क्या इमरान खान केजरीवाल के पाकिस्तानी संस्करण हैं?
4 सितंबर,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,यह हमारे लिए बड़े ही
हर्ष का सबब है कि भारत भले ही अबतक विश्वगुरु नहीं बन पाया हो लेकिन भारत
का ही एक लाल अरविंद केजरीवाल इस पद को पाने के अधिकारी बन गए हैं। भारत के
पड़ोसी और पुराने पट्टीदार पाकिस्तान में उनको एक चेला मिल गया है जो उनकी
तरह नालायक और धरनेबाज है। उनका चेला इन दिनों ठीक उसी तरह से पाकिस्तान
में रायता फैला रहा है जिस तरह से कभी केजरीवाल जी भारतीयों के दिलो-दिमाग
में फैलाया था।
मित्रों,केजरीवाल अमेरिका को परम प्रिय हैं तो इमरान भी अमेरिका के चहेते हैं,केजरीवाल को फोर्ड फाउंडेशन पैसा देता है तो इमरान को भी पश्चिमी देशों से धनालाभ होता है,केजरीवाल ने प्रतिबंधित क्षेत्र में धरना दिया था तो इमरान भी दे रहे हैं,केजरीवाल ने देशभक्ति के गीत बजाए थे और नारे लगाए थे तो इन दिनों इमरान खान भी लगा रहे हैं,केजरीवाल ने अपनी मांगों के पूरा हुए बगैर धरना समाप्त कर दिया था तो कल इमरान खान भी ऐसा ही करनेवाले हैं,केजरीवाल अराजकतावादी हैं तो इमरान भी हैं और कुछ ज्यादा ही हैं,केजरीवाल ने भारतीय संविधान की खिल्ली उड़ाई तो इमरान भी इन दिनों पाकिस्तानी संविधान (मैं नहीं जानता कि यह पाकिस्तान का दूसरा,तीसरा या कौन-सा संविधान है और इसलिए अपनी अल्पज्ञता पर शर्मिंदा भी हूँ) की ऐसी की तैसी कर रहे हैं,केजरीवाल ने इस्तीफा दिया था तो इमरान ने भी अभी-अभी दिया है,केजरीवाल भारत में कांग्रेस की बी टीम के रूप में देखे गए तो इमरान को भी इन दिनों पाकिस्तान में सेना की बी टीम के रूप में देखा जा रहा है।
मित्रों,इन दोनों महापुरुषों की करनी और कथनी में इतनी ज्यादा समानता है कि जितनी भाई-भाई में भी नहीं होती। अंतर इतना ही है कि केजरीवाल को राजनीति में आए जुम्मा-जुम्मा दो साल ही हुए हैं जबकि इमरान खान पिछले 18 सालों से राजनीति के क्रिकेट में नाकाम होते चले आ रहे हैं। अर्थात् गुरू बहुत जल्दी गुड़ से चीनी बन गया और चेले को डेढ़ दशक लग गए मगर दोनों ही बहुत जल्दी फिर से चीनी से गुड़ तो गुड़ सीधे मिट्टी बन गए। दोनों ने ही राजनीति को नौटंकी समझा,दोनों ने ही एक-एक प्रांत में सरकार बनाई लेकिन दोनों की कुछ खास नहीं कर सके। दोनों में अंतर बस इतना है कि केजरीवाल पाकिस्तान में लोकप्रिय थे और इमरान भारत में लोकप्रिय नहीं हैं क्योंकि हम तहेदिल से पाकिस्तान का बुरा नहीं चाहते बल्कि चाहते हैं कि पाकिस्तान समृद्ध और शांतिप्रिय बने। सच यह भी है कि जबतक पाकिस्तान शांतिप्रिय नहीं बनेगा समृद्ध भी नहीं हो सकेगा।
मित्रों,इमरान खान पठान हैं और पठान को समझाना हमने सुना है कि बड़ा कठिन होता है फिर भी हम यह हिमाकत करते हुए उनको कहना चाहते हैं कि नकल करनी है तो नरेन्द्र मोदी की करो,पहले प्रदेश में अच्छा काम करो फिर केंद्र पर दावा ठोंको और पाकिस्तान के पीएम बनो। नाकाम नटकिए की नकल करोगे तो फिर आपका भी वही अंजाम होगा जो उन साहेबान का हुआ है-नहीं समझे क्या? भैया उनको तालियों से कहीं ज्यादा तो अबतक थप्पड़ पड़ चुके हैं।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
