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26.2.20

ट्रंप टूर, शाहीन बाग आंदोलन और दिल्ली हिंसा के बीच का अंतर्संबंध!

दिल्ली हिंसा की जवाबदारी कौन लेगा ?

 इसमें कोई शक नहीं कि यह समय चुनौतीपूर्ण है- आर्थिक दृष्टि से भी और आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से भी। जिस दिन ट्रंप भारत आए उसी दिन दिल्ली में जिस प्रकार का हिंसक उपद्रव प्रारंभ किया गया वह इस बात को बताता है कि पाकिस्तानी तत्व अमेरिकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा को शाहीन बाग के उस आयाम के साथ टैग करके मीडिया में प्रस्तुत करना चाहते थे कि मोदी के भारत में सब कुछ ठीक नहीं है।
यह घटना हमारे इंटेलीजेंस तथा सुरक्षा व्यवस्था के लिए भी एक धक्का और चुनौती बनकर आई है जिसमें स्पष्ट हुआ है कि भारत विद्रोही तत्व यह चाहते थे कि मीडिया में जिस दिन ट्रंप की भारत यात्रा का पहला समाचार छपे उसी दिन भारत की राजधानी दिल्ली में हिंसक उपद्रवों, हेड कांस्टेबल की मौत, पेट्रोल पंप में आग का भी समाचार छपे ताकि लगे भारत भीतर ही भीतर युद्धरत है। निश्चित रूप से मोदी और अमित शाह इसे हल्के ढंग से नहीं लेंगे पर यह परिदृश्य ट्रंप की भारत यात्रा के देशभक्तों और हमारी विकास यात्रा पर सकारात्मक प्रभाव को और ज्यादा आग्रहपूर्वक सिद्ध कर देता है।

अमेरिकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा पूर्व नियोजित थी | बहुत समय से इसकी तैयारी चल रही थी | उनके आने के साथ ही दिल्ली में हिंसा भड़कने और उससे होने वाली मौतों का जिम्मेदार कौन हो सकता है | दिल्ली पुलिस  है, जिसकी  हर गली में इंटेलीजेंस होती है |इस इलाके में पहले भी पत्थरबाजी की घटनाएं हुई हैं |गृह राज्य मंत्री खुद आशंका जाता रहे हैं कि हिंसा की साज़िश थी |इंटेलिजेंस सिस्टम हाइपर एक्टिव था| दिल्ली पुलिस की लोकल इंटेलीजेंस यूनिट, उसके मुखबिर, बड़े अफसरों को मिलने वाली अंधाधुंध सोर्स मनी से फैलाया गया नेटवर्क, आईबी का समानांतर नेटवर्क| इतना ही नहीं दिल्ली में उत्तर प्रदेश की तरह बीट सिस्टम तहस नहस नहीं हुआ है| हर पुलिसवाले की जिम्मेदारी होती है कि वो अपनी बीट की जानकारी रखे| वह जानता है कि किस घर में कौन लोग रहते हैं? कौन नया आया है? कहां से आया है? कौन कहां कैसा धंधा करता है?  जाहिर बात है रॉ भी लगातार जानकारियां इकट्ठी कर रही होगी| यह सभी एजेंसियां लगातार दिल्ली पुलिस को इनपुट भेजती हैं| इस पूरे नेटवर्क के बावजूद इतनी बड़ी हिंसा फ़ैल गई. कौन मानेगा कि सूचना ठीक से नहीं मिली होगी|

यह साफ है कि दिल्ली पुलिस ने इन सूचनाओं का सही इस्तेमाल नहीं किया |अब सही इस्तेमाल ना होने की दो वजहें हो सकती हैं पहली यह कि दिल्ली पुलिस बेहद नकारा है, उसकी प्रशासनिक क्षमताएं शून्य के करीब हैं |दूसरी वजह हो सकती है राजनीतिक दवाब| दिल्ली पुलिस की काबिलियत का डंका पूरी दुनिया में बजता है. उसकी तुलना स्कॉटलैंड यार्ड से की जाती है|उत्तर पूर्वी दिल्ली की हिंसक घटनाएं बताती हैं कि जिला पुलिस ने स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर  ठीक से लागू ही नहीं कि|. हालात बिगड़ सकते हैं इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं था. दो महीने पहले ही यहां नागरिकता कानून  पर हिंसा हो चुकी है. ऐसी जटिल परिस्थितियों में कपिल मिश्रा की आग में घी झोंकने के लिए छोड़ दिया गया| उसकी गिरफ्तारी एहतियात के तौर पर की जा सकती थी. नजरबंदी भी कर सकते थे |शांति की खातिर यह बहुत जरूरी था|

इन इलाकों और शाहीन बाग़ में अंतर है |इलाकों के मुआज्जिज लोगों को बुलाकर पुलिस मीटिंग कर सकती थी| स्थानीय नेताओं की मदद ले सकती थी| उपद्रव फैलाने की आशंका में कुछ लोगों को रातों रात उठा सकती थी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ| निचोड़ ये है कि प्रशासन इस हिंसा की ज़िम्मेदारी से बच नहीं सकता| दिल्ली पुलिस के कमिश्नर को एक महीने पहले रिटायर होना था, वे एक्सटेंशन पर चल रहे हैं वो ज़िम्मेदारी से नहीं बच सकते| एलजी अनिल बैजल पुलिस के बॉस हैं और दिल्ली पुलिस के राजनीतिक मुखिया अमित शाह है. इन तीनों की ज़िम्मेदारी थी कि हालात को काबू में रखते. विफलता सीधे उनके जिम्मे आती है|

कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे !

