आज यानी 7 जनवरी(सोमवार) के हिंदुस्तान में एक लेख पढने को मिला जिसमे अनिल प्रकाश जी नामके एक सामाजिक कार्यकर्ता का कहना है कि बिहार के लगभग दो करोड लोग भुखमरी और ठंढ से तडप रहे हैं और अस्सी फीसदी के घरो में एक सांझ ही चुल्हा जलता है। पता नहीं अनिल प्रकाश कौन है और बिहार को कितना जानते है,लेकिन मैं जिस बिहार को जानता हूं उसमें एसे हालात कतई नहीं है। मैं दिल्ली में नौकरी करता हूं और खांटी बिहारी हूं। साल में एक दो-बार बिहार हो भी आता हूं। आजतक सरकारी आंकडों में बिहार में किसान आत्महत्या दर्ज नहीं की गयी। आत्महत्याओ का सारा ठेका तो तथाकथित बिकसित राज्यों ने ले रखा है। मुझे तो ये किसान आत्महत्या का मामला आजतक समझ नहीं आया और कभी-कभी लगता है कि यह आत्महत्या नहीं बल्कि कोई बडा घोटाला है। अगर आत्महत्या ही करनी है तो बिहार और पूर्वी य़ूपी के किसान आत्महत्या क्यों नही करते? दरअसल, बैकों से लाखों रु कर्ज लेने बाले अगर उसे चुका न पाए,तो ये किसानी का मामला है क्या? भैया, यह तो विशुद्ध बनियागिरी है। दरअसल, बिहार जैसे राज्यों में किसान अभी भी आजीविका कृषि के सहारे जी रहे है जिसमें खतरे कम है। न तो उनमें लाखों रु लोन लेने की क्षमता है न ही, न ही हजार को लाख बनाने का लालच। लाख बाढ आने के बावजूद, जमीन इतनी उपजाऊ है कि एक-डेढ एकड जमीन ही साल भर खिलाने के लिए काफी है। और मनीआर्डर मनी की परंपरा शेष काम निवाहने के लए। एसे में पता नहीं, अनिल प्रकाश जी जैसे लोग कहां से खुफिया जानकारी ले आते है कि बिहार के अस्सी प्रतिशत घरों एक ही सांझ चुल्हा जलता है।
हां, इतना सच है कि बिहार से लोगों का दिल दहलाने के स्तर तक पलायन हुआ है- एक अनुमान के मुताबिक लगभग तीस प्रतिशत तक। सवर्णों में तो यह दर पचास फीसदी से उपर तक का है क्योंकि वे पूरे परिवार के साथ पलायन करते है। लेकिन इसका सकारात्मक पहलू यह है कि जमीन निचले तबके के हाथ आई है भले ही अभी मालिकाना हक न मिला हो। अब जमीन पर आबादी का भार घटा है। बिहार एक नए परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है जहां पढने-लिखने और विकास की एक भूख जगी है। अभी तो सिर्फ बिहार की चालीस-पचास फीसदी साक्षरता (और वो भी हिंदी माध्यम में) ने दिल्ली के विश्वविद्यालयों और आईआईटी में अपनी धमक दिखाई है, साक्षरता को नव्वे फीसदी तक होने दीजिए- कोई आश्चर्य नहीं कि संसद में बिहार को रोकने के लिए कानून बनाने की मांग उठे।
सवाल और भी है। क्या किसी राज्य का मुल्यांकन सिर्फ प्रतिव्यक्ति आय के आधार पर करना उचित है?. क्या बिहार प्रतिव्यक्ति आय के आलावा अन्य मानवीय मापदंडो पर किसी राज्य से पिछडा है? बिहार का मजाक सबसे ज्यादी वहीं उडाते है जिनके यहां सवसे ज्यादा कन्या भ्रूण की हत्या और मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है। क्या बिहार कभी अलगाववादी विचारों का समर्थक रहा, क्या बिहार में कभी उस पैमाने पर अल्पसंख्यकों और दलितो का उत्पीडन हुआ जैसा आज भी महाराष्टर् या हरीयाणा में देखने को मिलता है? लेकिन मूल बात फिर वहीं है कि य़े सारे तर्क तव तक बेमानी है जव तक राज्य आर्थिक पैमाने पर तरक्की न करे। आज के इस भौतिकवादी युग में अगर आप समृद्ध है तो आपके सौ खून माफ हैं।और बिहार का अभीतक सवसे बडा पाप यहीं है कि यह एक समृद्ध राज्य नहीं है।
7.1.08
माफ कीजिए बिहार में स्टार्भेशन डेथ नहीं होती..
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6 comments:
आपसे किसने कह दिया कि बिहार में लोग भूख से नहीं मरते हैं, जनाब सरकारी आंकड़ों तक में इस बात को माना गया है, पता नहीं आप किस बिहार की बात कर रहे हैं और हां यदि बिहार की ऐसी हालत नहीं होती तो इतने बड़े पैमाने पर पलायन नहीं होता है और पलायन नहीं होता तो लोग वहां भूख से ही मरते
सुशांत जी,
यह जानकर बड़ा दुख हुआ कि आप बिहार के हैं और आपको यह भी नहीं मालूम कि बिहार में भूखमरी भी कोई समस्या है...
और अपनी इसी अज्ञानता के दम पर किसी लेखक के लेखन और उसके लेख में कही गई बातों को चुनौती दे रहे हैं.
यह समस्या आपकी नहीं, आपके जैसी एक पूरी जमात और पीढ़ी की है जो ख़ुद तो दिल्ली में जी रहे हैं लेकिन बिहार को मन ही मन चमका रहे हैं.
