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9.1.08

आओ चलें पीएम हाउस

मेरे सारे ब्लॉगर साथी

आप सब लोग मेरे साथ पीएम हाउस चलेंगे। जो साथी दिल्ली से बाहर के हैं उनके आने-जाने के लिए हमसब मिलकर चंदा करेंगे। ज्यादा लोग एक साथ चलेंगे तो थोड़ा प्रेशर बनेगा। सोच रहा हूं कि वहां चलकर उनसे अपील की जाए कि वे भी हमारी तरह ब्लॉगर बनें।

ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं कि इधर 10 दिनों के भीतर कई ब्लॉगर साथियों से मिलना हुआ। किसी को भी पहले से नहीं जानता था। कुछ तो बड़े लोग थे (उम्र या फिर पैसा आप जिस किसी भी रुप में समझे) । सबको बस उनके ब्लॉग के जरिए ही जाना। और एक दूसरे का परिचय भी सबने ब्लॉगर के रुप में ही कराया। बाकी कौन क्या करता है इससे बहुत अधिक मतलब भी नहीं था। अच्छा, चाय-पानी का पैसा देने में भी वे अपने-आप आगे आ गए क्योंकि वे पुराने यानि सीनियर ब्लॉगर हैं और मैं जाकर-आर्डर देने या फिर हरी चटनी के लिए बोल रहा था, क्योंकि इस मैंदान में अभी मैं फूच्चू ही हूं। जो महसूस किया, वो ये कि एक ब्लॉगर-दूसरे ब्लॉगर को इस तरह से इंट्रोड्यूस नहीं कराता कि- इ भी झारखंड से ही हैं या ही इज फ्राम डीयू या फिर ही इज ऑल्सो इंट्रेस्टेड इन मीडिया चूतियाप्स...वगैरह, वगैरह। अब बताते हैं कि अरे ये वही है जिसने समय चैनल पर लिखा था, झारखंड में जो इंटरव्यू देने गए थे, उनकी ले ली थी। इससे जो संवाद का माहौल बनता है उसमें एक अलग तरह का फक्कड़पन होता है, एकदम बिंदास मिजाज का गप्प-शप।

अपने काशी का अस्सी वाले काशीनाथ सिंह की भाषा में कहें तो व्हाइट हाउस को निपटान घर समझने वाला कांन्फीडेंस। कम से कम मैंने तो ऐसा ही महसूस किया है कि कीपैड को एक-दूसरे के आगे ताना-तानी वाला अंदाज भले ही ब्लॉग पर चलता रहे लेकिन वो कभी कलम की जगह सुई न बनने पाती है। और कुछ हुआ हो चाहे नहीं लेकिन ऐसा होने से सोशल स्पेस तो जरुर बढ़ा है। अब कोई हमें ब्लॉगर होने के नाते अपने यहां डिनर पर बुला ले तो दोस्तों या फिर रिश्तेदारों के यहां जाने से पहले प्रायरिटी दूंगा। एक शब्द में कहूं तो ब्लॉगिंग करने से अपने मिजाज के लोग आसानी से मिल जाते हैं, बन जाते हैं और छनने भी लगती है।

यही सब सोचकर मैंने ये प्रस्ताव रखा है कि अगर अपने मनमोहन सिंह भी ब्लॉगर बन गए तो वो हमसे, सॉरी हम उनसे खुल जाएंगे। उन्हें भी लगेगा कि हंसी ठिठोली के लिए सिर्फ 10 जनपथ ही नहीं है और भी लोग हैं जिनके साथ बोला-बतिया जा सकता है और वो भी घर बैठे। अपने तरफ से थोड़ा करना ये होगा कि इंग्लिश में थोड़ी हाथ मजबूत करनी होगी जिसकी है उसे प्रैक्टिस में लानी होगी। मेरा तो एक लोभ ये भी है कि अगर उन्होंने दिसम्बर और जनवरी जैसे महीने में ब्लागर्स मीट करा दिया तो डिनर में तरबूज भी खाने को मिलेंगे। मेरी उम्र की लड़कियां बिंदास मूड में जब उनके यहां जाती है तब तो पकड़वा देते हैं लेकिन हमलोग जाएं तो शायद बोले- छोड़ दो, नौजवान ब्लॉगर है और परेड में क्या पता ब्लॉगर के बैठने के लिए अलग से कोटा हो।

अच्छा, ऐसा नहीं है कि फायदा सिर्फ हम ब्लॉगरों को ही है, उन्हें भी तो है। बिना कोई वेतन के, बिना कोई पॉलिटिक्स किए, फिर गलती हो गई, पॉलिटिक्स की बात माने हुए उन्हें देश का बेस्ट ब्रेनी मिल जाएगा और समय-समय पर अपने कीमती सुझाव भी देगा। यहां पर भाजपा या फिर उनके दूसरे विरोधियों के खिलाफ लिखने-बोलने वालों की कमी थोड़े ही है। अगर मनमोहनजी को मेरी बात का भरोसा नहीं है तो अबकी 26 जनवरी का भाषण हममें से किसी भी ब्लॉगर से लिखवाकर देख लें। ड्राई रन ही सही। ऐसा धांसू होगा भाई कि भाषण के नाम पर हिन्दी की डिक्शनरी ठोकने वाले को भी कुछ ज्ञान हो।

यही सब बात सोचकर मैंने आपके सामने ये प्रस्ताव रखा है। कैसा लगा बताइगा और कब तक जबाब दे देंगे, काहे टिकट और रहने-खाने के इंतजाम में भी तो लगना होगा।

आकांक्षी
विनीत कुमार, ब्लॉगर
राजधानी, भारत
इंडिया

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