एक मनचला सियासी,हुस्न का शैदायी,जंगल
के रास्ते जा रहा था । एक खूबसूरत जवान ऊॅंटनी को देखकर उसका मन मचल गया ।
जवानी किसी भी जीव में हो मन को विचलित कर ही देती है । जवान का मन मचल
गया । वह ऊॅंटनी का बोसा लेना चाहता था । ऊॅंटनी की लम्बी गरदन बबूल के
शाखों को छू रही थी । जवान कोई तरीका सोचने लगा,जिससे वह ऊॅंटनी का बोसा ले सके ।
जवान
के तेज दिमाग में बिजली कौंधी । उसने बबूल की एक डाल तोड़ कर ऊॅंटनी को
दिखाया । शाख को देख कर ऊॅंटनी ने गरदन झुका ली और बबूल के पत्ते खाने लगी
। जवान ने इस बीच अपने मन की मुराद हासिल कर ली ।
ऊॅंटनी
तो सहज भाव से फिर बबूल की ऊंची डालों पर पत्तियॉं चरने लगी । जवान का मन
पश्चाताप से विचलित हो गया । उसने दुःखी स्वर में कहा – लहौल-बिला-कूवत,मेरे सिर शैतान सवार हो गया था ।
संयोग से शैतान भी पास ही खड़ा था । उसने कहा – बरखुरदार,क्यों मुझे बदनाम करते हो । ये हिकमत (उपाय) तो मेरे फरिश्ते भी नहीं सोच सकते थे । तुम तो मेरे भी बाप निकले ।
साहबान,थोड़ा कहा बहुत समझना,चिट्ठी को तार समझना । हाथ कंगन को आरसी क्या,पढ़े
लिखे को फारसी क्या । बात को अफसाना बनाने में बंदा माहिर नहीं है । अर्ज
ये कि सियासत के जंगल में ऐसे तमाम जवान डरावनी आवाज में गरज रहे हैं,जिन्हें
देख कर हैरानी होती है । इन सियासी जीवों की पैदाइश कैसे और कहॉं से हुयी
जीवशास्त्री अभी इस पर रिसर्च कर रहे हैं । नतीजा कब आयेगा कहा नहीं जा
सकता । हमारे मुल्क में लोकतंत्र की तबाही के बाद आयेगा या पहले इस बारे
में विभिन्न मत है । कुछ शोधकर्ताओं का मत है कि इन सियासी प्राणियों का
जन्म अमेरिकी फोर्ड फाउंडेशन से हुआ । कुछ कहते हैं कि इनके विकास में रमन
मैग्सेसे पुरूस्कार का योगदान है । कुछ शोधकर्ता इन प्राणियों के उद्भव और
विकास में अरब देशों के अकूत धन का योगदान मानते हैं । कुछ विशेषज्ञ इन्हें
मजहबी जेहादियों की देन समझते हैं । कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि
लालपट्टी के जंगल से निकलकर माओवादियों का अग्रिम दस्ता दिल्ली में दाखिल
हो गया है । जंगल में रहने वाले माओवादियों के हाथों में हथियार है और
दिल्ली में दहाड़ रहे तथाकथित माओवादियों की तीखी जबान धारदार नेजे का काम
करती है ।
बहरकैफ,शोधकर्ताओं
की दलील हम उन्हीं के हाल पर छोड़ देते हैं । इन प्राणियों का मकसद
लोकतंत्र की इमारत गिराकर देश का हाल मिस्र और नेपाल जैसा करना है । बकौल
शायर –
शैख ने मस्जिद बना मिस्मार बुतखाना किया ।
पहले इक सूरत भी थी अब साफ वीराना किया ।
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