सौरभ सिंह सोमवंशी, लखनऊ।
मंडल
आयोग की सिफारिशों को लागू करने के बाद अर्थात अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27
फ़ीसदी आरक्षण का प्रावधान करने के बाद पूर्व प्रधानमंत्री राजा मांडा
विश्वनाथ प्रताप सिंह जब दोबारा1991 में फतेहपुर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव
लड़ने के लिए गए तब वहां के तमाम सारे क्षत्रिय समुदाय के लोग उनसे नाराज
बताए गये, तब विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अपने लोगों से एक संदेश भिजवाया और
कहा कि मुझे वोट दें या ना दें परंतु मैं एक बार अपने भाइयों से मुलाकात
करना चाहता हूं।
पूर्व
प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह से फतेहपुर के राजपूत मिलने को तैयार हो
गए बैठक में विश्वनाथ प्रताप सिंह ने प्रयागराज मंडल के जिलों के बड़े
बड़े अधिकारियों के नाम गिनाए और सब की जातियां भी बताई सभी पदों पर
पंचानवे फीसदी एक ही जाति के लोगों का कब्जा था ।
तब
विश्वनाथ प्रताप सिंह ने बड़ी शालीनता से एक ही प्रश्न किया कि “भाइयों आप
लोग ही बताइए कि ओबीसी आरक्षण के लागू होने से किसका नुकसान है?”
लोगों के समझ में बात आई और एक बार राजा मांडा फिर से फतेहपुर के लोकसभा सदस्य चुने गए।
शायद
यही कारण है कि राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह जिन्होंने इस देश को गौतमबुद्ध,
अंबेडकर व महात्मा गांधी के बाद सर्वाधिक प्रभावित किया, निश्चित रूप से
विश्वनाथ प्रताप सिंह इस युग के सिद्धार्थ थे। उन्होंने अब तक के इस देश को
नया मोड़ देने वाले तमाम प्रधानमंत्रियों की लिस्ट में स्थान प्राप्त
किया। परंतु एक विशेष जाति के निशाने पर होने के कारण उनको खलनायक का खिताब
दे दिया गया। सोचने वाली बात है की उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी
आदित्यनाथ के ऊपर ठाकुर वाद का आरोप विपक्ष लगातार लगा रहा है इसके बावजूद
बलिया स्थित जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय में ईडब्ल्यूएस की कुल 16
सीटों में से 13 पर ब्राह्मणों और 3 पर भूमिहार जाति के उम्मीदवारों की
नियुक्ति हो रही है। एक पत्रकार के नाते मुझे कहने में संकोच नहीं है की
ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि कुलपति कल्पलता पांडे हैं।
यह सब हो रहा है जब उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री क्षत्रियवाद का आरोपी है ।
आप
सोचिए उस दौर में क्या होता रहा होगा, जब ऐसा कुछ नहीं था, जब नियुक्तियों
में भ्रष्टाचार होते थे और जांच नहीं होती थी आरक्षण दूर-दूर तक नहीं था
तब आप सोच सकते हैं किस एक विशेष जाति के लोगों की बड़े बड़े और छोटे छोटे
पदों पर नियुक्तियां होती रही होंगी।बड़े से बड़े और छोटे से छोटे पदों पर
लगातार एक ही जाति विशेष के लोगों का कब्जा हुआ करता था। निश्चित रूप से
राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह के द्वारा मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किए
जाने के बाद उस जाति का वर्चस्व टूटा और हर जाति के लोगों का सरकारी नौकरी
में आना शुरू हुआ ।
क्षत्रिय समुदाय जो पहले नौकरी से
दूर भागता था अपनी ढेर सारी जमीनों को देखकर उसका मन नौकरी में नहीं लगता
था उसने भी पढ़ना शुरू किया और बड़े-बड़े पदों पर पहुंचना शुरू किया।
उत्तर
प्रदेश में ही नहीं देश भर में राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह को तमाम सारे
क्षत्रिय समुदाय के लोग खलनायक कहते हैं उनके लिए अपशब्दों का प्रयोग करते
