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1.1.08

जंग लगी जम्हूरियत

एक और नया वर्ष,
एक और नय़ा साल संघर्षों का,
एक और नय़ा साल उम्मीदों का,
एक और नय़ा साल नई सोच बनाने का।
इस नये साल में
आगाज़ है,क्रांति का
आगाज़ है,स्वाभिमान का
आगाज़ है,चेतना का
आगाज़ है,विश्वास का
आगाज़ है,सत्य का
आगाज़ है,अनवरत संघर्ष का
आगाज़ है उस इंकलाब का,
जो ऐसे भारत का नव निर्माण करेगा
जिसमें योग्यता पैमाना होगी,
संवेदनाओं भावनाओं का
निस्वार्थ समर्पण होगा,
राष्ट्र के जातिहीन,अधर्म ऱहित,
विकास के लिए ।
और क्रांति की,
बागडोर होगी,
नवयुग के नव निर्माता,
जातिहीन,स्वार्थ हीन द्वेष ऱहित,
छात्रों के हाथ
और नारा होगा
इंकलाब ।
इस आगाज़ के साथ एक नये समाज की कल्पना संजोते हुए,
अपनी एक और गज़ल को,
अपने आर्दश दुष्यंत कुमार जी त्यागी को,
उनकी पुण्यतिथि 30 दिस. पर
समर्पित करते हुए आप सभी को एक बार फिर से नव वर्ष की हार्दिक हार्दिक
शुभकामनाऐं ।

जंग लगी जम्हूरियत

घर नया खरीदा है,रोशनी नहीं हैं यारों,
वतन हो चुका आजाद हर शख्स यहाँ लुटेरा यारों ।
बदनसीबी,गरीबी से शिकस्त होती है हर बार,
गरीब हो तुम गरीबी में ही रहो यारों ।
कल सुना है की पटरी पर कोई शख्स कटा है,
दुनियावी जहमतों से वो आजाद हो गया यारों ।
इन इंसानों की निगाहों में कुछ कमीनापन सा दिखता है,
घर में बहन बेटी हो तो सम्हालों यारों ।
हिंद को बदलनें की बात कर रहे थे जो हरामखोर,
विदेशी सरज़मीं पर घर खरीद लिया है यारों ।
परदा किये हुए अपनी माँ को देखा है हर बार,
सड़ चुकी जो परंपराऐ,बदलो नया वक्त है यारों ।
नलों में पानी,खंबों में बिजली,पेट मे खाना नहीं,सटीक देश है,
गुजारिश है,जहां मिले नेता,सालों को पटक पटक के मारो यारों ।

अनुराग अमिताभ

1 comment:

यशवंत सिंह yashwant singh said...

अद्भुत है यह....शुक्रिया....