यह वैसा ही है जैसे हम अपने ही मन में कभी अमिताभ बन लेते हैं, कभी शाहरुख़ और कभी नरेंद्र मोदी भी...
आप अनिल प्रकाश को नहीं जानते, कोई बात नहीं.
बिहार के बारे में सिर्फ उसी को लिखने का अधिकार नहीं है जिसे आप जानते हैं...
बिहार की जानकारी लीजिए, जुटाईए और कम से कम किसी लेखक के बारे में ऐसा कहने से पहले लेखकों का एक बैंक तैयार कर लीजिए कि कौन लेखक है और कौन सामाजिक कार्यकर्ता..
आप बिहार की सच्चाई नहीं जानते, बिहार पर लिखने वाले लोगों को नहीं जानते तो इतनी जोर से शोर मचाकर अपनी बात रखने की कोई ज़रूरत नहीं है...
ख़ामोश रहकर उनकी मदद कीजिए जो बिहार के बेजुबानों के भले की बात कर रहे हैं...
आपके पास समय नहीं होगा, जिनके पास इस तरह के काम के लिए समय है, उन्हें करने दीजिए..
नीतीश जी या लालू जी ने आपको अभी तक अपना प्रवक्ता नहीं बनाया है कि उनकी नाकामी पर लिखने वालों पर आप बरस रहे हैं...
जी बिहार ही नही देश के सारे राज्यों मे लोग भूख से मरते हैं. हो सकता है बिहार मे यह प्रतिशत कुछ ज्यादा हो, जी कुछ... बिहार मे अधिकतम लोगों का गुजर बसर कृषि पर आधारित है और साल के ८ महीने वहाँ के ६०% भूमि मे बाढ फैलाए रहते हैँ. उपर से लालू का १५ साल का कार्यकाल. जहिर है किसान को कमाने के लिए बाहर जाना ही पड़ेगा. बाँकी दुनियाँ के लोग उसे बिहारी कहते हैं और हम बोलते हैँ केन्द्र सरकार (जो बाढ का समाधान नही ढूँढ पाए) के सताए भोले भाले लोग.
समय बहुत जल्दी बदल रहा है. लालू का जमाना भी बदल रहा है. देश के सबसे प्रतिष्ठित सँस्थान (IIT and IIM) मे बिहारीयों का राज है. देखिए आगे आगे होता है क्या?
आपकी अज्ञानता आपकी टिप्पणी से ही झलक रही है। लगता है आपने कमेंट लिखने से पहले न तो पूरे लेख को आपने पढ़ा और न ही असलियत जानने की कोशिश की। क्योंकि आपने बाढ़ की विभीषिका से उत्पन्न हालात के बारे में आपने चिंतन तक नहीं किया। करीब तीन महीने तक जिस क्षेत्र में बाढ़ का आलम था, वहां की स्थिति का मूल्यांकन करने की क्षमता आपमे है ही नहीं। आपसे अनुरोध है कि एक बार फिर लेख पढ़ने की कोशिश जरूर करें। आपको बिहार की स्थिति का अंदाजा लग जायेगा।
हुज़ुर मैं अंशतः पद्मनाभ मिश्र जी के वक्तव्य से ज़रूर सहमत हूँ कि पूरे देश में ग़रीब भूख से मरते पर जितनी भयानक तस्वीर कल के दैनिक हिन्दुस्तान में प्रकाशित श्री अनिल प्रकाश जी ने उकेरी है उससे मैं क्या कोई बिहीरी सहमत नही होगा...ठीक है बिहारी सबसे ज्यादा कमाई के लिए राज्य के बाहर जाते हैं पर राज्य के अन्दर भूखमरी आंध्र या विदर्भ जैसी कभी न रही है न होगी...यह बात मैं किसी राजनीतिक दल के प्रवक्ता के रूप में नहीं बल्कि एक संवेदनशील राज्य के निवासी के रूप में कह रहा हूँ.....ग़रीबी है ...घोर ग़रीबी है पर भूखमरी उस स्तर की तो कतई नहीं और देखा जाए तो कुछ दिन पहले देश की राजधानी दिल्ली में तीन बहनों के भूखमरी के कगार पर पहुँचने की ख़बर उसी दैनिक में प्रकाशित हुई थी जहाँ से इस बहस ने जन्म लिया है। तो क्या इस ख़बर को पूरी दिल्ली के लिए सामान्यकृत किया जा सकता है...कतई नहीं न...फिर। ख़ैर, ये मेरा महज बिहार प्रेम नहीं .... न मैं आत्ममुग्धता की ही स्थिति में हूँ पर एक पत्रकार होने की हैसियत से भी मेरे पास बिहार के किसी क्षेत्र से कोई पुष्ट प्रमाण (किसी भूखमरी की) कभी नहीं मिला । लोगो के पास तमाम अभाव हैं....शिक्षा का अभाव है...बेरोज़गारी भी भयंकर है..पर भूखमरी कती नहीं ...कभी नहीं....आप मानें न मानें ।
महोदय,
भूखमरी के कगार पर खड़ लोगों की खबरें बिहार के अखबारों में हर दिन छप रही है। जानकारी की पुष्टि के लिये आप बिहार के पत्रकारों से भी बात कर सकते हैं। बिहार की नितीश सरकार ने लेख छपने के तुरंत बाद ही हर जिले में लाखों रुपये का पैकेज जारी कर दिया है। बाढ़ से प्रभावित रह चुके इलाकों के जिलाधिकारियों को लोगों को राहत देने में कोताही बरतने पर कड़ी फटकार लगाई गई है। पूरी घटना का मतलब है कि बिहार की सरकार ने भी मान लिया कि भूखमरी की स्थिति है।
यह अच्छी बात है कि बिहार के हालात पर इतनी बहस छिड़ी है।
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