Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

8.11.17

टैक्स हैवन नहीं बल्कि इमानदार मुल्क कहो उन्हें

पनामा पेपर्स, पैराडाइज पेपर्स जैसे कुछ कागजातों में अनेक मुल्क के लोगो के नाम आये है जिनके बारे में अखाबारानाविसो का एक आई सी आई जी यानी international consortium of investigating journalist नामक एक समूह न इन कागजातों के आधार पर उन देशो में जहां टैक्स प्रणाली बहुत ही यथोचित और अनुकरणीय है, उन मुल्को में विभिन्न देशो के व्यापारी, नेता, कलाकारों द्वारा जमा की गई रकम को कालाधन मानते हुए एक अपनी रैंकिंग सूचि भी बना ली है . भारत का नाम उस रैंकिंग सूचि में 19 वें स्थान पर है .उक्त कंसोर्टियम का एक सदस्य भारतीय अखबार जनसता भी है अभीतक मैंने जो अध्ययन किया जनसता में छपे समाचारों का उससे पहली बात जो मैंने समझा कि पुरे दुनिया के अखबार आजतक अपनी पुरानी आदत “सनसनी फैलाने वाली खबरों “ से उपर नहीं उठ पायें है. नाम पता लगाना कोई बड़ा इन्वेस्टिगेशन नहीं है , सामान्य व्यक्ति भी वह पता कर ले सकता है .

अब हम आते है “ काला धन और टैक्स चोरी “ के आरोप पर . वह पैसा जो जमा है उन न्यायोचित कर प्रणाली वाले मुल्को में वह काला धन है या नहीं या टैक्स की चोरी यानी tax evasion करके जमा किया गया है इसका भी कोई साक्ष्य नहीं प्रस्तुत किया है कंसोर्टियम ने.
इसके बावजूद यह प्रकरण राजनितिक मुद्दा बन चूका है ठीक 2जी के 1.76 करोड़ वाले स्कैम या फिर माल्या के 9000 करोड़ वाले स्कैम की तरह जबकि दोनों में कोई स्कैम नहीं था

.एक फर्स्ट कम फर्स्ट सर्व का नीतिगत निर्णय था जबकि दुसरा एक हवाई जहाज कम्पनी के घाटे का मुद्दा था , किंगफिशर से ज्यादा घाटा एयर इण्डिया को हुआ 36, 000/- करोड़ जिसकी भरपाई भारत सरकार ने की जबकि एयर इण्डिया के मुकाबले में किंगफिशर में यात्रा करनेवाले आम भारतीयों की संख्या ज्यादा रही . अपरिपक्व राजनेता, न्यायपालिका के जजों की बुद्धि का परिणाम है माल्या के खिलाफ कानूनी कार्रवाई . उसे रिस्ट्रक्चरिंग का मौक़ा मिलना चाहिए था , इंटरेस्ट फ्री लोंन मिलना चाहिए था , पूर्व के लिए गए ऋण पर ब्याज माफ़ होना चाहिए था ताकि वह फिर से खडा होकर सस्ते दर पर हवाई सुविधा आम जनता को उपलब्ध करा सके.

खैर अब आते है वर्तमान मुद्दे पर , बिना किसी साक्ष्य के सिर्फ दुसरे मुल्क में राशि जमा होने के आधार पर अनुमान लगाकर उक्त राशि को कालाधन घोषित कर देना और जिनके खाते में रकम है उनका नाम प्रकाशित करना कैसे इन्वेस्टिगेटिंग जर्नाल्ज्म के दायरे में आता है बेहतर होता वह कंसोर्टियम और जनसता इसको बताते .

विदेश में धन जमा करना अपराध नहीं है .

कंसोर्टियम की पूरी रिपोर्ट का आधार बरमूडा की ला फार्म एप्प्लाबे और सिंगापुर की फर्म एशियासीटी के माध्यम से अपने पैसे का निवेश अन्य जगहों पर करने का आरोप है . क्या देश के किसी भी कानून के तहत यह अपराध है ? क्या उक्त दोनों इंवेस्टिंग फर्म यानी निवेशक फर्मे प्रतिबंधित है ? फिर कौन से कानून का उलन्घ्न्न हुआ जिसके लिए ये निवेशक दोषी है ? यहाँ यह बताना जरुरी है कि भारत की कर प्रणाली दुनिया में सबसे खराब कर प्रणाली है . .

रकम कालाधन की श्रेणी में कैसे आयेगा यह भी कंसोर्टियम ने और उसके सदस्य जनसत्ता ने नहीं बताया है. आयकर के नियम के अनुसार अगर आप अपनी आय कम बताते है तो आपके ऊपर टैक्स न देने के लिए जुर्माना का प्रावधान है आपकी कमाई को जप्त करने का कोई प्रावधान नहीं है अगर वह कमाई गैरकानूनी व्यवसाय से अर्जित नहीं है तब .

अफ़सोस एक अन्तराष्ट्रीय कंसोर्टियम ने सामान्य स्तर की भी जांच नहीं की और इसे घोटाला का नाम देकर सनसनीखेज खबर बना दिया . इस कंसोर्टियम की रिपोर्ट से इसकी कार्यशैली स्पष्ट हो जाती है जो सोशल मीडिया पर अक्सर आनेवाली तथ्यहीन अफवाहों से ज्यादा बेहतर नहीं है . जनसता को मेरे द्वारा उठाये गए सवालों का जवाब देना चाहिए .
Madan Kumar Tiwary
Shamir Takiya, Gaya 
Bihar 

No comments: