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7.1.08

उफ कि इस कदर भी होती है बंद आंखों से चेहरे की नुमाइश

अभी अभी भडास पर आया और आप सभी की हरिवंश जी के बारे में राय देखकर मन खिन्न हो गया.... गलत समझा है हरिवंश जी को विशाल जी आपने... कलकत्ता से रांची के बीच की सडकों में खो गए हरिवंश... माफ कीजिए घनश्याम जी कलम ने नहीं इस बार आपकी समझ ने धोखा दिया है आपको... मुझे आपसे इस तरह के चित्र की उम्मीद नहीं थी... आपकी फ्रेम में तो हरिवंश जी की आंख का बाल भी नहीं आ सका...और यशवंत भाई जी आप तो पहली मुलाकात में अविभूत होने का मर्ज जल्द ठीक करवा लीजिए... अविनाश जी को जो मर्ज फिल्मों की पूरी बदकुच्चन से दूर रखता है उसके आप बडे मरीज हो गए हैं... अविनाश जी जब कोई फिल्म देखते हैं तो उन्हे सिर्फ और सिर्फ वही वाह वाह अदभुतं, दिव्यं, अकल्पं लगती है.... दोस्तो अभी अखबारी मजबूरी है पेज छोडना है.... नौकरी निभानी है.... कल शाम पांच बजे फिर हाजिर होउंगा और पांच बजकर पांच मिनिट पर आपके सामने होंगे हरिवंश जी अपनी पूरी शक्ल में.... दावा है मैं उस शख्सियत के एक नहीं कई ऐसे पहलू बताउंगा... जो किसी और से भिन्न बनाते हैं उन्हें बिल्कुल अलग.....
वाय एन झा सहाब सुन रहे हैं न... चिपके रहिए कंम्पूटरवा से
शब्बा खैर.......

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