03-08-2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,हमारे नीतीश कुमार जी न
जाने कितने मुखों को धारण करते हैं? रावण के समक्ष जरूर इस तरह की समस्या
खड़ी होती होगी कि कभी किसी मुँह ने कुछ कह दिया तो कभी किसी मुँह ने
कुछ और। रावण के तो दस मुँह ही थे हमारे नीतीश जी के तो शायद उससे भी
ज्यादा हैं। न जाने उन्होंने किस मुँह से कभी लालू-राबड़ी शासन को जंगल राज
कहा था और न जाने किस मुँह से कहा था कि उनका सबसे बड़ा उद्देश्य
लालू-राबड़ी के कुशासन का खात्मा कर सुशासन की स्थापना है? वैसे काफी दिनों
से बेचारे ने सुशासन शब्द का प्रयोग करना बंद कर दिया है। पता नहीं क्यों
उन्होंने इस शब्द को छुट्टी पर भेज दिया है?
मित्रों,हमने तो नीतीश कुमार जी को जब भी देखा है हमने पाया है कि उनके एक ही मुख है फिर यह रावण जैसा करतब वे कैसे कर लेते हैं? इतना ही नहीं एक बार तो नीतीश कुमार जी ने नरेंद्र मोदी जी की भी जमकर बड़ाई कर डाली थी और यहाँ तक कह डाला था कि मोदी जी को राष्ट्रीय राजनीति में आना चाहिए। और जब मोदी जी उनकी बात मानकर राष्ट्रीय राजनीति में आए तो सबसे पहले बिदकनेवालों में नीतीश कुमार भी थे। फिर उन्होंने दूसरे अज्ञात मुँह से मोदी जी को राष्ट्र के लिए घातक बताना शुरू कर दिया। बाद में भाजपा जिसने उनको राजनीति के कूड़ेदान से उठाकर राजगद्दी पर बिठाया उसी को लात मार दी और तीसरे मुँह से कहना शुरू किया कि भाजपा सांप्रदायिक है। वाह भाई वाह जब तक आप भाजपा के साथ रहे तब तक 17 सालों तक भाजपा धर्मनिरपेक्ष थी और जब आपने उसका साथ छोड़ दिया तो उसी क्षण से वह सांप्रदायिक हो गई? सांप्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता की सबसे सटीक परिभाषा।
मित्रों,पता नहीं नीतीश जी के बचे-खुचे राजनैतिक जीवन का क्या उद्देश्य है? महाभ्रष्ट कांग्रेस और राजद के सहयोग से बिहार में सुशासन की स्थापना तो होने से रही अलबत्ता जंगल राज के पुराने दिन जरूर बिना कोई प्रयास किये वापस लाए जा सकते हैं। जहाँ तक मुस्लिम मतों का सवाल है तो बिना उसकी सहायता के जब केंद्र में सरकार बनाई जा सकती है तो बिहार में क्यों नहीं बन सकती? काम मुश्किल है मगर असंभव नहीं। बिहार की जनता बढ़ती घूसखोरी,अनाप-शनाप बिजली बिल,अराजकता और भ्रष्टाचार से त्राहि-त्राहि कर रही है,पुलिस थानों में ही सिमट कर रह गई है और थानों के बाहर अदृश्य रूप में जैसे एक बार फिर से लिख दिया गया है कि बिहार के लोग अपने जान और माल की सुरक्षा स्वयं करें ऐसे में नीतीश जी को यह मुगालता कैसे हो गया है कि बिहार की जनता सिर्फ जातीय समीकरण के आधार पर उनके कथित महागठबंधन को वोट दे देगी? कहते हैं कि गीदड़ की जब मौत आती है तो वह शहर की ओर भागता है और बिहार में किसी राजनैतिक दल को जब चुनाव हारना होता है तो वह लालू से गठबंधन करता है। रामविलास जी तो इस सत्य को समझ गए थे इसलिए चुपके से खिसक लिए नीतीश जी भी समझेंगे मगर तब जब उनकी पार्टी भी आज लोकसभा में कांग्रेस की तरह मुख्य विपक्षी दल बनने की स्थिति में भी नहीं रह जाएगी। तब तक और उस निश्चित हार के बाद भी देखिए कि नीतीश जी अपने किस मुँह से क्या बोलते हैं और कैसे-कैसे सिद्धांत बघारते हैं? अब बेचारे के दिखाए झूठे सपनों का खरीददार तो कोई रहा नहीं तो बेचारे खुद ही सपने देखने लगे हैं कि वे लालू और कांग्रेस की मदद से भाजपा को बिहार में सत्ता में आने से रोक देंगे और इस तरह बिहार को लगातार लूटते रहेंगे।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
