85 %लीकेज वाला ट्यूब है अर्थ व्यवस्था
श्री राजीव गांधी ने कहा था सरकार रुपया खर्च करती है मगर आम जनता को
पंद्रह पैसे ही मिलते है !!बाकी पैसे कहाँ जाते हैं ?इसका उत्तर वो नहीं दे पाये थे।
ट्यूब में एक पंक्चर हो तो गाडी चलती नहीं है फिर 85 %पंक्चर अर्थ व्यवस्था
का कायाकल्प कैसे होगा ?अर्थव्यवस्था में इतने पंक्चर किसने हो जाने दिये ?
रुपया सरकार की तिजोरी से निकलते ही घिसना चालू हो जाता है। भ्रष्ट
नेता,भ्रष्ट उद्योगपति ,भ्रष्ट नौकरशाही और भ्रष्ट हो रही न्याय व्यवस्था और
इनके दलदल में फँसे हैं 80%भारतीय जो इसलिए ईमानदार हैं क्योंकि उनके
पास तो अर्थ है ही नहीं।
देश की जन कल्याणकारी योजनायें जनता के लिए तमाशा और उससे जुड़े
भ्रष्ट लोगों के लिए लॉटरी है। देश की नौकरशाही कागजों पर फूल बनाती है और
फाइलों पर चिपका देती है। जनता इसलिए खुश होती है कि ये कागज के फूल
मुरझाते नहीं हैं और बाकी चैनल इसलिए खुश है कि उन्हें असल में खुशबु आती
है।
हमारी वितरण व्यवस्था की सबसे बड़ी खामी यह है कि उसका recheck का
बटन अँधा ,बहरा और लकवाग्रस्त है। राशन का अनाज बाजार में बिक जाता
है या बड़ी मिलों में सप्लाई हो जाता है। अनाज सरंक्षण की व्यवस्था हर गरीब
के घर में है परन्तु उसको अनुपयोगी समझ लिया गया है। क्या कोई भी सरकार
रातों रात भंडारण और सरँक्षण व्यवस्था तैयार कर लेगी ?तो फिर उस अनाज
का सड़ना और बाजार के हवाले होना तय है।
BPL से निचे का बड़ा वर्ग जिसके पास ना गाँव है ,ना समाज ;वह तो फुटपाथ
पर जीता और मर जाता है या जंगलों में गुजर बसर कर जिंदगी घसीट रहा है ,
उसके जीवन में उजाला कैसे होगा क्योंकि सरकार के पास उसके लिए कोई
योजना है ही नहीं। यह वर्ग सरकार की वितरण व्यवस्था के दायरे में कैसे और
कब आयेगा ?
सरकार की सफलता का पैमाना हम बढ़ते स्टॉक मार्केट,बढ़ते अरबपति और
करोड़पति,बड़े उद्योग धंधों में देखते हैं मगर हम इस चकाचोंध में यह भूल जाते
हैं कि करोड़ों भारतीय बहुत पीछे छूटते जा रहे हैं। सरकार की कोशिश यह होनी
चाहिये कि पीछे छूटने वाले का रुक कर साथ करे और उन्हें साथ लेकर चले ना
कि उन पर रहम की रोटी बरसायें।
श्री राजीव गांधी ने कहा था सरकार रुपया खर्च करती है मगर आम जनता को
पंद्रह पैसे ही मिलते है !!बाकी पैसे कहाँ जाते हैं ?इसका उत्तर वो नहीं दे पाये थे।
ट्यूब में एक पंक्चर हो तो गाडी चलती नहीं है फिर 85 %पंक्चर अर्थ व्यवस्था
का कायाकल्प कैसे होगा ?अर्थव्यवस्था में इतने पंक्चर किसने हो जाने दिये ?
रुपया सरकार की तिजोरी से निकलते ही घिसना चालू हो जाता है। भ्रष्ट
नेता,भ्रष्ट उद्योगपति ,भ्रष्ट नौकरशाही और भ्रष्ट हो रही न्याय व्यवस्था और
इनके दलदल में फँसे हैं 80%भारतीय जो इसलिए ईमानदार हैं क्योंकि उनके
पास तो अर्थ है ही नहीं।
देश की जन कल्याणकारी योजनायें जनता के लिए तमाशा और उससे जुड़े
भ्रष्ट लोगों के लिए लॉटरी है। देश की नौकरशाही कागजों पर फूल बनाती है और
फाइलों पर चिपका देती है। जनता इसलिए खुश होती है कि ये कागज के फूल
मुरझाते नहीं हैं और बाकी चैनल इसलिए खुश है कि उन्हें असल में खुशबु आती
है।
हमारी वितरण व्यवस्था की सबसे बड़ी खामी यह है कि उसका recheck का
बटन अँधा ,बहरा और लकवाग्रस्त है। राशन का अनाज बाजार में बिक जाता
है या बड़ी मिलों में सप्लाई हो जाता है। अनाज सरंक्षण की व्यवस्था हर गरीब
के घर में है परन्तु उसको अनुपयोगी समझ लिया गया है। क्या कोई भी सरकार
रातों रात भंडारण और सरँक्षण व्यवस्था तैयार कर लेगी ?तो फिर उस अनाज
का सड़ना और बाजार के हवाले होना तय है।
BPL से निचे का बड़ा वर्ग जिसके पास ना गाँव है ,ना समाज ;वह तो फुटपाथ
पर जीता और मर जाता है या जंगलों में गुजर बसर कर जिंदगी घसीट रहा है ,
उसके जीवन में उजाला कैसे होगा क्योंकि सरकार के पास उसके लिए कोई
योजना है ही नहीं। यह वर्ग सरकार की वितरण व्यवस्था के दायरे में कैसे और
कब आयेगा ?
सरकार की सफलता का पैमाना हम बढ़ते स्टॉक मार्केट,बढ़ते अरबपति और
करोड़पति,बड़े उद्योग धंधों में देखते हैं मगर हम इस चकाचोंध में यह भूल जाते
हैं कि करोड़ों भारतीय बहुत पीछे छूटते जा रहे हैं। सरकार की कोशिश यह होनी
चाहिये कि पीछे छूटने वाले का रुक कर साथ करे और उन्हें साथ लेकर चले ना
कि उन पर रहम की रोटी बरसायें।
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