संजय सक्सेना,लखनऊ
उत्तर प्रदेश में भी डिजिटल क्रांति दिखने लगी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के डिजिटल इंडिया के सपने को साकार करने के लिये उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी कोई कोरकसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। योगी ने अपने छोटे से कार्यकाल में डिजिटल यूपी बनाने के लिये जो कदम उठाये हैं, उसकी जितनी भी सराहना की जाये कम है। योगी के चलते कई विभागों का कामकाज ऑनलाइन हो चुका है। ई टेंडरिंग, शैक्षिक संस्थाओं, विकास प्राधिकरणों मदरसों आदि तमाम महकमें योगी की डिजिटल मुहिम से जुड़ चुके है। अब सरकार की नाक के नीचे यानी सचिवालय में भी यह मुहिम ई फाइलिंग के जरिये अमली जामा पहन रही है।
कहा जा सकता है कि देर आये,दुरूस्त आये। जो काम काफी पहले शुरू हो जाना चाहिए था,वह कई वर्षो बाद हो रहा है। खैर, ऐसे कदमों सेे प्रदेश में व्याप्त लालफीताशाही से तो छुटकारा मिलेगा ही, भ्रष्टाचार पर भी लगाम लगाना आसान होगा। प्रदेश के तेजी से विकास में भी ई-फाइलिंग का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। यह प्रक्रिया सचिवालय से शुरू की गई तो इसका प्रभाव भी अधिक दूरगामी होगा। सचिवालय शासन की ‘आत्मा’ जैसा है। पहले चरण में यह व्यवस्था मुख्यमंत्री व मुख्य सचिव कार्यालय सहित 20 विभागों में लागू हुई है 31 दिसंबर तक शेष सभी 72 विभाग और 31 मार्च 2018 तक प्रदेश के सभी जिला मुख्यालयों को ई-ऑफिस प्रणाली से जोड़ दिया जाएगा।
सचिवालय में लागू ई-ऑफिस प्रणाली के विस्तार में जायें तो इसमें यलो और ग्रीन पेज के दो विकल्प हैं। यलो पेज पर नई ड्राफ्टिंग होगी और इसे फाइनल करने के लिए जैसे ही डिजिटल हस्ताक्षर किए जाएंगे, पीले रंग का पेज हरे रंग में बदल जाएगा। सचिवालय सूत्रों के अनुसार सेक्शन स्तर से यलो पेज पर फाइल बन कर आगे बढ़ेगी। ई-फाइल के उच्चाधिकारियों तक जाने और वापस सेक्शन में आने के दौरान किए गए बदलाव फाइल में तो शामिल हो जाएंगे लेकिन यह पता नहीं लग सकेगा कि बदलाव किस स्तर पर किया गया है। ई फाइलिंग के प्रशिक्षण से गुजर चुके अधिकारियों का कहना था कि इस व्यवस्था के तहत ई-फाइल में किए गए बदलावों की जिम्मेदारी उस पर आ जाएगी, जिसने ड्राफ्टिंग की होगी।
खैर, अभी ई-फाइलिंग का आगाज ही हुआ था और इस प्रणाली के यलो पेज ने प्रदेश सचिवालय के अधिकारियों में खलबली मचा दी है। तय प्रक्रिया के अनुसार सचिवालय में ई-ऑफिस प्रणाली के तहत सेक्शन से होने वाली किसी भी ड्राफ्टिंग की ई-फाइल यलो पेज पर ऊपर आगे बढ़ेगी और जब कई बदलावों के साथ वापस आएगी तो यह पता नहीं चलेगा कि बदलाव किस स्तर पर हुआ है। जवाबदेही तय होने से घबराए अधिकारियों ने ई-ऑफिस व्यवस्था के यलो पेज का तरीका बदलने की मांग की है,लेकिन ऐसा होगा इस बात की उम्मीद काफी कम है। यूपी में सत्ता परिर्वतन के बाद यह तय हो गया था कि डिजिटल यूपी योगी सरकार की प्राथमिकता होगी और प्रदेश के सरकारी कार्यालयों को पेपरलेस बनाने की शुरुआत सचिवालय से ही होनी है। प्रथम चरण में सचिवालय के सभी सेक्शनों मंे अक्टूबर महीने से नई फाइलें कंप्यूटर पर ही बनाई जानी थीं, जबकि पुरानी फाइलों के डिजिटाइजेशन का काम एक जनवरी, 2018 से किया जाना था, लेकिन जब लगा कि एक साथ ऐसा होना संभव नहीं है तो इसमें बदलाव किया गया सभी 455 की बजाए सिर्फ 22 सेक्शनों में ई-फाइलों की शुरुआत की गई।