हैं। परंतु जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय में नियुक्तियों पर वह मौन है
इसलिए क्योंकि वह पत्रकारिता में एक जाति विशेष के वर्चस्व के द्वारा फैलाए
गई धारणा के शिकार हैं।
भले
ही वह यह समझ ना पा रहे हो कि वे उस धारणा के शिकार हैं। आज इस देश में
क्षणिक राजनीतिक लाभ के लिए मानवता को जो लोग दांव पर लगा रहे हैं विश्वनाथ
प्रताप सिंह उन लोगों से बहुत बढ़िया थे। एक ईमानदार राजनेता भी थे और
राजा भी थे।
इस बात का
उल्लेख करना अति आवश्यक है की विश्वनाथ प्रताप सिंह ने राजीव गांधी की उस
सरकार को छोड़कर बगावत की थी जिस सरकार को हिंदुस्तान के लोकतांत्रिक
इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा बहुमत 49.5% मत प्राप्त हुआ था स्पष्ट रूप
से यह कहा जा सकता है कि इस तरह का बहुमत ना तो अभी तक राजीव गांधी के
अलावा किसी को मिला है और ना ही शायद भविष्य में मिले। उसके बावजूद
विश्वनाथ प्रताप सिंह ने राजीव गांधी के खिलाफ बगावत की और ऐसी बगावत की की
कांग्रेस आज तक उत्तर प्रदेश में वापसी नहीं कर पाई और केंद्र में बिना
गठबंधन के उसकी सरकार लौटकर नहीं आई।
यह वही व्यक्ति कर सकता है जो वास्तव में ईमानदार हो निश्चित रूप से राजा मांडा ईमानदार थे।
आज
के नरेंद्र मोदी की तुलना में राजीव गांधी बहुत ही मजबूत प्रधानमंत्री हुआ
करते थे क्या आज हिंदुस्तान का कोई राजनेता नरेंद्र मोदी के खिलाफ बोलने
की हिम्मत कर सकता है। लेकिन उस दौरान नरेंद्र मोदी से कई गुना मजबूत राजीव
गांधी प्राप्त मतों के लिहाज से थे।
सिर्फ
क्षत्रिय होने के कारण राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह के प्रति निगेटिव धारणा
बनाने वाला एक जाति विशेष का मीडिया यह कभी नहीं बताता कि 1989 के लोकसभा
चुनाव के दौरान विश्वनाथ प्रताप सिंह के घोषणा पत्र में यह शामिल था कि
“मंडल आयोग की सिफारिशों को वह सरकार में आने के बाद लागू करेंगे”उसके बाद
उन्होंने लागू किया। यह वह दौर था जब एक बड़ा समाज उनका अभिनंदन कर कह रहा
था “राजा नहीं फकीर है भारत की तकदीर है” तो दूसरी और एक वर्ग “राजा नहीं
रंक है देश का कलंक है” के नारे लगा रहा था। आज जननायक चंद्रशेखर
विश्वविद्यालय बलिया में फैले जातिवाद के बारे में उत्तरप्रदेश का कोई भी
बुद्धिजीवी कोई भी पत्रकार या कोई भी राजनेता एक शब्द बोलने को तैयार नहीं
है। इतना ही नहीं अपने आप को जननायक चंद्रशेखर जो इस देश के पहले समाजवादी
विचारधारा के प्रधानमंत्री थे उनका अनुयायी कहने वाले विपक्ष के नेता
अखिलेश यादव भी इस पर मौन हैं। क्योंकि वह उस जाति को नाराज नहीं करना
चाहते।
बलिया क्रांतिकारियों की धरती कही जाती है
चंद्रशेखर के सुपुत्र नीरज शेखर, बलिया सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त, जनसत्ता
दल लोकतांत्रिक के राष्ट्रीय अध्यक्ष रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया,
विधान परिषद सदस्य यशवंत सिंह, समाजवादी पार्टी के नेता ओमप्रकाश सिंह
,अरविंद सिंह गोप यह सारे लोग मौन हैं। मैं ऐसे लोगों का उल्लेख इसलिए कर
रहा हूं क्योंकि 2016 में जब अखिलेश यादव ने बलिया में बनने वाले इस
विश्वविद्यालय की आधारशिला रखी थी तो यह लोग उनके साथ मौजूद थे और ये सभी
क्षत्रिय समुदाय के है।
प्रदेश का एक बड़ा हिस्सा यह
जानना चाहता है कड़े अनुशासन और सख्त मिजाज के रूप में देश ही नहीं विदेश
में अपनी छवि बनाने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी इस
मामले पर आखिर क्यों मौन हैं?
सौरभ सिंह सोमवंशी पत्रकार
9696110069
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