सुधीर अवस्थी परदेसी-
पत्रकारिता महज एक काम नहीं बल्कि मिशन रही है। इस क्षेत्र में आने वाला शख्स अपना सब कुछ दांव पर लगा कर पत्रकार कहलाता है। बिल्कुल इस बात को कहने में संकोच नहीं कि वर्तमान समय में हाईटेक पत्रकारिता में साधन सुविधाएं बढ़ीं पत्रकारिता आसान हुई लेकिन पत्रकारिता का स्तर गिरता नजर आ रहा है।
गुजरे जमाने की पत्रकारिता समस्याओं और मौके पर जाकर सूचनाओं के इर्द-गिर्द रहती थी। वर्तमान की पत्रकारिता अधिकारियों के इर्द-गिर्द की चल रही है। जो पत्रकार अधिकारियों की परिक्रमा नहीं कर सकता वह हाईटेक पत्रकारिता में फेल है। जो प्रमाणिकता के चक्कर में ताजा अपडेट चाहता है। उसको चाटुकारिता निश्चित रूप से करनी होगी। इसमें कोई संदेह नहीं है। अब वह किस स्तर तक होती है। यह पत्रकार पर निर्भर करती है। इन सब बातों को लेकर संस्थान भी गंभीर नहीं हैं। उनको लगता है कि उनका प्रतिष्ठान अखबार या चैनल सबसे आगे चले और सबसे ज्यादा विज्ञापन मिले। सबसे ज्यादा प्रसार या दर्शक संख्या हो इस पर उनका ध्यान केंद्रित है। पत्रकारिता का स्तर क्या है कहां पहुंच गया, इसकी ठेकेदारी कोई नहीं करना चाहता। जीडी से प्रमाणित समाचार लेखन पत्रकारों की कलम के दांव पेंच को प्रभावित कर रहा है। वह शैली अब अखबारों में देखने को नहीं मिलती। जिसको पढ़कर जिम्मेदार कुम्भकरणी नींद से जागते थे।
पहले तो अखबार में अगर कोई फोटो छपवानी है, तो रील वाले कैमरे से फोटो खींचकर मुख्यालय में उसकी रील कटने के बाद फोटो बनती थी। फिर कोरियर से वह फोटो प्रिंटिंग प्रेस तक पहुंचाई जाती। अगले दिन अखबार में छपकर आती थी। पैसा किसी बात का नहीं मिलता, फिर भी धुंआधार खबर लोगों की नींद उड़ा दिया करती थी। इस समय तमाम प्रमुख अखबारों की खबरें महज एक बिजनेस प्रोडक्ट नजर आती हैं। उस समय विज्ञापन का इतना लालच अखबारों को नहीं हुआ करता था। मानता हूं उस समय इतनी महंगाई भी नहीं थी। फिर भी कहीं ना कहीं अखबारों का ईमान कुछ अलग था। अब तो अखबारों का ईमान भी हाईटेक हो गया है। सारे खर्चे और तमाम अनावश्यक साधनों का विस्तार कर पत्रकारिता का व्यवसायीकरण कर रहे हैं।
जो विज्ञापनदाता नहीं है जिसको छापने से ना कोई अखबार को लाभ और ना ही छपने वाले को कोई लाभ ऐसे लोगों को खबरों से अलग किया जाना, कहां तक जन सरोकार की पत्रकारिता है। अब पत्रकारिता का जो कैडर स्टैंड हो रहा है वह व्यवसाय पर आधारित है। जनकल्याण का संकल्प अधूरा है। जब अखबारों ने खबर का नजरिया बदला तो समाज के लोगों का भी नजरिया अखबारों के प्रति बदल गया यही वजह है कि अब अखबारों की प्रसार संख्या लगातार प्रभावित हो रही है। टीवी चैनलों की भी दर्शक संख्या प्रभावित हुई है। तमाम न्यूज ऐप और चैनल वेबसाइट की खबरों में लोग रुचि दिखा रहे हैं।
महंगा अखबार सस्ती खबरें आखिर लोग क्यों उसके वशीभूत हों ? अब लोग गुजरे हुए जमाने से काफी व्यस्त और होशियार हैं। अब अखबारों में न्यूज़ ग्रुपों और चैनलों पर बार-बार खबर चलती रहती है । फिर भी जनसमस्यात्मक खबर को गंभीरता से नहीं लिया जाता। खबर में वर्जन लेने की प्रथा अनावश्यक पत्रकारिता पर बोझ है। पत्रकारों को जानबूझकर झूठ का खबर में समावेश करना पड़ता है। हम तो गंवईले स्तरहीन पत्रकारिता से जुड़े हैं। जहां पर सम्मान से अधिक चारों ओर अपमान का सामना करना पड़ता है।
लेखक यूपी के हरदोई जिले में ग्रामीण पत्रकार हैं।
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