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22.9.21

21 सितम्बर (जयंती पर विशेष) : संन्यासी के चोले में जिंदगी भर व्यवस्था से लड़ते रहे स्वामी अग्निवेश जी

CHARAN SINGH RAJPUT-

आज सोशल एक्टिविस्ट और समाज सुधारक स्वामी अग्निवेश जी जयंती है। मुझे भी उनके साथ काम करने का सुअवसर प्राप्त हुआ है। भाषा पर जबर्दस्त पकड़ होने की वजह से मुझे उनसे सीखने को बहुत कुछ मिला। हर आदमी में कमियां खूबियां दोनों होती हैं। स्वामी अग्निवश जी में भी थे। मुझे उनकी इस बात ने बहुत प्रभावित किया कि अन्याय के खिलाफ मोर्चा खोलने में वह किसी को नहीं बख्शते थे। मीडिया के खिलाफ बोलने से राजनीतिक और सामाजिक संगठनों के लोग अक्सर बचते देखे जाते हैं पर स्वामी अग्निवेश जी ने मीडिया में शोषण के खिलाफ होने वाले आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई। मजीठिया वेज बोर्ड मामले में वह न केवल दैनिक जागरण के खिलाफ खुलकर बोले बल्कि राष्ट्रीय सहारा में अन्याय के खिलाफ हुए आंदोलन में भी उन्होंने आंदोलनकारियों की मदद की।


मेरे अनुभव उनसे खट्टे और मीठे दोनों रहे हैं। मैं उनका वैचारिक सलाहकार के रूप में काम कर रहा था तो उनसे लंबी चर्चा होती रहती थी। वह हमेशा देश और समाज के प्रति ङ्क्षचतित रहते थे। हां धर्म के मामले में हिन्दू धर्म की आस्था पर वह कुछ ज्यादा ही मुखर हो जाते थे। मैंने खुद मुस्लिमों के लिए रोजा इफ्तार पार्टी देना और हिन्दुओं की अमरनाथ यात्रा को पाखंड बताने को लेकर सवाल उठाया था।

यह स्वामी अग्निवेश का आंदोलनों से लगाव ही था कि उन्होंने मुझे जंतर-मंतर हो होने वाले आंदोलन स्थल का प्रभारी बना रखा था। जंतर-मंतर पर होने वाले आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी निभाते हुए जंतर-मंतर पर होने वाली आंदोलनकाारियों की परेशानी को सुनकर उनको हल कराने के लिए भी उन्होंने मुझसे कह रखा था।

फरीदाबाद में मजदूरों के लिए होने वाले संघर्ष को लेकर मेरे उनसे वैचारिक मतभेद भी हुए पर न उनका मेरे प्रति स्नेह कम हुआ और न ही मेरा उनके प्रति सम्मान। मुझे स्वामी अग्निवेश के रूप में एक संन्यासी के वेश में व्यवस्था के खिलाफ खड़ा होने वाला एक बागी नजर आया।

झारखंड में अराजक लोगों द्वारा उन पर हुए हमले से वह न केवल मानसिक रूप बल्कि शारीरिक रूप से भी वह टूट गये थे। वह हमला ही उनके निधन का कारण बना। उन्होंने मुझे एक विशेष मिशन पर फरीदाबाद भेजा था। मैं आज भी स्वामी अग्निवेश जी के मिशन पर काम कर रहा हूं। समय-समय पर दयानंद कालोनी में होने वाली समस्याओं को न केवल मंचों बल्कि अपनी लेखनी से भी उठाता रहता हूं।

दरअसल पत्थर खदानों में काम करने वाले मजदूरों को संगठित कर उन्होंने जो उनके हक की लड़ाई लड़ी। उस लड़ाई के परिणामस्वरूप फरीदाबाद के सेक्टर 143 ए में ग्रीन फील्ड कॉलोनी से लगते हुए छह एकड़ जमीन पर दयानंद कालोनी पुनर्वासित हुई। वहां पर पड़े अधूरे काम को पूरा कराने के लिए वह हमेशा प्रयासत रहते थे।  सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर छड़ एकड़ जमीन पर पुनर्वासित हुई इस कालोनी में न केवल स्कूल, बल्कि अस्पताल और खेल का मैदान बनना था पर आज स्थिति यह है कि यहां पर रह रहे लोग बुनियादी समस्याओं को ही तरस रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार इस कालोनी में 523 मकान बनने थे,जबकि 365 ही बने हैं। 97 मकान ऐसे हैं जो अभी अलॉट होने हैं। इन मकानों में से कुछ में पत्थर खदान में काम करने वाले लोग रह रहे हैं तो कुछ प्रभावशाली लोगों ने किराये पर भी दे रखे हैं। मेरा अपना मानना है कि यदि इस कालोनी का विकास सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार विधिवत रूप से हो जाए तो हिन्दुस्तान में यह अपने आप में एक मिसाल बन जाएगी।

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