अहमदाबाद के मोटेरा स्टेडियम में विशाल जनसमुदाय को संबोधित करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आतंकवाद से मिलकर लड़ने की जो बात कही वह भारतीय हितों के अनुकूल है और भारत अमेरिका से ऐसी ही अपेक्षा रखता था । अमेरिका ने आतंकवाद से लड़ाई के मामले में इसके पहले भी भारत का साथ देने की बात कही है | इसी कारण  पाकिस्तान में बेचैनी बढ़ गई है| पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में ये बेचैनी कितनी ज्यादा है इसका अंदाजा हम पाकिस्तानी मीडिया के बर्ताव से लगा सकते हैं| बीते कई दिनों से पाकिस्तानी का पूरा का पूरा मीडिया इसी बात को लेकर फिक्रमंद था  कि क्या कश्मीर को लेकर ट्रंप भारत के बजाए पाकिस्तान का साथ देंगे? और कोई ऐसा बीच का रास्ता निकालेंगे जो पूरी दुनिया की आंख की किरकिरी बन चुके पाकिस्तान को कुछ राहत देता है और उसके लिए फायदेमंद होता है?पाकिस्तान के मीडिया में ट्रंप के हिंदुस्तान आने को लेकर सवाल इसलिए भी बने हुए हैं क्योंकि भले ही पाकिस्तान ने कई मोर्चों पर ये क्लेम किया हो कि अमेरिका के पाकिस्तान से भी अच्छे संबंध हैं. मगरट्रंप भारत के बाद पाकिस्तान नहीं जा रहे हैं| खुद पाकिस्तान भी इसकी एक बड़ी वजह भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रसूख को मानता है| ट्रंप जानते हैं कि यदि वो भारत के बाद पाकिस्तान जाते हैं इससे कई चीजें प्रभावित हो सकती हैं जिससे दोनों देशों के रिश्तों में खटास पड़ सकती है| यदि ऐसा होता तो ट्रंप का भारत के बाद पाकिस्तान जाना विश्व पटल पर अमेरिका की नीयत को सवालों के घेरे में रखता|

इंटरनेट पर पाकिस्तान के एक टॉक शो की क्लिप बड़ी ही तेजी के साथ वायरल की जा रही है | इस क्लिप में भी एंकर अपने मेहमानों से सवाल करती नजर आ रही है कि क्या कश्मीर मसले को लेकर अमेरिका भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्था की पेशकश करेगा? क्या ट्रंप इस मुलकात में  कश्मीर  मुद्दे को उठाएंगे? क्या ट्रंप इस विषय पर भारत के प्रधान मंत्री  मोदी से बात करेंगे? पाकिस्तानी मीडिया इन सवालों को लेकर इसलिए भी फिक्रमंद हैं और इनको लेकर बात इसलिए भी कर रहा है क्योंकि कश्मीर से धारा 370 औरे 35 ए हटाए हुए करीब 6 महीने हो चुके हैं और तब इस पूरे मामले पर अमेरिका चुप था|खुद पाकिस्तान के राजनीतिक विशेषग्य  इस बात को मानते हैं कि यदि भारत द्वारा कश्मीर में धारा 370 हटाए जाने के बाद पाकिस्तान अपने दोस्तों को एकजुट करने में नाकाम हुआ है तो ये साफ़ तौर पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की विफलता दर्शाता है और दिखाता है कि वो एक कमजोर प्रधामंत्री हैं जो अपने देश को आगे ले जाने में नाकाम हैं |वहीं साथ ही पाकिस्तानी मीडिया अपनी बातों में इस चीज को भी बल दे रहा है कि कश्मीर मसले पर पाकिस्तान एक बड़ा स्टैंड तभी ले सकता है जब खुद पाकिस्तान का विपक्ष अपने प्रधानमंत्री पर भरोसा जताए और इस मामले पर उसके साथ खड़ा हो|पाकिस्तान में सत्ता पक्ष को लेकर यही कहता नजर आ रहा है कि कश्मीर, इमरान खान और उनकी पार्टी का व्यक्तिगत मसला नहीं है ये पीड़ित मुसलमानों का मसला है और उन मुसलमानों के लिए किसी और को एकजुट करने से पहले खुद पाकिस्तान, वहां के लोगों, वहां के हुक्मरानों को एकजुट होना पड़ेगा|

पाकिस्तानी मीडिया में ट्रंप की भारत यात्रा को लेकर चर्चाओं का दौर जारी है | इमरान खान और उनकी पार्टी से लेकर आम जनता तक, सभी इस बात को लेकर फिक्रमंद हैं कि ट्रंप के भारत आने के बाद क्या कश्मीरियों को उनके अधिकार दिलाने में पाकिस्तान कामयाब हो पाएगा? तमाम तरह के सवालों के जवाब वक़्त की गर्त में छुपे हैं लेकिन जो वर्तमान है उसे देखकर इस बात का अंदाजा खुद लग जाता है कि फ़िलहाल जैसी स्थिति है पाकिस्तान| वहां की मीडिया और प्रधानमंत्री इमरान खान तीनों के ही अच्छे दिन आने मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन हैं| अब तो अमेरिका के  राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा पूरी हो चुकी है व पाकिस्तान के लिए केवल यही कहा जा सकता है ‘ कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे ‘|

अशोक भाटिया, A /0 0 1  वेंचर अपार्टमेंट ,वसंत नगरी,वसई पूर्व ( जिला पालघर-401208) 

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