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19.8.21

"तालिबान" बनाम "तालिबे इल्म"..

"तालिबान" बनाम "तालिबे इल्म"..
गुज़िश्ता कुछ रोज़ क़ब्ल अमेरिकी सुपर पॉवर के ग़ुरूर को अपनी क़बाइली जूतियों तले रौंदते हुए जब अफगानिस्तान पर तालिबानी दहशत गर्दो की हुक़ूमत नाफ़िज़ हुई तब से "सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म" पर एक सवाल बाज़ाबता उठ खड़ा हुआ कि"तालिबान"की मुराद उन दहशत गर्दो से है जो मदरसों में "एक ख़ास मज़हबी"तालीम की मार्फ़त तैयार किये जाते हैं जिनका मक़सद और कारगर्दगी काफ़ी हद तक "मंगोल-हुक़ूमत" से मिलती है। दरअसल ये तालिबानी दहशत गर्द वो लोग हैं जिनका शिजरा ईमान आली मक़ाम मौला अली मुश्किल कुशा के मुखाल्फ़ीन से जा कर मिलता है।जिसकी पटकथा कर्बला के तपते हुए रेगिस्तान पर इमाम हुसैन इब्ने अली की शहादत के साथ लिखी गयी और मज़हब का नाम देकर पूरी दुनियां में ख़ौफ़ की तिजारत का कारोबार जो शुरू हुआ तो आज तलक जारी है।ये और बात है कि इस मज़हबी अक़ाएद की कमान उस दौर में यज़ीद और शिम्र के हाथ मे थी और हेड ऑफिस कर्बला के रास्ते  सीरिया में मुश्तमिल था।आज यज़ीद चेहरा बदल कर तालिबान के रूप में आन खड़ा हुआ और हेड आफिस पाकिस्तान के रास्ते वाशिंगटन पहुँच गया।ये उस अक़ाएद के लोग हैं जो "सऊदी-सोच" से पैदा हुए, "अमरीकी-सरपरस्ती" में परवरिश पाई।
#तो_तालिबानियों_सुनो!तुम्हारी सोच के कुछ "जीव-जन्तुओ" ने हमारे मुल्क़ में भी पैर-पसारने की नापाक क़ाविशे शुरू कर दी हैं,हालांकि मुल्क़ की आज़ादी से लेकर 2014 से पहले तक "सऊदी-ज़ाक़त"पर सालों से एक नामनेहाद सेक्युलर पार्टी की मार्फत इस सोच को सींचा जा रहा था..लेकिन अब बस!
तुम और तुम्हारी-सोच की जम कर मुख़ालफ़त होगी और तब तक करते रहेंगे जब तक तुम्हें सफे हस्ती से न मेट दें।क्योंकि तुम बहुत शातिराना तऱीके से अपने आप को "सुन्नी-मुसलमान"कहलवाते हो और तुम्हारे मदरसों में गजवा-ए-हिन्द का नापाक ख़्वाब दिखाया जाता है। इसलिये तुम्हारे मदरसों से जो निकला वो "तालिबानी" कहलाया और तमाम चिश्ती,साबरी,बरेलवी व् दीगर सूफी सिलसिले के मानने वाले बुजुर्गों के क़ायम-करदा इदारों में जो गया वो"तालिबे-इल्म"कहलाया जहां से एपीजे अब्दुल कलाम,अशफ़ाक़ उल्ला खान,अब्दुल हमीद बन कर निकला!!
 हम आले नबी औलादे अली हैं, हमारे यहां "तालिबान" नही तालिबे-इल्म का दर्स दिया जाता है। जिसका मायने इल्म का तलबगार होता है।चाहे वो दीनी इल्म हो या दुनियावी इल्म हो। जिसका मक़सद सिर्फ़ और सिर्फ़ एक है और वो है इंसानियत की बक़ा! जब हम बहत्तर थे तब भी हम तुम्हारे सामने कर्बला के तपते हुए सेहरा में सीना सिपर हो कर खड़े रहे,पूरा कुनबा राहे हक़ में इंसानियत की बक़ा के लिये लुटा दिया और आज भी तुम्हारे नापाक मंसूबो के आगे हुसैनियत और मुल्क़ के तहफ़्फ़ुज़ के लिये अपनी खून की आख़री बूंद तक  डटे रहेंगे और तुम्हें बेनक़ाब करते रहेंगे!इन्शा अल्लाह

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