------ -----झूठ का अंदाज़ ऐसा सच गच्चा खा गया
आजकल चायवाले गर्व से भरे पर डरे हुये हैं।उनका डर वाज़िब भी है ।इतिहास बताता है कि हम ने जैसे ही गर्व किया मान किया हमारा मानभंग हो गया।यों भी जो कामनेता करने लगता है तो वह काम अछूत हो जाता है।जैसे टोपी लगाया हुआ नेता देखते ही लगता है बचो भाई आ गया टोपी पहनाने वाला।कमल के फूल खिले तालाबढकवाने की नौबत आ जाती है ।मेरी पडोसी ने तो घर में झाडू लगानी बंद कर दी।घुटनों के जोड जाम होने लगे तो हमारे डाक्टर ने कहा आप साइकिल चलाया करिये।मुझे क्या पता था कि डाक्टर की यह सलाह मुझे किसी पार्टी से जोड देगी।शाम को मुहल्ले के आठ दस संभ्रात लोगों ने दरवाजा खटखटाया और बहुत अदब के साथ मुझेनमस्ते कर दो मिनट बात करने की इज़ाज़त मांगी ।मैं हैरान कि इतनी इज़्ज़त तो मेरी वैध अपनी पत्नी ने भी मुझे तब नहीं दी थी जब मै वह मुझे कुछ भी समर्पितकरने से पहले 'त्वदीयं वस्तु गोविंदम तुभ्यमेव समर्पयामि' कहा करती थी। अतः सम्मान के बोझ से टूट जाने की अवस्था तक पहुंच चुके मैने लगभग हकलाते हुये क्क्यों नहीं क्यों नहीं कहते हुये सब को घर के भीतर स्थान ग्रहण करने को रास्ता दिया तो ऐसा लगा हर कोई सामीप्य को लालायित था और एक झटके में सोफे औरदीवान पर सभी विराजमान हो गये। मेरी आंखें बात करने की अनुमति मांगने वाले सज्जन के मुख मंडल पर टिक गयीं।उन्होने भूमिका बनाते हुये बोलना शुरू किया---"देखिये पथिक जी हम आपको बता नहीं सकते कि हमें आज कितनी प्रसन्नता है यह जानकर कर कि आप अपने आदमी हैं ।अब हमारी बडी मुश्किल आसान होगई।"मैं भौचक्का सा उनका मुंह देखे जा रहा था।तभी दूसरा धीरे से राज़दार अंदाज़ में बोला --देखो अब साफ साफ कहने मे कोई बुराई नहीं हम तो आपको खाकी निक्करवाला समझ रहे थे पर कल ही उन्होनें 'चाय स्टाल ' लगाया और आज ही आप 'साइकिल' पर सवार नज़र आये तो मैं समझ गया कि आप लेखक हो कवि होप्रतीकात्मक ढंग से अपना विरोध दर्ज करा रहे हो।इसे कहते हैं बुद्धिजीवी।" मैं बात का सिरा पकड पाता उससे पहले ही वे सज्जन फिर बोल पडे--" नेताजी ने आप जैसेलोगों को जोडने की बात की है और हम पार्टी लाइन पर चलते हुये यह चाहते हैं कि इन सांप्रदायिक शक्तियों को जड से ऊखाड फेंकने में आप हमारी मदद करें।आपलेखक है और हमारे अपने हैं तो चार छः धांसू नारे लिख दें।"मैने पीछा छुडाने की गरज़ से जी ज़रूर कह कर ज़रूरी काम से कहीं जाना है का बहाना बना कर किसी तरहसब को विदा कर राहत की सांस ली।टीवी आन किया तो देखा -पप्पू भैया कह रहे हैं----"पार्टी लाइन से हट कर नही बोलना है ।चाय वाले की पोल खोलना है पर इस तरहनही कि कल हर चाय वाला पार्टी कार्यालय मे ज़गह मांगने लगे।जैसे आप लोगों के वचन और प्रवचन हैं मुझे लगता है कि इलेक्शन के बाद मुझे भी 'पप्पू टी स्टाल' केलिये ज़गह तलाशनी होगी।तुम लोग मेरा फटूरे खराब करने पर तुले हो।वो भाषण लिखने वाले पंडित जी बहक गये कहने लगे आरक्षण हटाओ 'यूजलेस' है तो उधरअय्यर अंकल के पास खुद जूते पालिश करने का ठीया नहीं पार्टी कार्यालय में निककर वाले का 'टी स्टाल ' खुलवा रहे हैं।मुझे पप्पू पर दया आयी ।जो बात लोग 'आफ दरिकार्ड ' कहते हैं वह बात ये लडका स्वीकार कर लेता है पर किसी ने ठीक ही कहा है कि भलमनसाहत काम ज़माना ही नही। हर ज़गह 'फेंकू' हैं। 'घर में भुंजी भांगनही"हमारे यहां आ गये लोहा मांगने।'स्टैच्यु आफ लिबर्टी' देखने का वीजा नहीं मिला तो लगे 'स्टैच्यू आफ यूनिटी ' बनाने।ज़रूर बनाओ भैया पर आम आदमी के लोहे केदम पर नहीं अपनी दम पर अपनी तो कमर भी ४० इंच की है 'फेंकने' में क्या जाता है ? नापेगा कौन कि छाती ५६ इंच की है या 'छप्पन छुरी' की।ये साला आदमी यहां भीघुस आया बहुत नाक में दम कर रखा है इसने। मीडिया को ऐसा हाईजैक किया है कि अलकायदा वाले भी ट्रेनिंग के लिये 'मिसकाल' से रज़िस्ट्रेशन करा रहे हैं।कुलमिलाकर ये पालिटिक्स है बडी कुत्ती चीज़ किसी को 'मान्यवर' कहो तो 'बहन जी' के आदमी।किसी को सम्मान के साथ 'आप' कहकर बुलाओ केज़रीवाल के आदमी।'राम राम ' करो तो भाज़पाई और हाथ हिलाओ तो कांग्रेस (आई)अब हम करें तो करें क्या?हर ज़गह झूठ की जयतभी तो मैं कहता हूं--
झूठ का अंदाज़ ऐसा सच गच्चा खा गया,कई बुढ्ढों का करियर एक बच्चा खा गया।
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