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3.1.08

दो गज कफ़न का टुकड़ा तेरा लिबास होगा।

पिछले महीने एक अत्यंत दु:खद अनुभव से होकर गुज़रना पडा।
उस के पश्चात लगने लगा कि हम सब लोग माया की जिस अन्धी दौड़ मे लगे
हैं वो सब कोरी बकवास है, हमारी आंखों पर मोह माया की ऐसी पट्टी
पड गई है जिस कारण हम लोग भौतिक सुख संसाधनो को प्राप्त
करने की इच्छाओं से अलग होकर नही देख पाते।
फ़िर एक खयाल आया कि भई इस संसार में हैं तो जीना ही पडेगा।
और भौतिक सुख सुविधाओं के बिना जीना असंभव है, इसी लिये माया
की जय जयकार है। इसी लिये हम सब लगे पडे हैं, मेरे साथ ऐसा अनुभव
हो गया तो मुझे ऐसा लग रहा है, शायद एक दो महीने बाद मै फ़िर वापस
उसी मन:स्थिति को प्राप्त कर लूं?कह नही सकता पर एक अजीब सी जददो जेहद है ये।
मैने पिताजी के संस्कार के वक्त, श्मसान में एक कविता पढी़
पता नही इसे कविता कहा जाये या जीवन का सत्य?
लेकिन मुझे ये काफ़ी भयावह और बिलकुल सच लगी
आप सभी के लिये मै इसका उल्लेख भडास पर कर रहा हूं।

दो गज कफ़न का टुकड़ा तेरा लिबास होगा।
दो गज कफ़न का टुकड़ा तेरा लिबास होगा।

जायेगा जब यहां से कुछ भी न पास होगा॥
कंधे पर धर ले जायें, परिवार वाले तेरे।
यमदूत ले पकड कर डालेंगे घेरे घेरे॥
पीटेंगे छाती अपनी, कुनबा उदास होगा।
दो गज कफ़न का टुकड़ा तेरा लिबास होगा।
चुन चुन के लकड़ियों मे रख दें तेरे बदन को।
आकर झट उठा लें श्मसानी तेरे कफ़न को।
देवेगा आग तुझमे बेटा जो खास होगा॥
दो गज कफ़न का टुकडा तेरा लिबास होगा।
मिट्टी मे मिले मिट्टी, बाकी ना कुछ भी होगा।
सोने सी तेरी काया जल कर के खाक होगी।
दुनिया को त्याग, तेरा मरघट में वास होगा।
दो गज कफ़न का टुकडा तेरा लिबास होगा॥
हरी का नाम लेके, भव सिन्धु पार होते।
माया के मोह में फ़ंसकर, जीवन का मोल खोते॥
प्रभु का नाम जप ले, बेडा जो पार होगा।
जायेगा जब यहां से कुछ भी ना पास होगा॥

धन्यवाद
अंकित माथुर...

3 comments:

यशवंत सिंह yashwant singh said...

भाई, दुख की बेला पर जो कुछ महसूस किया आपने वही शाश्वत और अंतिम सच है। भंवरवा के तोहरा संग जाई....। बावजूद इस सबके ज़िंदगी जो चीज है ना, वह इसी तरह फंसती, गिरती, पड़ती, उठती, दौड़ती, सुस्ताती, चलती, फिरती...आगे बढ़ती रहती है।

यशवंत

Ankit Mathur said...

यशवंत भाई आपका कहा सही है!
सम्बल एवं प्रेरणा देने के लिये धन्यवाद।

neeraj said...

This is the truth of life.