मित्रों,हमने तो नीतीश कुमार जी को जब भी देखा है हमने पाया है कि उनके एक ही मुख है फिर यह रावण जैसा करतब वे कैसे कर लेते हैं? इतना ही नहीं एक बार तो नीतीश कुमार जी ने नरेंद्र मोदी जी की भी जमकर बड़ाई कर डाली थी और यहाँ तक कह डाला था कि मोदी जी को राष्ट्रीय राजनीति में आना चाहिए। और जब मोदी जी उनकी बात मानकर राष्ट्रीय राजनीति में आए तो सबसे पहले बिदकनेवालों में नीतीश कुमार भी थे। फिर उन्होंने दूसरे अज्ञात मुँह से मोदी जी को राष्ट्र के लिए घातक बताना शुरू कर दिया। बाद में भाजपा जिसने उनको राजनीति के कूड़ेदान से उठाकर राजगद्दी पर बिठाया उसी को लात मार दी और तीसरे मुँह से कहना शुरू किया कि भाजपा सांप्रदायिक है। वाह भाई वाह जब तक आप भाजपा के साथ रहे तब तक 17 सालों तक भाजपा धर्मनिरपेक्ष थी और जब आपने उसका साथ छोड़ दिया तो उसी क्षण से वह सांप्रदायिक हो गई? सांप्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता की सबसे सटीक परिभाषा।
मित्रों,पता नहीं नीतीश जी के बचे-खुचे राजनैतिक जीवन का क्या उद्देश्य है? महाभ्रष्ट कांग्रेस और राजद के सहयोग से बिहार में सुशासन की स्थापना तो होने से रही अलबत्ता जंगल राज के पुराने दिन जरूर बिना कोई प्रयास किये वापस लाए जा सकते हैं। जहाँ तक मुस्लिम मतों का सवाल है तो बिना उसकी सहायता के जब केंद्र में सरकार बनाई जा सकती है तो बिहार में क्यों नहीं बन सकती? काम मुश्किल है मगर असंभव नहीं। बिहार की जनता बढ़ती घूसखोरी,अनाप-शनाप बिजली बिल,अराजकता और भ्रष्टाचार से त्राहि-त्राहि कर रही है,पुलिस थानों में ही सिमट कर रह गई है और थानों के बाहर अदृश्य रूप में जैसे एक बार फिर से लिख दिया गया है कि बिहार के लोग अपने जान और माल की सुरक्षा स्वयं करें ऐसे में नीतीश जी को यह मुगालता कैसे हो गया है कि बिहार की जनता सिर्फ जातीय समीकरण के आधार पर उनके कथित महागठबंधन को वोट दे देगी? कहते हैं कि गीदड़ की जब मौत आती है तो वह शहर की ओर भागता है और बिहार में किसी राजनैतिक दल को जब चुनाव हारना होता है तो वह लालू से गठबंधन करता है। रामविलास जी तो इस सत्य को समझ गए थे इसलिए चुपके से खिसक लिए नीतीश जी भी समझेंगे मगर तब जब उनकी पार्टी भी आज लोकसभा में कांग्रेस की तरह मुख्य विपक्षी दल बनने की स्थिति में भी नहीं रह जाएगी। तब तक और उस निश्चित हार के बाद भी देखिए कि नीतीश जी अपने किस मुँह से क्या बोलते हैं और कैसे-कैसे सिद्धांत बघारते हैं? अब बेचारे के दिखाए झूठे सपनों का खरीददार तो कोई रहा नहीं तो बेचारे खुद ही सपने देखने लगे हैं कि वे लालू और कांग्रेस की मदद से भाजपा को बिहार में सत्ता में आने से रोक देंगे और इस तरह बिहार को लगातार लूटते रहेंगे।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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