सच में ,जीतना आसान है।
कार्य का परिणाम क्या आना चाहिये इस बात पर गहन चिंतन और विचार विमर्श
तब तक होना चाहिए जब तक उस काम को करना शुरू नहीं किया है। पूर्ण चिंतन
के बाद करने योग्य काम में देरी करना हमारे कमजोर आत्मविश्वास को दर्शाता है।
काम को शुरू नहीं करना हमारे निठल्लेपन को दर्शाता है। हाथ में लिए काम को
भय वश बीच में छोड़ देना हमारी अयोग्यता को दर्शाता है। कार्य के पूरा ना होने
तक हार जीत की परवाह किये बिना पुरे मनोयोग से डटे रहना दैवीय सत्ता को
उचित परिणाम देने के लिए मजबूर करना दर्शाता है। इसलिए वेद कहते हैं कि
देव भी पुरुषार्थ के पीछे चलता है ………
यदि सही में आप जीत चाहते हैं तो दुनियाँ की कोई ताकत आपको हरा नहीं सकती।
जीत के लिए खुद को पूर्ण रूप से तैयार तो कीजिये, आप ने अपने को हार की जंजीरो
से झकड रखा है!! एक बार आत्म विश्लेषण कीजिये ,खुद को जानिये। अगर आप खुद
को जान जायेंगे तो आप निश्चित रूप से अपने असफल होने के सही कारण को पकड़
पायेंगे। क्या आपने अपने प्रति हीन विचार बना रखे हैं ?क्या आप अपने पर शंका
करते रहते हैं ?क्या आप अपने मन को कार्य शुरू करने से पहले ही नकारात्मक
सन्देश देने लग जाते हैं ?क्या आप अपने मन में भय,चिन्ता,निराशा,असफलता ,
हानि और दुःस्वप्न को स्थान दे चुके हैं ? यदि हाँ तो फिर आप जीत के लिए बने ही
नहीं है। जीत से पहले मन में जीत के ,केवल जीत के विचार लाने पड़ते हैं और यह
काम दूसरा नहीं कर सकता सिर्फ आप ही कर सकते हैं
आप सफलता के शिखर तक पहुँचना चाहते हैं इसलिए तो उस अनजान मार्ग की ओर
कदम बढ़ा चुके हैं ,मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ है ,इस मार्ग पर आपको जगह -जगह
निश्चित रूप से मार्गदर्शक पट्टिकाएँ मिलेगी जो आपका मार्ग दर्शन करेंगी। मैं चाहूँगा कि
आप उन साइनबोर्ड को पढ़कर वापिस नहीं लौटेंगे और नयी रह चुनते हुये आगे बढ़ते जायेंगे।
मार्ग में लिखे उन साइन बोर्ड पर मोटे अक्षरों में लिखा मिलेगा -"यह रास्ता सफलता की ओर
नहीं जाता " वास्तव में असफलता हमे नए मार्ग की तरफ बढ़ने को प्रोत्साहित करने के लिए
आती है हमारी सही मार्ग दर्शक बनकर,यह हमे हताश करने नहीं आती मगर हम इसे राह का
रोड़ा मानकर खुद के आत्मविश्वास को कमजोर कर लेते है ओर असफलता को नकारात्मक
रूप में लेकर कदम थाम लेते हैं या पीछे मुड़ जाते हैं ...................
कार्य का परिणाम क्या आना चाहिये इस बात पर गहन चिंतन और विचार विमर्श
तब तक होना चाहिए जब तक उस काम को करना शुरू नहीं किया है। पूर्ण चिंतन
के बाद करने योग्य काम में देरी करना हमारे कमजोर आत्मविश्वास को दर्शाता है।
काम को शुरू नहीं करना हमारे निठल्लेपन को दर्शाता है। हाथ में लिए काम को
भय वश बीच में छोड़ देना हमारी अयोग्यता को दर्शाता है। कार्य के पूरा ना होने
तक हार जीत की परवाह किये बिना पुरे मनोयोग से डटे रहना दैवीय सत्ता को
उचित परिणाम देने के लिए मजबूर करना दर्शाता है। इसलिए वेद कहते हैं कि
देव भी पुरुषार्थ के पीछे चलता है ………
यदि सही में आप जीत चाहते हैं तो दुनियाँ की कोई ताकत आपको हरा नहीं सकती।
जीत के लिए खुद को पूर्ण रूप से तैयार तो कीजिये, आप ने अपने को हार की जंजीरो
से झकड रखा है!! एक बार आत्म विश्लेषण कीजिये ,खुद को जानिये। अगर आप खुद
को जान जायेंगे तो आप निश्चित रूप से अपने असफल होने के सही कारण को पकड़
पायेंगे। क्या आपने अपने प्रति हीन विचार बना रखे हैं ?क्या आप अपने पर शंका
करते रहते हैं ?क्या आप अपने मन को कार्य शुरू करने से पहले ही नकारात्मक
सन्देश देने लग जाते हैं ?क्या आप अपने मन में भय,चिन्ता,निराशा,असफलता ,
हानि और दुःस्वप्न को स्थान दे चुके हैं ? यदि हाँ तो फिर आप जीत के लिए बने ही
नहीं है। जीत से पहले मन में जीत के ,केवल जीत के विचार लाने पड़ते हैं और यह
काम दूसरा नहीं कर सकता सिर्फ आप ही कर सकते हैं
आप सफलता के शिखर तक पहुँचना चाहते हैं इसलिए तो उस अनजान मार्ग की ओर
कदम बढ़ा चुके हैं ,मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ है ,इस मार्ग पर आपको जगह -जगह
निश्चित रूप से मार्गदर्शक पट्टिकाएँ मिलेगी जो आपका मार्ग दर्शन करेंगी। मैं चाहूँगा कि
आप उन साइनबोर्ड को पढ़कर वापिस नहीं लौटेंगे और नयी रह चुनते हुये आगे बढ़ते जायेंगे।
मार्ग में लिखे उन साइन बोर्ड पर मोटे अक्षरों में लिखा मिलेगा -"यह रास्ता सफलता की ओर
नहीं जाता " वास्तव में असफलता हमे नए मार्ग की तरफ बढ़ने को प्रोत्साहित करने के लिए
आती है हमारी सही मार्ग दर्शक बनकर,यह हमे हताश करने नहीं आती मगर हम इसे राह का
रोड़ा मानकर खुद के आत्मविश्वास को कमजोर कर लेते है ओर असफलता को नकारात्मक
रूप में लेकर कदम थाम लेते हैं या पीछे मुड़ जाते हैं ...................
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