23 अगस्त,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,आपने का वर्षा जब कृषि
सुखानि वाली कहावत तो सुनी होगी लेकिन हमें पूरी तरह से यकीन है कि इस पर
कभी अमल नहीं किया होगा लेकिन हमारे बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री जीतन राम
मांझी इस पर न सिर्फ यकीन रखते हैं बल्कि इस पर अमल भी करते हैं। तभी तो
उन्होंने कहा है कि बरसात के बाद बिहार उन सभी बांधों की मरम्मत करवाई
जाएगी जिनकी पिछली कई वर्षों या महीनों से मरम्मत नहीं हुई। वाह कमाल है!
क्या तरीका है शासन चलाने का। मुजफ्फरपुर में बागमती नदी पर बने बांध के
टूटने से लेकर यहाँ बिहार में रोज कहीं-न-कहीं किसी-न-किसी नदी का बांध टूट
रहा है। कल भी सीवान में सरयू नदी पर बना मिर्जापुर बांध टूटा है। नीतीश
कुमार जी उर्फ सुशासन बाबू के गृह जिले नालंदा में तो अब शायद ही कोई बांध
टूटने से बच गया हो। इस साल बाढ़ से सबसे ज्यादा वही नालंदा जिला प्रभावित
हुआ है जिसके बारे मैंने जबसे होश संभाला है नहीं सुना कि वहाँ बाढ़ भी आती
है और बिहार के निवर्तमान मुख्यमंत्री बिहार की जनता को भरोसा दे रहे हैं
कि घबराईए नहीं बस कुछ ही दिनों की बात है। कुछ दिन और कष्ट बर्दाश्त कर
लीजिए फिर बरसात के रुकते ही सरकार सारे तटबंधों की मरम्मत करवा देगी। मगर
उससे क्या फायदा होगा और किसको फायदा होगा? ठेकेदार दस-बीस टोकरी मिट्टी
डालकर काम पूरा कर लेंगे और इंजीनियर कमीशन पाकर लिख देंगे कि फलां ठेकेदार
ने इतने करोड़ का काम किया और अगले साल फिर से वही बांध टूट जाएंगे।
मुख्यमंत्री खुद कहते हैं कि ओवर एस्टिमेट बनाकर अधिकारी-कर्मचारी सरकारी
खजाने को चूना लगा रहे हैं। क्या उनका कह देना भर काफी है? इस लूट को
रोकेगा कौन? कई जिलों से रिपोर्ट आई है कि उनके यहाँ कोई बांध नहीं है जबकि
उन्हीं जिलों में जमींदारी बांधों की देखभाल के नाम पर करोड़ों रुपयों के
वारे-न्यारे कर दिये गए। ईट हैप्पेन्स ऑनली ईन बिहार।
मित्रों,राजधानी पटना में तो कोई बांध नहीं टूटा फिर वहाँ क्यों बाढ़ जैसे हालात बने हुए हैं? पटना में भी हर साल बरसात में जलनिकासी प्रणाली फेल हो जाती है और लोगों के घरों तक में पानी घुस जाता है क्या उसके लिए बिहार सरकार के पास कोई कार्ययोजना है? पिछले 9 सालों में पूरे पटना में नालियों का निर्णाण करवाया गया फिर भी हालत में सुधार क्यों नहीं हो रहा? क्यों करोड़ों रुपये नालियों के निर्माण और रखरखाव के नाम पर नालियों में बहा दिए गए?
मित्रों,बिहार की सरकार को किसने रोका था,किसने जबर्दस्ती उसके हाथ-पांव बांध रखे थे बरसात से पहले ही बांधों की मरम्मत करने से? क्या बरसात के बाद बांधों की मरम्मत की जाती है अगर हुई तो और मांझी को अपना यह अद्भुत वादा याद रह गया तो? क्या इस तरह चलती है सरकार? इससे पहले जब राज्य में सूखे से आसार बन रहे थे तब पता चला कि राज्य के 99 प्रतिशत सरकारी नलकूल कई सालों से बंद पड़े हैं और इस साल भी सरकार उनमें से एक को भी चालू नहीं करवा पाई। क्या इस तरह की जाती है प्राकृतिक आपदा से निबटने की तैयारी कि सूखा आए तो सारे नलकूप खराब और बाढ़ आए तो एक-एक कर सारे बांध टूट जाएँ? क्या बिहार सरकार के पास अब कामचलाऊ बुद्धि भी नहीं रह गई है? साहित्यकार श्रीकांत वर्मा ने तो अपनी कविता में कोशल के बारे में कहा था कि कोशल ज्यादा दिन टिक नहीं सकता क्योंकि वहाँ विचारों की कमी है लेकिन यहाँ तो बिहार सरकार में बुद्धि की ही कमी हो गई है विचार तो फिर भी दूर की कौड़ी हैं।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
मित्रों,राजधानी पटना में तो कोई बांध नहीं टूटा फिर वहाँ क्यों बाढ़ जैसे हालात बने हुए हैं? पटना में भी हर साल बरसात में जलनिकासी प्रणाली फेल हो जाती है और लोगों के घरों तक में पानी घुस जाता है क्या उसके लिए बिहार सरकार के पास कोई कार्ययोजना है? पिछले 9 सालों में पूरे पटना में नालियों का निर्णाण करवाया गया फिर भी हालत में सुधार क्यों नहीं हो रहा? क्यों करोड़ों रुपये नालियों के निर्माण और रखरखाव के नाम पर नालियों में बहा दिए गए?
मित्रों,बिहार की सरकार को किसने रोका था,किसने जबर्दस्ती उसके हाथ-पांव बांध रखे थे बरसात से पहले ही बांधों की मरम्मत करने से? क्या बरसात के बाद बांधों की मरम्मत की जाती है अगर हुई तो और मांझी को अपना यह अद्भुत वादा याद रह गया तो? क्या इस तरह चलती है सरकार? इससे पहले जब राज्य में सूखे से आसार बन रहे थे तब पता चला कि राज्य के 99 प्रतिशत सरकारी नलकूल कई सालों से बंद पड़े हैं और इस साल भी सरकार उनमें से एक को भी चालू नहीं करवा पाई। क्या इस तरह की जाती है प्राकृतिक आपदा से निबटने की तैयारी कि सूखा आए तो सारे नलकूप खराब और बाढ़ आए तो एक-एक कर सारे बांध टूट जाएँ? क्या बिहार सरकार के पास अब कामचलाऊ बुद्धि भी नहीं रह गई है? साहित्यकार श्रीकांत वर्मा ने तो अपनी कविता में कोशल के बारे में कहा था कि कोशल ज्यादा दिन टिक नहीं सकता क्योंकि वहाँ विचारों की कमी है लेकिन यहाँ तो बिहार सरकार में बुद्धि की ही कमी हो गई है विचार तो फिर भी दूर की कौड़ी हैं।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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