लेखक: नरेश मिश्र
साहबान,मेहरबान,कद्रदान ! न तो मैं कोई वैद्यडाक्टर या हकीम हूँन
पहुंचा हुआ सियासी संन्यासी फकीर । मैं आप ही की तरह एक गरीब आम आदमी हूँ ।
सियासत की तीर्थयात्रा का मंसूबा बनाकर मैं अन्ना हजारे की सेवा में
प्रस्तुत हुआ । मेरे दंड प्रणाम से गॉंधीवादी सन्यासी अन्ना हजारे प्रसन्न
हुये । मेरे मन में मामूली नौकरी छोड़कर सियासत के शिखर पर झंडा लहराने की
भावना थी,लेकिन मैं अपनी इस भावना को मन में ही छिपा कर मामा मारीच मृग की चाल चलना चाहता था ।
गांधीवादी सन्यासी अन्ना हजारे सरल स्वभाव,सच पर अडिग रहने वाले महात्मा हैं ? उन्हें क्या पता था कि मेरे मन में राम,बगल में छूरी हैं । उन्होंने मुझे सत्य,अहिंसा,सत्याग्रह का उपदेश दिया । उनका उपदेश मेरे लिये कचरे से ज्यादा अहमियत नहीं रखता था ।
मैंने
अन्ना उपदेश दाहिने कान से सुनकर बायें कान से निकाल दिया । वापसी के सफर
में मुझे सियासी शैतान मिला । उसने हंसकर मुझसे कहा – बच्चा अन्ना हजारे को
भूल जाओ । मेरा नुस्खा आजमाओ । तुम पलक झपकते ही दिल्ली की गद्दी पर चढ़
बैठोगे ।
सियासी शैतान ने मुझे जो नुस्खा बतलाया,वह यूं हैं – साम्यवाद के पत्ते एक किलो,समाजवाद की छाल दो किलो,माओवाद के बीज ढाई सौ ग्राम,गांधीवाद का अर्क दस ग्राम,अराजकता की अंतरछाल दो किलो,झूठ का माजून दो किलो,इन
सारी वस्तुओं को इकट्ठा कर पाखंड की कड़ाही में डालो । इसमें मात्रा के
मुताबिक आरोप का पानी डाल दो । कड़ाही के नीचे मीडिये की तेज आंच जला दो ।
दवा तैयार करते वक्त इसे झाड़ू की कलछुल से बार बार चलाते रहो । नफरत की
बदबू फैलने लगे तो कड़ाही उतार दो । इसे मीठी वाणी की छाया में सूखने दो ।
बस लोकतंत्र की वहम में डालने की सिद्ध रामबाण दवा तैयार हो गयी । इसकी एक
खुराक जवान को पिलाओगे तो वह सारी पढ़ाई लिखाई,ज्ञान
गुण की बातें भूलकर तुम्हारे पीछे पगला जायेगा । खूसट बूढ़ों को पिलाओगे तो
वह सियासत के संग्राम में अपना पेशा छोड़कर जवान की तरह कूदने को तैयार हो
जायेगा । महिलाएं इसके सेवन से सुध बुध खोकर सियासत की उमंग तरंगो में बहने
का मौका मिल जायेगा ।
नोट- ध्यान रहे,दवा
पिलाते वक्त हर महत्वाकांक्षी मरीज को टोपी पहनाना मत भूलना । टोपी पहनकर
दवा खाने से फौरन माकूल फायदा होता है । टोपी का महत्व दवा से कम नहीं ।
सियासत में टोपी पहनी और पहनाई जाती है । उछाली जाती है । टोपी पहनकर कोई
कसम खाओ तो पाप नहीं लगता है ।
साहबान,मेहरबान,कद्रदान मैंने लोकतंत्र के हित में यह नुस्खा सार्वजनिक कर दिया । मैं लाहौर का वैद्य ठाकुर दत्त नहीं हूँ,जिन्होंने
अमृतधारा का नुस्खा सार्वजनिक नहीं किया था । मैं सन्त रामानुजाचार्य की
तरह लोकतंत्र का कल्याणकारी हूँ । उन्होंने गुरू का बताया गोपनीय मंत्र
शिखर पर विराजमान होकर सबको बता दिया था । आप चाहें तो दवा घर में बना लें
या मेरे दफ्तर में आकर मुफ्त ले जायें । आपसे कोयी शुल्क नहीं लिया जायेगा ।
आपको सिर्फ एक टोपी साथ लानी होगी ।
लोकतंत्र की लूट है,लूट सके तो लूट ।
अंतकाल पछताय वो,जो न बोले झूठ ।।
1 comment:
कथ्य और शिल्प दोनों ही दृष्टि से बेजोड़.
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