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5.1.21

टकराव की ओर जा रहा है किसान आंदोलन

CHARAN SINGH RAJPUT-

भले ही 8 तारीख को लोग किसानों और सरकार की वार्ता से बड़ी उम्मीदें लगाए बैठे हों पर मुझे नहीं लगता है कि अब कोई बात बनेगी। इसके पीछे सरकार की बदनीयत है। सरकार ने जिस तरह से पूंजीपतियों के दबाव में ये तीन नए कानून बनाये हैं। सरकार किसी भी सूरत में कानून वापस लेती नहीं दिखाई दे रही है। एमएसपी पर भी लिखित में आश्वासन की बात तो की जा रही है पर कानून लाने की पर सरकार राजी नहीं है। किसान कानूनों के वापस लिए बिना मानने वाले नहीं हैं। किसानों ने कानून वापस कराकर ही वापस जाने किस एलान कर दिया है। गणतंत्र दिवस पर परेड में शामिल होने की तैयारी किसानों ने शुरू कर दी है।

 
परिस्थितियों पर पर जाएं तो किसान कानून वापस न होने पर गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में बड़ा हंगामा होने की पूरी आशंका है। मीडिया डुगडूगी बजा रहा है कि किसान और सरकार दोनों के बीच जमी बर्फ कुछ पिघली है पर जमीनी हकीकत यह है कि जिन दो प्वाइंट पर सरकार और किसानों की सहमति बनी है। ये प्वाइंट इन कानूनों का हिस्सा है ही नहीं। असली प्वाइंट तो किसान कानूनों की वापसी और एमएसपी पर कानून बनाना है।

वार्ता कैसे सफल होगी? किसान कानूनों को वापस कराने पर अड़े हैं सरकार वापस न करने पर। मोदी सरकार ने पूरी मशीनरी कानूनों को सही साबित करने में लगा रखी है। वैसे भी सीएए और एनआरसी आंदोलन से साबित हो गया था कि सरकार आंदोलनों के खिलाफ है। देश का दुर्भाग्य यह है कि गोदी मीडिया मोदी सरकार को सही ठहराने में लगा है। सरकार संशोधन कर किसानों को मनाने का प्रयास कर रही है, जबकि किसानों ने सरकार की नीयत भांप ली है। किसान जान चुके हैं अब सरकार किसी तरह आंदोलन को समाप्त करना चाहती है। दरअसल किसानों के गणतंत्र दिवस पर परेड में शामिल होने के ऐलान ने सरकार की बेचैनी बढ़ा दी है। परेड के मुख्यआतिथि के न आने की खबर किसानों के पक्ष में जा रही है। मोदी सरकार जानती है कि यदि गणतंत्र दिवस से पहले आंदोलन खत्म न हुआ तो जो ताकत मोदी सरकार दुनिया को दिखानी चाहती है वह तो धरी रह जाएगी किसानों की ताकत पूरी दुनिया देखेगी। मतलब दिल्ली में पुलिस और किसानों के बीच बड़ा घमासान होने की आशंका है।

किसान आंदोलन को सीएए और एनआरसी की तरह समाप्त करने की नीयत पाले बैठे मोदी सरकार को किसान आंदोलन भारी पडऩे वाला है। यदि मोदी सरकार किसान कानून वापस लेती है तो अपने आकाओं अंबानी और अडानी को नाराज करेगी और यदि वापस नहीं लेती है तो गणतंत्र दिवस की परेड किसानों के नाम हो जाएगी। मतलब जान-माल की होनी की तो पूरी आशंका है ही साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मोदी सरकार को जवाब देना मुश्किल हो जाएगा। वैसे भी किसान आंदोलन को लेकर अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन में लोग मुखर होने लगे हैं।

दरअसल यह अब स्पष्ट हो चुका है कि ये तीनों कानून किसानों नहीं बल्कि प्रधानमंत्री के गरीबी पूंजपीतियों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाये गये हैं। कोरोना काल में जबर्दस्ती कानून पास कराना मोदी सरकार की बदनीयत दर्शाता है।

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