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24.7.14

जीवन सूत्र

जीवन सूत्र 

जो जीतना चाहता है वह समस्या को सिरे से समझने पर ध्यान केंद्रित कर देता
है और हारने वाला समस्या को नजरअंदाज कर देता है

बेशक, झूठ बोलने से काफी काम बन जाते हैं मगर झूठ गढ़ने, झूठी योजना तैयार
करने, झूठे साक्ष्य बनाने, झूठ को पेश करने और जिंदगी भर हर झूठ पर दी गई
दलील को याद रखने में बहुत ऊर्जा और उम्र (समय) खर्च हो जाती है जबकि सच
बोलने में बहुत कम ऊर्जा और समय लगता है। उम्र छोटी होती है और फैसला स्वयं
को ही करना होता है कि किसको चुने - झूठ या सच  .......

यह सच है कि हम सबके पास अपने स्वर्णिम भविष्य की योजना है लेकिन यह भी
सच है कि हम में से अधिकांश असफल या गुमनाम हो जाते हैं इसका कारण यह है
कि हम अपने लिए अच्छी योजना आज "TODAY"बनाते हैं और उसे कल TOMORROW
से शुरू करना चाहते हैं।

परमात्मा ने जिस मनुष्य को जो कुछ दिया है उसको वह न्यूनतम लगता है तथा
और ज्यादा पाने की याचना करता है,मगर किसी मित्र,परिचित या रिश्तेदार को कुछ
देता है तो मनुष्य उसे बहुत ज्यादा मानता है और ईर्ष्या से सुलगता रहता है। मनुष्य
ने जो कुछ भी अर्जित किया है उसका श्रेय खुद को देता है और जिसे प्राप्त नहीं कर
सका उसका कारण भगवान में ढूंढता है। जो मनुष्य इससे परे है वह पूजनीय है  ....

इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता है की एवरेस्ट की चोटी हजारों फीट की
ऊँचाई पर है परन्तु यह भी सच है कि कदम दर कदम चल कर इसके शिखर को
पैरों तले रौंदा जा सकता है। इरादा जब अटूट बन जाता है तो काँटे गुलाब की
मुस्कराहट को रोकने में कामयाब नहीं होते और कीचड़ भी कमल को खिलने से
रोक नहीं सकता।

पँछी अपने घोंसले से सुबह चहचहाता हुआ उड़ान भरता है और शाम को कलरव
करता लौट आता है,उसके लिए कोई भी दिन बुरा नहीं होता क्योंकि उसको अपनी
उड़ान पर भरोसा है ,भयंकर दुष्काल में भी वह जमीन के अन्दर पड़े दाने को खोज
निकालता है और एक तरफ विवेक और बुद्धि से सम्पन्न मनुष्य है जो हर समय
अच्छे वक्त के इन्तजार में बैठा रहता है,प्रतिकुल समय में आर्थिक मंदी का मातम
मनाता हुआ दीन हीन बन कर बैठ जाता है या सरकार के कंधे की सवारी कर वैतरणी
पार करना चाहता है,क्या हम रोना रोते बैठे रहने वालो की कतार में खड़े रहना चाहते
हैं या पुरुषार्थ के पँख लगाकर उड़ना चाहते हैं ?फैसला भगवान ने मनुष्य पर छोड़
रखा है कि उसे क्या मिलना चाहिये और क्या नहीं  ………।     

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