बहरहाल,योगी सरकार का यह प्रयास ऐतिहासिक साबित हो सकता है। प्रारम्भ में हो सकता है कि सरकारी अमले को यह प्रणाली समझ में न आये, लेकिन एक बार समझ में आ जाने के बाद,अगर नियत साफ होगी तो परेशानी कहीं नहीं आयेगी। ई फाइलिंग से सरकारी फाइलों की रफ्तार तेज हो जाएगी। पहले जहां फाइलों को एक मेज से दूसरी मेज तक खिसकने में कई-कई दिन और कभी तो महीनों लग जाते थे, अब वे एक क्लिक में एक साथ कई लोगों तक पहुंच जायेगी। पहले ये फाइलें गुम भी हो जाती थीं। गुम फाइलों की तलाश कराने या उन्हें आगे बढ़वाने में मुट्ठी गर्म करने के आरोप भी लगते थे।
अब शायद ऐसे कर्मचारियों की महत्वाकांक्षा परवान नहीं चढ़ पाये। अभी जो व्यवस्था चल रही है, उसमें फाइलों को संरक्षित रखने में कई-कई कर्मचारियों को लगाना पड़ता है, आगे उसकी भी जरूरत नहीं रह जाएगी। एक-एक कागज की कई-कई फोटो प्रतियां करानी पड़ती थीं उससे भी छुटकारा मिल जायेगा। तरह-तरह के भारी भरकम रजिस्टर बनाने पड़ते हैं उनसे भी मुक्ति मिल जायेगी। अब वह दिन दूर नहीं लगता है, जब सचिवालय भवन में फाइलों का अंबार और धूल देखने को भी नहीं मिलेगी। तो दूसरी तरफ ई फाइलिंग से लेटलतीफी और भ्रष्टाचार को लेकर व्याप्त आम धारणा भी बदलेगी। कई दिनों तक एक मेज से दूसरे दूसरे मेज पर फाइल के चक्कर लगती रहती थी। इसी कारण तमाम योजनाओं को शुरू करने में देरी होती है। लेकिन अब योगी सरकार ई-ऑफिस की व्यवस्था के साथ इन कमियों को दूर करने जा रही है। ई फाइलिंग लागू होने के बाद सीएम योगी ने अपने दिल का दर्द बयां करते हुए कहा, मैंने कई बार फाइलों का बहुत ढेर देखा जो धूल से सनी हूई थी, जो अधिकारी उन फाइलों के बीच बैठा होगा मै मानता हूं कि वो दमें का मरीज तो बनी ही जायेगा। 12500 पेपर के लिए हमें एक बड़े पेड़ को काटना पड़ता है। और हर साल पेपर की मात्र दोगुनी हो जाती है।
ई फाइलिंग व्यवस्था लागू करते समय मुख्यमंत्री योगी का संबोधन कई प्रश्न चिंह खड़े कर गया। उनका यह कहना जायज है कि आजादी के बाद पत्रवलियों के सरकारी मकड़जाल में उलझने को लेकर नौकरशाही कठघरे में रहती थी और ई-ऑफिस व्यवस्था इस मकड़जाल से निकलने का उपाय है। बताते चलें कि केंद्र सरकार के नेशनल ई-गवर्नेस प्लान के तहत एनआइसी ने ई-ऑफिस सॉफ्टवेयर विकसित किया है। अब फाइलों का समयबद्ध निस्तारण जरूरी होगा। सिटीजन चार्टर लागू करने के लिए भी ई-ऑफिस व्यवस्था सबसे उत्तम उपाय है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ई-ऑफिस व्यवस्था की शुरुआत करते हुए मौजूदा कामकाज पर चुटकी भी ली। उन्होंने मेजों पर रुकने वाली फाइलों का जिक्र किया, वहीं तीन महीने के लिए बनाई जाने वाली कमेटी की रिपोर्ट 30 साल में भी न आने और तब तक संबंधित व्यक्ति के दूसरी दुनिया में चले जाने पर भी तंज कसा। मुख्यमंत्री ने कहा कि कई रजिस्टर और पत्रवलियां होने की वजह से कभी तो वास्तव में कुछ लोग भूल जाते हैं लेकिन, कई बार जानबूझ कर भी लोग अपनी स्मृति का इस्तेमाल न करके बहाने बनाते हैं।
संजय सक्सेना लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार हैं.
2.11.17
योगी की ‘डिजिटल यूपी’ मुहिम : सचिवालय में बदलाव,पूरा प्रदेश पकड़ेगा रफ्तार
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