भारत और जापान
हिन्दुस्थान और जापान में पिछले साठ वर्ष में एक बड़ा अंतर आया है। भारत में पिछली
सरकारों ने भारतीयों के देश प्रेम की धधकती ज्वाला पर ठण्डा पानी डाला है या देश भक्ति
के अँगारे पर राख की मोटी परत जमने दी। पिछली सरकारों ने देश के गौरवपूर्ण इतिहास
को झूठी धर्मनिरपेक्षता की घास को उगाने के लिए तोड़ मरोड़ दिया,देश को विदेशी भाषा के
नागफाँस में झकड दिया ,देश की भाषा और संस्कृति को तहस नहस किया,भारत के वेद
पुराण और शास्त्रों से भारतीयों को अन्धविश्वास कह कर अलग कर दिया। इसका दुष्परिणाम
यह हुआ कि भारतीयों को अपना गौरव पूर्ण इतिहास बासी लगने लगा ,हमारे रामायण ,गीता
से ग्रन्थ काल्पनिक कहानी लगने लगे ,हमारी देवीशक्तियाँ देवत्व खो कर तामसिक बनने
लगी। हमारे देव पुरुष पौरुषहीन होते चले गये जबकि जापान पर अणुबम्ब गिरा कर रीढ़
हीन करने का प्रयास हुआ मगर जापान अपने इतिहास,अपनी भाषा ,अपनी संस्कृति पर
गर्व और विश्वास करके कर्म पथ पर चलता रहा ,लाखों बार प्राकृतिक आपदाएँ आयी मगर
जापान सिर उठा के चलता रहा। देश भक्ति का जज्बा भारतीयों में जो स्वतंत्रता से पहले
था वो ना जाने कहाँ दफन हो जाने दिया जबकि जापानियों में आज भी देश भक्ति का जज्बा
जगमगा रहा है। हम अपने ही देशवासियों के धन को लोकतंत्र की दुहाई देकर खुद ही लूटते
रहे और भ्रष्टाचार के विषधर को पोषण देते रहे और जापानी लोग देश का पैसा देश का समझ
सबका विकास करते गए।
आज कितने काँग्रेसी नेता ऐसे बचे हैं जो देश के सामने यह कहने की हिम्मत रखते हैं कि
मुझे अपने हिन्दू होने पर गर्व है ,अपने हिंदुत्व पर गर्व है ,श्री राम और कृष्ण जैसे महापुरुषों
की संतान होने पर गर्व है ?कोई नहीं ना ,यही कारण है देश की दुर्गति होने का ,क्योंकि हम
करोडो देशवासी वर्षों तक अपने पर गर्व महसूस ना कर सके,खुद को भूलकर जिन्दा लाश
की तरह घसीटते रहे।
इस देश को अब भी जापान के समकक्ष बनाया जा सकता है,यह काम हम हिंदुस्थानी लोगों
को ही करना है चाहे आज करे या कल। हमें अपने धर्म के महापुरुषों से जुड़ना होगा जिनके
एक हाथ में पुष्प है तो एक में चक्र भी है। एक हाथ से शांति की अपील है तो दूसरे हाथ में
धनुष भी है। जिनके एक हाथ में ज्ञान का शास्त्र है तो दूसरे हाथ में शस्त्र भी है। हमारे महा
पुरुष हमें सद्भाव और शक्ति का तालमेल सीखाते हैं।
हम देश भक्त बनने से पहले परिवार भक्त बने,अपने परिवार को सभ्य,सुसंस्कृत ,शिक्षित,
नीडर और धर्म का अनुसरण करने वाला बनाये यदि हम तीन चार साल लगातार इस काम
पर डटे रहे तो देश को जापान से बढ़कर बनने में देर नहीं लगेगी
हिन्दुस्थान और जापान में पिछले साठ वर्ष में एक बड़ा अंतर आया है। भारत में पिछली
सरकारों ने भारतीयों के देश प्रेम की धधकती ज्वाला पर ठण्डा पानी डाला है या देश भक्ति
के अँगारे पर राख की मोटी परत जमने दी। पिछली सरकारों ने देश के गौरवपूर्ण इतिहास
को झूठी धर्मनिरपेक्षता की घास को उगाने के लिए तोड़ मरोड़ दिया,देश को विदेशी भाषा के
नागफाँस में झकड दिया ,देश की भाषा और संस्कृति को तहस नहस किया,भारत के वेद
पुराण और शास्त्रों से भारतीयों को अन्धविश्वास कह कर अलग कर दिया। इसका दुष्परिणाम
यह हुआ कि भारतीयों को अपना गौरव पूर्ण इतिहास बासी लगने लगा ,हमारे रामायण ,गीता
से ग्रन्थ काल्पनिक कहानी लगने लगे ,हमारी देवीशक्तियाँ देवत्व खो कर तामसिक बनने
लगी। हमारे देव पुरुष पौरुषहीन होते चले गये जबकि जापान पर अणुबम्ब गिरा कर रीढ़
हीन करने का प्रयास हुआ मगर जापान अपने इतिहास,अपनी भाषा ,अपनी संस्कृति पर
गर्व और विश्वास करके कर्म पथ पर चलता रहा ,लाखों बार प्राकृतिक आपदाएँ आयी मगर
जापान सिर उठा के चलता रहा। देश भक्ति का जज्बा भारतीयों में जो स्वतंत्रता से पहले
था वो ना जाने कहाँ दफन हो जाने दिया जबकि जापानियों में आज भी देश भक्ति का जज्बा
जगमगा रहा है। हम अपने ही देशवासियों के धन को लोकतंत्र की दुहाई देकर खुद ही लूटते
रहे और भ्रष्टाचार के विषधर को पोषण देते रहे और जापानी लोग देश का पैसा देश का समझ
सबका विकास करते गए।
आज कितने काँग्रेसी नेता ऐसे बचे हैं जो देश के सामने यह कहने की हिम्मत रखते हैं कि
मुझे अपने हिन्दू होने पर गर्व है ,अपने हिंदुत्व पर गर्व है ,श्री राम और कृष्ण जैसे महापुरुषों
की संतान होने पर गर्व है ?कोई नहीं ना ,यही कारण है देश की दुर्गति होने का ,क्योंकि हम
करोडो देशवासी वर्षों तक अपने पर गर्व महसूस ना कर सके,खुद को भूलकर जिन्दा लाश
की तरह घसीटते रहे।
इस देश को अब भी जापान के समकक्ष बनाया जा सकता है,यह काम हम हिंदुस्थानी लोगों
को ही करना है चाहे आज करे या कल। हमें अपने धर्म के महापुरुषों से जुड़ना होगा जिनके
एक हाथ में पुष्प है तो एक में चक्र भी है। एक हाथ से शांति की अपील है तो दूसरे हाथ में
धनुष भी है। जिनके एक हाथ में ज्ञान का शास्त्र है तो दूसरे हाथ में शस्त्र भी है। हमारे महा
पुरुष हमें सद्भाव और शक्ति का तालमेल सीखाते हैं।
हम देश भक्त बनने से पहले परिवार भक्त बने,अपने परिवार को सभ्य,सुसंस्कृत ,शिक्षित,
नीडर और धर्म का अनुसरण करने वाला बनाये यदि हम तीन चार साल लगातार इस काम
पर डटे रहे तो देश को जापान से बढ़कर बनने में देर नहीं लगेगी
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