जोधपुर। डीएवीपी की दमनकारी नई विज्ञापन नीति एवं मोदी सरकार द्वारा लागू किया गया जीएसटी प्रिन्ट मीडिया की जान लेना शुरू कर चुका है। इसे अघोषित इमरजेन्सी कह दिया जाये तो कोई अतिश्योक्ति न होगी। प्रिन्ट मीडिया के लिए राज्य एवं केन्द्र सरकार ने हमेशा सर्कूलेशन स्लेब के आधार पर विज्ञापन दरें तय करने का प्रावधान रखा। अखबारों की सीनियारटी पर कभी गौर नहीं किया। मजबूर होकर अखबार मालिक विज्ञापन दर हासिल करने के फेर मे कुछ सर्कूलेशन बढा कर रेट हासिल करते थे। यदि सीनियारटी के आधार पर रेट तय होता तो शायद ही कोई अखबार वाला इस फेर मे पड़ता।
डीएवीपी की विज्ञापन नीति से सैकड़ों अखबार बाहर हो गये। छोटे एवं मध्यम अखबार निकाल कर पत्रकारिता करने वालों पर 20 से 30 लाख की प्रिन्टिंग मशीन लगाने, न्यूज एजेन्सियों से सेवायें लेने की बाध्यता जैसे प्रावधान लागू कर दिये गये। जो छोटे अखबारों के बूते से बाहर थे। 1 जून 17 से नई विज्ञापन नीति लागू कर डीएवीपी ने कईयों का गला घोंट दिया। बड़े चोर तो हमेशा शातिर होते हैं वे बच गये।
अब तक डीएवीपी के सदमे से छोटे अखबार बाहर आये ही नही कि जीएसटी जैसे कानून ने इन अखबारों की जान खतरे मे डाल दी। न्यूज पेपर छापने वाली प्रिन्टिंग मशीन पर 5प्रतिशत, विज्ञापनों पर 5 प्रतिशत और न्यूज प्रिन्ट पेपर खरीदने पर 5 प्रतिशत जीएसटी का प्रावधान हैं। दोस्तों, हकीकत यह हैं कि राज्य एवं केन्द्र सरकार से कुल मिला कर छोटे अखबारों को सालाना 1 से डेढ लाख के औसतन विज्ञापन भी नही जाते हैं। यदि 25 लाख की प्रिन्टिंग मशीन लगा कर अखबार छापें तो उसका ब्याज भी 1 रूपया सैकड़ा के हिसाब से सालाना 3 लाख से अधिक होता हैं उपर से प्रेस चलाने के लिए ऑपरेटरों, हेल्परों की सालाना सैलेरी भी 3 लाख से अधिक होती हैं। ऐसी स्थिति मे बाकी खर्चो को नही भी जोड़े ंतो क्या हालात बनते हैं कि छोटे अखबार बच पायेंगे?
दूसरी तरफ करोड़ों के सरकारी विज्ञापन लेने वाले इलेक्ट्रोनिक चैनलों के लिए कोई जीएसटी नही, कोई सर्कूलेशन जांच का फण्डा नही। जो रोजाना सुबह मंत्रियों, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों के घरों के बाहर उनकी झलक दिखाने को बेताब नजर आते हैं। दोस्तों, मीडिया के साथियेां ने भी अपना पूर जोर विरोध नही दिखाया। कुछ लोग विरोध कर रहे हैं, कोर्ट कचहरी मे भी गये हैं लेकिन कमजोर विरोध पर सरकार नही चेत रही हैं। हम कोई किसान या बाहुबली नही जो शक्तिप्रदर्शन कर सरकार से अपनी मांगे मनवा लें।
दोस्तों, अब प्रिन्ट मीडिया के हालात बेहद दयनीय हैं उससे जुड़े लाखों लोग बेरोजगार हो जायेंगे, उनके परिवार के सामने रोटी रोजी का संकट खड़ा हो जायेगा। इसलिए सभी पूर जोर यह मांग सरकार के सामने रखें कि:-
1- अखबारों की सीनियरटी अनुसार विज्ञापन दरें राज्य एवं केन्द्र सरकार तय करें, ताकि फर्जी सर्कूलेशन की बीमारी स्वत ही खत्म हो जाये और मीडिया कर्मी स्वच्छंद और स्वतंत्र होकर मिशनरी भाव से पत्रकारिता कर सके।
2- अखबारों मे छपने वाले विज्ञापन, पेपर छापने वाली प्रिन्टिंग मशीनों एवं न्यूज प्रिन्ट पेपर को जीएसटी से फ्री रखें, उनकी आर्थिक स्थितियों और सरकार की विज्ञापन सहायता का आंकलन कर कदम उठाने की मांग रखें।
यदि ऐसा नही किया तो आने वाले महिने दो महिनों मे प्रिन्ट मीडिया का नामो निशान मिट जायेगा,खासकर छोटे एवं मंझौले अखबारों का तो गला ही घोंट दिया जायेगा और वे मर जायेंगे? इतिहास बन जायेगा उनका। सिर्फ बड़े हाथी रहेंगे जो पहले की तरह अपनी शातिर हरकतों से चांदी काटते रहेंगे।
केआर माली, सम्पादक
दैनिक मारवाड़ दूत
जोधपुर
मो. 9413789225
12.7.17
प्रिन्ट मीडिया की जान खतरे में, हजारों अखबार होंगे बंद, केवल बचेंगे बड़े हाथी!
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