अपनी भाषा अपनी माटी
(हिंदी दिवस पर )
जब तक हम अपनी भाषा और माटी पर गर्व करना नहीं सीखेंगे तब तक बदलाव
कागज के फूल से मिलने वाली खुशबु की तरह झूठा है। जब देश स्वतन्त्र नहीं था
तब इस देश के लोग हिंदी या मातृभाषा का उपयोग करते थे और स्वतंत्रता के बाद
हम फिरंगी भाषा के गुलाम होते गये,आज गाँव से महानगर तक हर कोई अंग्रेजी
का आशिक होता जा रहा है ,आज कहीं भी किसी को अपनी भाषा को छोड़ने का
मलाल नहीं है और जानबूझ कर अनावश्यक होते हुए भी विदेशी भाषा बोलने पर
शर्म नहीं है। हिन्दी की समस्या वह पढ़ा लिखा समाज है जो अंग्रेजी की जी हजुरी
करता रहा है।
पिछले 65 वर्षों में हमारी सरकार ने हिंदी भाषा को कुछ नारे के अलावा क्या दिया।
इस देश के संत्री से मंत्री टूटी फूटी अंग्रेजी बोलने में गर्व महसूस करते हैं जबकि
सहज रूप से सभी को समझ में आने वाली हिंदी बोलने से भी कतराते हैं। देश के
भूतपूर्व प्रधान मंत्री जब सँसद में बोलते थे जो यदा कदा हिंदी में बोलते थे ,कुछ
राजनेता तो वोट लेने के खातिर हिंदी बोलने का दिखावा करते हैं ऐसे में हिंदी का
विकास कैसे हो ?
अंग्रेजी का हिंदी अनुवाद क्लिष्ट हिंदी में जानबूझ कर किया जाने लगा ?सिर्फ
यह जताने के लिए कि अंग्रेजी सरल भाषा है। सरकारी काम काज में अंग्रेजी का
उपयोग हिंदी भाषा की दुर्दशा करता रहा है। आज विश्व में कितने जापानी,चीनी
अमेरिकी हिन्दी भाषा पर प्रभुत्व रखते हैं ?और कितने भारतीय अंग्रेजी भाषा
पर प्रभुत्व रखते हैं ? हर बार देशी अंग्रेजी पंडित फिजूल का तर्क रखते हैं कि
अंग्रेजी के बिना विश्व स्तर पर तरक्की करना असंभव है जबकि चीन जापान
अपनी भाषा में काम करके विश्व को उनके देश की भाषा सीखने की स्थिति बना
चुके हैं। एक अंग्रेज यात्री जब भारत आता है तो हिंदी के काफी शब्द सीख कर
आता है और वह जब किसी हिन्दुस्तानी से "नमस्कार" के प्रत्युत्तर में "good
morning "सुनता है तो भौंचक्का रह जाता है।
हिंदी के गौरव के लिए देश के साँसद सँसद में हिंदी में अनिवार्य रूप से बोले,
हर साँसद को अपनी मातृभाषा के साथ सहज हिंदी में बोलने का अभ्यास
करना चाहिए,अंग्रेजी बोल कर काम निकालने का रास्ता बंद करना चाहिए।
हमें विश्व की भाषाएँ सीख कर ज्ञान की वृद्धि करनी है परन्तु अपनी भाषा का
अपमान नहीं करना चाहिए। किसी भी विदेशी के साथ उसकी भाषा में बात
करना अच्छी बात है पर अपने ही देश में एक दूसरे से अन्य देश की भाषा में
बात करना एक ओछी हरकत के अलावा विशेष कुछ नहीं है।
हिंदी सप्ताह नहीं ,हिंदी पखवाड़ा नहीं ,365 दिन हिंदी में काम यह लक्ष्य होना
चाहिये। हिन्दुस्थान को समझना है तो हिंदी जानना और उपयोग में लाना
जरुरी है।
(हिंदी दिवस पर )
जब तक हम अपनी भाषा और माटी पर गर्व करना नहीं सीखेंगे तब तक बदलाव
कागज के फूल से मिलने वाली खुशबु की तरह झूठा है। जब देश स्वतन्त्र नहीं था
तब इस देश के लोग हिंदी या मातृभाषा का उपयोग करते थे और स्वतंत्रता के बाद
हम फिरंगी भाषा के गुलाम होते गये,आज गाँव से महानगर तक हर कोई अंग्रेजी
का आशिक होता जा रहा है ,आज कहीं भी किसी को अपनी भाषा को छोड़ने का
मलाल नहीं है और जानबूझ कर अनावश्यक होते हुए भी विदेशी भाषा बोलने पर
शर्म नहीं है। हिन्दी की समस्या वह पढ़ा लिखा समाज है जो अंग्रेजी की जी हजुरी
करता रहा है।
पिछले 65 वर्षों में हमारी सरकार ने हिंदी भाषा को कुछ नारे के अलावा क्या दिया।
इस देश के संत्री से मंत्री टूटी फूटी अंग्रेजी बोलने में गर्व महसूस करते हैं जबकि
सहज रूप से सभी को समझ में आने वाली हिंदी बोलने से भी कतराते हैं। देश के
भूतपूर्व प्रधान मंत्री जब सँसद में बोलते थे जो यदा कदा हिंदी में बोलते थे ,कुछ
राजनेता तो वोट लेने के खातिर हिंदी बोलने का दिखावा करते हैं ऐसे में हिंदी का
विकास कैसे हो ?
अंग्रेजी का हिंदी अनुवाद क्लिष्ट हिंदी में जानबूझ कर किया जाने लगा ?सिर्फ
यह जताने के लिए कि अंग्रेजी सरल भाषा है। सरकारी काम काज में अंग्रेजी का
उपयोग हिंदी भाषा की दुर्दशा करता रहा है। आज विश्व में कितने जापानी,चीनी
अमेरिकी हिन्दी भाषा पर प्रभुत्व रखते हैं ?और कितने भारतीय अंग्रेजी भाषा
पर प्रभुत्व रखते हैं ? हर बार देशी अंग्रेजी पंडित फिजूल का तर्क रखते हैं कि
अंग्रेजी के बिना विश्व स्तर पर तरक्की करना असंभव है जबकि चीन जापान
अपनी भाषा में काम करके विश्व को उनके देश की भाषा सीखने की स्थिति बना
चुके हैं। एक अंग्रेज यात्री जब भारत आता है तो हिंदी के काफी शब्द सीख कर
आता है और वह जब किसी हिन्दुस्तानी से "नमस्कार" के प्रत्युत्तर में "good
morning "सुनता है तो भौंचक्का रह जाता है।
हिंदी के गौरव के लिए देश के साँसद सँसद में हिंदी में अनिवार्य रूप से बोले,
हर साँसद को अपनी मातृभाषा के साथ सहज हिंदी में बोलने का अभ्यास
करना चाहिए,अंग्रेजी बोल कर काम निकालने का रास्ता बंद करना चाहिए।
हमें विश्व की भाषाएँ सीख कर ज्ञान की वृद्धि करनी है परन्तु अपनी भाषा का
अपमान नहीं करना चाहिए। किसी भी विदेशी के साथ उसकी भाषा में बात
करना अच्छी बात है पर अपने ही देश में एक दूसरे से अन्य देश की भाषा में
बात करना एक ओछी हरकत के अलावा विशेष कुछ नहीं है।
हिंदी सप्ताह नहीं ,हिंदी पखवाड़ा नहीं ,365 दिन हिंदी में काम यह लक्ष्य होना
चाहिये। हिन्दुस्थान को समझना है तो हिंदी जानना और उपयोग में लाना
जरुरी है।
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