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6.6.14


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-नितिन सबरंगी
जैसे सबकुछ महंगा है ओर जिंदगी ही बेहद सस्ती है। देश में हर साल 1 लाख 50 हजार से ज्यादा लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं। घायल होने वालों का आंकड़ा इससे भी बड़ा है। 30 लाख घायल होते हैं।  दुर्घटनाओं में हम दुनिया के मुकाबले नंबर वन हैं। हर घंटे करीब 13 लोगों की मौत हादसों में हो जाती है। 36 लाख किलोमीटर लंबी सड़कों पर मौत दनदनाती है। दुर्घटनाओं से 1 लाख करोड़ रूपये का नुकसान भी होता है। दुर्घटनाओं में हर साल सामाजिक ओर आर्थिक कीमत चुकानी पड़ती है। नेशलन क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट में दुर्घटनाओं में होने वाली मौत का चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। 2011 में देश में हर दिन100 लोग दुर्घटना में मारे गए। लापरवाही व शराब की प्रवृत्ति ने इस रफ्तार को ओर भी तेज कर दिया है। कभी रफ्तार, कभी लापरवाही, तो कभी शराब का सुरूर लोगों को तेजी से मौत के मुंह में ले जा रहा है। कानून बिल्कुल लचीला हो ऐसा भी नहीं है बल्कि कड़वी हकीकत यह है कि उसका पालन करने से गुरेज किया जाता है। कई लोग इसे अपनी झूठी शान के खिलाफ समझते हैं नतीजा मौत के रूप में भी सामने होता है। देशभर में रोजाना 377 लोग सड़क हादसों में अपनी जान गंवाते हैं। कारों की भिडंत के बाद हुई गोपीनाथ मुंडे की मौत ने बैक सीट पर एयर बैग्स की अहमियत याद दिला दी है। जिंदगी की तेज रफ्तार ओर लापरवाही की कीमत ही शायद ऐसी है।

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