नव सर्जन के लिए ध्वंस
पुनर्निर्माण और नव सर्जन के लिए जर्जर ढाँचे का ध्वंस होना जरुरी है। महात्मा ने
देश स्वतन्त्र होने के बाद यही सन्देश दिया था लेकिन देशवासी समझ नहीं पाये थे
और उस संगठन को जिन्दा रखते रहे जो देश की स्वतंत्रता के उद्देश्य के लिए बनाया
गया था और वह गौरवशाली संगठन अपना उद्देश्य पूरा कर चूका था। वन में खड़ा
कभी हरा -भरा रहा पेड़ जब ठूँठ बन जाता है तो उसे जलाने के उपयोग में ले लेना
चाहिए उसका खड़ा रहना वन की शोभा को कम करता है क्योंकि उस पर कभी पक्षियों
का कलरव नहीं गूँजता केवल उल्लू और कौए ही बसते हैं। हमने प्रकृति के विरुद्ध काम
किया और ठूँठ को जलाने की जगह हरा भरा करने में अपनी ऊर्जा लगाने लगे।
देश की आजादी के लिए बना सँगठन हमें आजादी दे गया ,वह आजादी के बाद की
विकास गाथा को लिखने के लिए बना ही नही था मगर हम ध्वंस नहीं कर पाये और
नतीजा यह रहा कि हम विकास की दौड़ में लकवाग्रस्त होकर गिर पड़े। पेड़ की जड़े
भी साल में एक बार पेड़ के सभी पोषक तत्व पत्तो तक नहीं पहुँचने देती ,क्यों ?
जड़े जानती है कि पेड़ का नवसर्जन करना है तो पके हुए पत्तो का जड़ना जरूरी है
मगर हम पीले पड़ चुके पत्तो से ठण्डी हवा लेना चाहते थे ,क्या मिला ??
देश को सुदृढ़ अर्थ तंत्र किसी भी धर्म का प्रमुख नहीं दे सकता है,मजबूत
अर्थ व्यवस्था के लिए राष्ट्रवादी विचारधारा चाहिए और समर्पण चाहिए। देश का
दुर्भाग्य है कि हमारे नेता समर्पण से काम करने की बजाय पाँच साल तक नींद लेते
हैं और देश को लूटते हैं ,जनता पर आक्सीजन लेने और मरने के बाद अन्तिम
क्रियाकर्म को छोड़ हर गतिविधि पर कर के डंक मारते हैं मगर फिर भी आश्चर्य इस
बात का है कि हर कोई सहन करने का आदी हो चूका है ,तुच्छ नेता हमारे खून को
गर्म करके अपनी रोटियाँ सेकते रहते हैं मगर कभी हमारे दिमाग को नहीं झकझोरते
हैं।
हम लोग रोना रोते हैं ,संघर्ष करते हैं,फोकट में सुविधाएँ चाहते हैं पर नवसर्जन
के लिए अनुपयोगी का ध्वंस नहीं चाहते। अनुपयोगी वस्तुओं से मोह हमें दुःख दे
रहा है। हम सालो तक बोझ ढो सकते हैं मगर नव सर्जन की चाह नहीं रखते।
जब भी भारत का भविष्य बनाने का अवसर आता है हम कर्त्तव्यच्युत हो जाते
हैं ,हम अपने मताधिकार का राष्ट्र के हित में प्रयोग भी नहीं करते हैं। मतदान
के प्रति हमारी उदासीनता से हमारे पर लूटेरे,अपराधी,धुर्त,बलात्कारी,हत्यारे,
और लफंगे राज करते हैं, 12 से 22% मत पाने वाले लोग जन प्रतिनिधि बन
जाते हैं ,क्या ऐसे ही जीना चाहेंगे ?यदि हाँ तो फिर दोष देना बंद कीजिये और
अगर ना तो फिर नवसर्जन के लिए अनुपयोगी ठूँठ को उखाड़ फेंकिये। सबके
विकास के लिए मुट्ठी बाँध लीजिये और राष्ट्रवादी विचारधारा की जीत को
सुनिश्चित कीजिये।
