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13.2.20

दिल्ली में केजरीवाल की बंपर जीत को भाजपा व कांग्रेस को हल्के में न लेना चाहिए


स्थानीय मुद्दों एवं नेताओं की उपेक्षा ज्यादा नहीं चल सकती... दिल्ली में केजरीवाल की बंपर जीत को भाजपा व कांग्रेस को हल्के में न लेना चाहिए| भाजपा व कांग्रेस समर्थक इस जीत पर कुछ भी टिपण्णी करें पर उन्हें समझ लेना चाहिए कि इस जीत का  राष्ट्रीय राजनीति पर असर पड़ना स्वाभाविक है। भाजपा के लिये यह समय आत्ममंथन का समय है, राजनीति कभी भी एक दिशा में नहीं चलती, एक व्यक्ति का जादू भी स्थायी नहीं होता राजनीति में।

परिवर्तन राजनीति का शाश्वत स्वभाव है। इस दिल्ली चुनाव से एक बात फिर से साफ हुई कि राज्यों के चुनावों में न तो मोदी मैजिक काम आ रहा है, न अमित शाह की रणनीति। आम चुनाव−2019 को अपवाद मान लें तो 2015 के गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद से ही भाजपा संकट में है, उसका जादू बेअसर हो रहा है।

कांग्रेस की नीतियों से परेशान देश की जनता ने भाजपा में विश्वास जताया, लेकिन उसकी अतिवादी नीतियां एवं व्यक्तिवादी राजनीति उसके लिये घातक सिद्ध हो रही है। राष्ट्रीय मुद्दों के नाम पर स्थानीय मुद्दों एवं नेताओं की उपेक्षा के कारण ही उसे बार−बार हार को देखना पड़ रहा है। समूचे देश पर भगवा शासन अब सिमटता जा रहा है। गुजरात में पार्टी बड़ी मुश्किल से जीती। कर्नाटक में सबसे बड़ी पार्टी होकर भी तुरंत सरकार नहीं बना सकी। पंजाब, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और झारखंड में पार्टी को हार मिली।

हरियाणा में वह अकेले सरकार नहीं बना पाई और महाराष्ट्र में जीतकर भी सत्ता गंवा दी। अब दिल्ली में उसके लिए नतीजे इतने खराब रहने से विपक्ष का मनोबल बढ़ेगा। राष्ट्रीय स्तर पर इसका संदेश यह गया है कि मिली−जुली ताकत और सधी रणनीति से भाजपा को चित किया जा सकता है। मतलब यह कि जनता अब आंख मूंद कर भाजपा के हर मुद्दे को समर्थन नहीं दे रही।

नरेन्द्र मोदी के अब कमजोर होने के संकेत मिलने लगे हैं और लगातार मिल रहे हैं। मोदी ने दिल्ली में दो रैलियां कीं और शाहीनबाग के मुद्दे को बहुत ही आक्रामक तरीके से उठाया, लेकिन मतदाताओं पर उसका कोई असर नहीं पड़ा। दिल्ली के नतीजों का व्यापक असर भाजपा के लिये एक बड़ी चुनौती बनने वाला है और इस चुनौती के असर से निपटना एक समस्या होगा। एक असर यह भी देखने को मिलेगा कि उसके सहयोगी दल अब उससे कड़ी सौदेबाजी कर सकते हैं। यह सबसे पहले बिहार में देखने को मिलेगा। वहां इस साल नवंबर में होने वाले चुनाव में जेडीयू नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राज्य भाजपा  को कम सीटों पर मान जाने के लिए मजबूर करेंगे। दिल्ली के चुनाव ने यह भी साबित किया कि जनांदोलनों के जरिये चुनावी राजनीति में हस्तक्षेप किया जा सकता है।

शाहीनबाग ने साबित किया कि धीरे−धीरे एक अलग तरह का विपक्ष तैयार हो रहा है, एक नये तरह का जनादेश सामने आ रहा है। संभव है, राष्ट्रीय राजनीति के संदर्भ में अरविंद केजरीवाल के इर्द−गिर्द देश के विपक्ष की कोई गोलबंदी तैयार हो, समूची राष्ट्रीय राजनीति में केजरीवाल का मॉडल नये राजनीतिक समीकरण एवं गठबंधन का माध्यम बने। केजरीवाल ने जिस तरह विरोध की राजनीति से बचते हुए विकास के अजेंडे को दोहराया, उसका व्यापक असर हुआ।

उन्होंने जिस तरह से राजनीतिक प्रश्नों से किनारा किया और एक नये अंदाज में हिंदुत्व के पक्ष में खड़े हुए उससे भाजपा की काट संभव हुई है। कोई बड़ी बात नहीं कि समूचा विपक्ष केजरीवाल मॉडल की छतरी के नीचे नया राजनीतिक गठबंधन बना ले। जनता की तकलीफों के समाधान की नयी दिशाओं को उद्घाटित करते हुए विकास सभी स्तरों पर मार्गदर्शक बने, मापदण्ड बने, तभी देश की स्थिति नया भारत निर्मित करने का माध्यम होगी, तभी विदेश नीति प्रभावशाली होगी और तभी विश्व का सहयोग मिलेगा। इसके लिये जरूरी है कि हर पार्टी को अपनी कार्यशैली से देश के सम्मान और निजता के बीच समन्वय स्थापित करने की प्रभावी कोशिश करनी होगी, ताकि देश अपनी अस्मिता के साथ जीवंत हो सके।

अशोक भाटिया
A /0 0 1  वेंचर अपार्टमेंट ,वसंत नगरी
वसई पूर्व
जिला पालघर

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