मित्रों,केजरीवाल अमेरिका को परम प्रिय हैं तो इमरान भी अमेरिका के चहेते हैं,केजरीवाल को फोर्ड फाउंडेशन पैसा देता है तो इमरान को भी पश्चिमी देशों से धनालाभ होता है,केजरीवाल ने प्रतिबंधित क्षेत्र में धरना दिया था तो इमरान भी दे रहे हैं,केजरीवाल ने देशभक्ति के गीत बजाए थे और नारे लगाए थे तो इन दिनों इमरान खान भी लगा रहे हैं,केजरीवाल ने अपनी मांगों के पूरा हुए बगैर धरना समाप्त कर दिया था तो कल इमरान खान भी ऐसा ही करनेवाले हैं,केजरीवाल अराजकतावादी हैं तो इमरान भी हैं और कुछ ज्यादा ही हैं,केजरीवाल ने भारतीय संविधान की खिल्ली उड़ाई तो इमरान भी इन दिनों पाकिस्तानी संविधान (मैं नहीं जानता कि यह पाकिस्तान का दूसरा,तीसरा या कौन-सा संविधान है और इसलिए अपनी अल्पज्ञता पर शर्मिंदा भी हूँ) की ऐसी की तैसी कर रहे हैं,केजरीवाल ने इस्तीफा दिया था तो इमरान ने भी अभी-अभी दिया है,केजरीवाल भारत में कांग्रेस की बी टीम के रूप में देखे गए तो इमरान को भी इन दिनों पाकिस्तान में सेना की बी टीम के रूप में देखा जा रहा है।
मित्रों,इन दोनों महापुरुषों की करनी और कथनी में इतनी ज्यादा समानता है कि जितनी भाई-भाई में भी नहीं होती। अंतर इतना ही है कि केजरीवाल को राजनीति में आए जुम्मा-जुम्मा दो साल ही हुए हैं जबकि इमरान खान पिछले 18 सालों से राजनीति के क्रिकेट में नाकाम होते चले आ रहे हैं। अर्थात् गुरू बहुत जल्दी गुड़ से चीनी बन गया और चेले को डेढ़ दशक लग गए मगर दोनों ही बहुत जल्दी फिर से चीनी से गुड़ तो गुड़ सीधे मिट्टी बन गए। दोनों ने ही राजनीति को नौटंकी समझा,दोनों ने ही एक-एक प्रांत में सरकार बनाई लेकिन दोनों की कुछ खास नहीं कर सके। दोनों में अंतर बस इतना है कि केजरीवाल पाकिस्तान में लोकप्रिय थे और इमरान भारत में लोकप्रिय नहीं हैं क्योंकि हम तहेदिल से पाकिस्तान का बुरा नहीं चाहते बल्कि चाहते हैं कि पाकिस्तान समृद्ध और शांतिप्रिय बने। सच यह भी है कि जबतक पाकिस्तान शांतिप्रिय नहीं बनेगा समृद्ध भी नहीं हो सकेगा।
मित्रों,इमरान खान पठान हैं और पठान को समझाना हमने सुना है कि बड़ा कठिन होता है फिर भी हम यह हिमाकत करते हुए उनको कहना चाहते हैं कि नकल करनी है तो नरेन्द्र मोदी की करो,पहले प्रदेश में अच्छा काम करो फिर केंद्र पर दावा ठोंको और पाकिस्तान के पीएम बनो। नाकाम नटकिए की नकल करोगे तो फिर आपका भी वही अंजाम होगा जो उन साहेबान का हुआ है-नहीं समझे क्या? भैया उनको तालियों से कहीं ज्यादा तो अबतक थप्पड़ पड़ चुके हैं।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
1 comment:
बहुत बढ़िया। आपसे सौ प्रतिशत सहमत।
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