिंदगी जी सकते थे । पत्रकार तो फिर से कलम और डॉक्टर फिर से छुरी कैची ही चलाएगा साथ ही किसान भी फिर से खेती ही करेगा लेकिन बाकी के चिमरखी चोर टाइप क्या करेंगे ? वे निश्चित तौर पर अपराध की ओर अग्रसर होंगे और भविष्य में सिस्टम तथा आम जन के लिए परेशानी का सबब बनेंगे ।
16.11.23
टारगेट पूरा करने के चक्कर मे भूँजा बनकर रह गया है, यू पी में गंगेस्टर एक्ट !
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