पुनर्निर्माण और नव सर्जन के लिए जर्जर ढाँचे का ध्वंस होना जरुरी है। महात्मा ने
देश स्वतन्त्र होने के बाद यही सन्देश दिया था लेकिन देशवासी समझ नहीं पाये थे
और उस संगठन को जिन्दा रखते रहे जो देश की स्वतंत्रता के उद्देश्य के लिए बनाया
गया था और वह गौरवशाली संगठन अपना उद्देश्य पूरा कर चूका था। वन में खड़ा
कभी हरा -भरा रहा पेड़ जब ठूँठ बन जाता है तो उसे जलाने के उपयोग में ले लेना
चाहिए उसका खड़ा रहना वन की शोभा को कम करता है क्योंकि उस पर कभी पक्षियों
का कलरव नहीं गूँजता केवल उल्लू और कौए ही बसते हैं। हमने प्रकृति के विरुद्ध काम
किया और ठूँठ को जलाने की जगह हरा भरा करने में अपनी ऊर्जा लगाने लगे।
देश की आजादी के लिए बना सँगठन हमें आजादी दे गया ,वह आजादी के बाद की
विकास गाथा को लिखने के लिए बना ही नही था मगर हम ध्वंस नहीं कर पाये और
नतीजा यह रहा कि हम विकास की दौड़ में लकवाग्रस्त होकर गिर पड़े। पेड़ की जड़े
भी साल में एक बार पेड़ के सभी पोषक तत्व पत्तो तक नहीं पहुँचने देती ,क्यों ?
जड़े जानती है कि पेड़ का नवसर्जन करना है तो पके हुए पत्तो का जड़ना जरूरी है
मगर हम पीले पड़ चुके पत्तो से ठण्डी हवा लेना चाहते थे ,क्या मिला ??
देश को सुदृढ़ अर्थ तंत्र किसी भी धर्म का प्रमुख नहीं दे सकता है,मजबूत
अर्थ व्यवस्था के लिए राष्ट्रवादी विचारधारा चाहिए और समर्पण चाहिए। देश का
दुर्भाग्य है कि हमारे नेता समर्पण से काम करने की बजाय पाँच साल तक नींद लेते
हैं और देश को लूटते हैं ,जनता पर आक्सीजन लेने और मरने के बाद अन्तिम
क्रियाकर्म को छोड़ हर गतिविधि पर कर के डंक मारते हैं मगर फिर भी आश्चर्य इस
बात का है कि हर कोई सहन करने का आदी हो चूका है ,तुच्छ नेता हमारे खून को
गर्म करके अपनी रोटियाँ सेकते रहते हैं मगर कभी हमारे दिमाग को नहीं झकझोरते
हैं।
हम लोग रोना रोते हैं ,संघर्ष करते हैं,फोकट में सुविधाएँ चाहते हैं पर नवसर्जन
के लिए अनुपयोगी का ध्वंस नहीं चाहते। अनुपयोगी वस्तुओं से मोह हमें दुःख दे
रहा है। हम सालो तक बोझ ढो सकते हैं मगर नव सर्जन की चाह नहीं रखते।
जब भी भारत का भविष्य बनाने का अवसर आता है हम कर्त्तव्यच्युत हो जाते
हैं ,हम अपने मताधिकार का राष्ट्र के हित में प्रयोग भी नहीं करते हैं। मतदान
के प्रति हमारी उदासीनता से हमारे पर लूटेरे,अपराधी,धुर्त,बलात्कारी,हत्यारे,
और लफंगे राज करते हैं, 12 से 22% मत पाने वाले लोग जन प्रतिनिधि बन
जाते हैं ,क्या ऐसे ही जीना चाहेंगे ?यदि हाँ तो फिर दोष देना बंद कीजिये और
अगर ना तो फिर नवसर्जन के लिए अनुपयोगी ठूँठ को उखाड़ फेंकिये। सबके
विकास के लिए मुट्ठी बाँध लीजिये और राष्ट्रवादी विचारधारा की जीत को
सुनिश्चित कीजिये।
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