Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

5.1.08

उनका होना ऊर्जा से भर देता है...

कई लोग ऐसे होते हैं जिनसे आप मिलेंगे तो आप जितनी देर उनके साथ रहेंगे, खुद को एक अजीब ऊर्जा से भरा पायेंगे। उनमें इतना सम्मोहन होता है, इतनी सादगी होती है, इतना अपनापन होता है, इतनी आत्मीयता होती है.....और यह सब कुछ तब जब कि वे उस उंचाई पर बैठे हुए हैं जहां पर बैठने के बाद बाकी दूसरे आदमी सिवाय अकबक झकतक खटखट करने के कुछ कह सुन बोल जी नहीं पाते। बात कर रहे हैं हरिवंश जी की। जी हां, प्रभात खबर के प्रधान सेनापति। संपादक। वन मैन आर्मी।

उनके बारे में मैंने भी बहुत सुना था लेकिन मिलने का संयोग अभी हाल ही में दिल्ली में हुआ। वो होटल इंपीरियल में मलयाला मनोरमा द्वारा आयोजित सेमिनार और उससे पहले इनमा के कांफ्रेंस में मौजूद थे। इन दोनों जगहों पर मुलाकात के ठीक एक दिन पहले रात में उनसे प्रभात खबर के दिल्ली वाले गेस्ट हाउस में मिला था, जहां वो रुके थे। अपने मित्र और इन दिनों मेरे बास रंजन श्रीवास्तव के साथ। रंजन दिल्ली में प्रभात खबर के लंबे समय तक ब्यूरो चीफ रहे। तो, हरिवंश जी को जब पहली बार उस गेस्ट हाउस में देखा तो एकदम से लग गया, आदमी में दम है। उनका पहनावा, बोलचाल, रहन-सहन, बागी लैंग्वेज...सब आत्मीयता से भरा।

हरिवंश जी का आज जिक्र क्यों कर रहा हूं? दरअसल, अपने एक भड़ासी मित्र हैं घुन्नू झारखंडी। असली नाम है घनश्याम श्रीवास्तव। उनसे कभी मिला तो नहीं हूं लेकिन भड़ास के सदस्य होने के नाते उनके ब्लाग को पढ़ता रहता हूं। उनके ब्लाग का नाम है--झारखंडी घनश्याम नाम से। तो उनके ब्लाग पर देखा कि उन्होंने हरिवंश जी के साथ काम के दौरान के संस्मरणों और अनुभवों की कई पोस्टें डाल रखी हैं। मैं उन सभी को पढ़ता गया। मजा आया। लगा, चलो हरिवंश जी को थोड़ा और जानने का मौका मिला।

इसी तरह एक मेरे संपादक थे वीरेन डंगवाल जी। बेसिकली वो ख्यातिप्राप्त कवि हैं। कानपुर में उनको जितना देखा जाना समझा उसके बाद मुझे कोई वैसा संपादक आज तक नहीं मिला। इतना मानवीय, इतना सहज, इतने शार्प, इतने आत्मीय....। जितना कहें उतना कम है। हरिवंश जी को देखा तो वीरेन दा की याद ताजा हो गई। इन लोगों जैसे लोगों के साथ काम करने वाले वाकई सौभाग्यशाली लोग हैं। तो मैं अपने भड़ासी मित्र घुन्नू झारखंडी उर्फ घनश्याम श्रीवास्तव के ब्लाग का लिंक दे रहा हूं जहां जाकर आप वर्तमान समय के सर्वश्रेष्ठ हिंदी संपादकों में से एक हरिवंश जी के बारे में जान पढ़ सकते हैं। बस एक कमी खलती है, हरिवंश जी की तस्वीर घनश्याम जो को अपने ब्लाग पर लगानी चाहिए थी।

तो हरिवंश जी के बारे में घनश्याम जी के संस्मरणों को पढ़ने के लिए क्लिक करें...

झारखंड में पत्रकारिता का नया युग
-------------
हरिवंश जी में किसकी कैसी रुचि
-------------
हरिवंश जी की वर्किंग स्टाइल
-------------
हरिवंश जी ने ले ली मेरी क्लास

उपरोक्त के अलावा घनश्याम ने अपने ब्लाग पर कई और पठनीय व विचारणीय पीस लिखे हैं, उनमें से एक आप सभी पत्रकार मित्रों को जरूर पढ़ना चाहिए....मौत एक पत्रकार की

घनश्याम जी अनुभवी पत्रकार हैं और भड़ास का सदस्य होते हुए भी उन्होंने कभी भड़ास पर अपनी लेखनी का जादू नहीं दिखाया। अंततः अब भड़ास को ही उनके ब्लाग पर जाना पड़ रहा है। कहा भी जाता है ना-- हीरे चाहें जहां रहें, अपनी चमक से सबका ध्यान खींच ही लेते हैं।

वैसे, अगर चाहें तो घनश्याम जी भड़ास के लिए विशेष तौर पर हरिवंश जी की तस्वीर के साथ एक लंबा इंटरव्यू करें और उसे भड़ास पर पोस्ट कर दें। यह आपकी मर्जी पर है।

जय भड़ास
यशवंत

1 comment:

घन्नू झारखंडी said...

bhaee yashwant jee, apne blog par mujhe jagah dekar sachmuch aapne meree itnee pratishthaa badha dee hai, jitne ka haqdaar main naheen . harivansh jee ko jaanna, unke baare men baaten karna sukhad aur urja se bhara hotaa hai, hameshaa . kal hee mere post ke baare men unhe kisi ne siliguri se batayaa aur mujhe unhone phone kiya . lambee baaten huee aur 18 saal purana prabhat khabar aankhon ke aage ghoom gaya . unse lambee baatcheet aur unkee tasweer main sheeghra hee arrange kar apne blog par daaloonga. ek baar phir aapko hridaya se dhanyavad,
ghanshyam