30 जून,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,मैं नहीं जानता कि
हिन्दुओं के लिए पूजनीय शंकराचार्यों का चुनाव किस प्रक्रिया के तहत किया
जाता है लेकिन मैं यह जरूर जानता हूँ कि वह प्रक्रिया दोषपूर्ण है। क्योंकि
अगर ऐसा नहीं होता तो एक दंभी,घमंडी और महामूर्ख द्वारिका पीठ का स्वामी
नहीं होता। आपने एकदम सही समझा है मैं स्वरूपानंद सरस्वती की ही बात कर रहा
हूँ जो न तो ज्ञानी हैं,न ही तत्त्वदर्शी,न तो ब्रह्मज्ञानी हैं और न ही
आत्मज्ञानी फिर भी शंकराचार्य हैं और उस शंकराचार्य के उत्तराधिकारी माने
जाते हैं जिसने कभी पूरी दुनिया से कहा कि ब्रह्मास्मि। तत् त्वमसि।। इन
श्रीमान् ने वैसे तो पहले भी जमकर मूर्खतापूर्ण बातें की हैं लेकिन पिछले
कुछ दिनों में तो इन्होंने हद ही कर दी है।
मित्रों,इन श्रीमान् का कहना है कि चूँकि साईं बाबा का जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ था इसलिए हिन्दुओं को उनकी पूजा नहीं करनी चाहिए। मैं नहीं जानता कि स्वरूपानंद ने कहाँ से इस तथ्य का पता लगाता लेकिन अगर यह सत्य भी है तो इसमें कोई संदेह नहीं कि साईं बाबा एक महामानव थे। हम उनको राम और कृष्ण की श्रेणी में तो नहीं रख सकते लेकिन कबीर और रामकृष्ण परमहंस जैसे संतों की श्रेणी में तो रख ही सकते हैं। हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण यह नहीं रहा है कि कोई जन्मना क्या था बल्कि महत्त्व इस बात का रहा है कि कोई कर्मणा क्या था। रावण तो जन्मना ब्राह्मण था लेकिन हम उसको नहीं पूजते। महान हिन्दू संन्यासी स्वामी विवेकानंद ने तो यहाँ तक कहा है कि अगर वे ईसा को सूली चढ़ाने के समय मौजूद होते तो उनके रक्त को अपने माथे पर लगाते और अपने रक्त से उनके चरण धोते तो क्या विवेकानंद पर माता काली नाराज हो गईँ? स्वामी स्वरूपानंद को कैसे पता चला कि राम उमा भारती से नाराज हैं? क्या राम ने स्वयं आकर उनको इस बात की जानकारी दी? क्या स्वरूपानंद अन्य लोगों को भी राम के दर्शन करवा सकते हैं?
मित्रों,हम हिन्दू शुरू से ही महामानवों के साथ-साथ पशु-पक्षी,पेड़-पौधों और धरती के कुछ भू-भागों,मिट्टी पत्थरों के पिंडों तक की पूजा करते आ रहे हैं फिर मानव तो रामकृष्ण परमहंस के अनुसार ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति है और साईं तो महामानव थे। हम साईं के शरीर की पूजा नहीं करते बल्कि उनकी त्यागपूर्ण जिंदगी और कृतियों को पूजते हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार अगर कोई अच्छे लोगों के प्रति श्रद्धा नहीं रखता और बुरे लोगों से नफरत नहीं करता तो वह मानव कहलाने के योग्य ही नहीं है। फिर कोई कैसे साईं के प्रति श्रद्धा नहीं रखे?
मित्रों,इस स्वरूपानंद ने तो गंगा पर भी एक धर्म विशेष का एकाधिकार बता दिया है। कितनी बड़ी मूर्खता है यह! क्या यह महामूर्खता नहीं है? क्या हवा,नदी और धरती पर भी किसी का एकाधिकार हो सकता है? मैं ऐसे कई मुसलमानों को जानता हूँ जिनके घर गंगा किनारे हैं और जो सालोंभर गंगा स्नान करते हैं तो क्या इससे गंगा हिन्दुओं के लिए पूजनीय नहीं रही? यह आदमी बार-बार शास्त्रों का उदाहरण देता है। ऐसे ही लोगों के लिए कबीर ने कभी कहा था कि
मैं कहता हूँ आँखन देखी,तू कहता कागद की लेखी,
तेरा मेरा मनुआ एक कैसे होई रे।
लेकिन लगता है कि इन श्रीमान् ने कबीर के इस दोहे को कभी पढ़ा ही नहीं है। अनुभव हमेशा ज्ञान से बेहतर होता है ये श्रीमान् यह भी नहीं जानते। श्रीमान् शास्त्रों में संतोषी माता और साईं बाबा को ढूंढ़ रहे हैं। मैं नहीं श्री रामकृष्ण परमहंस कहते हैं कि चूँकि सारे शास्त्रों में मनमाफिक हेराफेरी की गई है इसलिए वे झूठे हैं। उनके अनुसार ईश्वर गूंगे का गुड़ है इसलिए उसका वर्णन किया ही नहीं जा सकता। ईश्वर का वास तो अच्छे गुणों और कर्मों में हैं। कोई तो पढ़ाओ इस स्वरूपानंद को रामकृष्ण साहित्य।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
मित्रों,इन श्रीमान् का कहना है कि चूँकि साईं बाबा का जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ था इसलिए हिन्दुओं को उनकी पूजा नहीं करनी चाहिए। मैं नहीं जानता कि स्वरूपानंद ने कहाँ से इस तथ्य का पता लगाता लेकिन अगर यह सत्य भी है तो इसमें कोई संदेह नहीं कि साईं बाबा एक महामानव थे। हम उनको राम और कृष्ण की श्रेणी में तो नहीं रख सकते लेकिन कबीर और रामकृष्ण परमहंस जैसे संतों की श्रेणी में तो रख ही सकते हैं। हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण यह नहीं रहा है कि कोई जन्मना क्या था बल्कि महत्त्व इस बात का रहा है कि कोई कर्मणा क्या था। रावण तो जन्मना ब्राह्मण था लेकिन हम उसको नहीं पूजते। महान हिन्दू संन्यासी स्वामी विवेकानंद ने तो यहाँ तक कहा है कि अगर वे ईसा को सूली चढ़ाने के समय मौजूद होते तो उनके रक्त को अपने माथे पर लगाते और अपने रक्त से उनके चरण धोते तो क्या विवेकानंद पर माता काली नाराज हो गईँ? स्वामी स्वरूपानंद को कैसे पता चला कि राम उमा भारती से नाराज हैं? क्या राम ने स्वयं आकर उनको इस बात की जानकारी दी? क्या स्वरूपानंद अन्य लोगों को भी राम के दर्शन करवा सकते हैं?
मित्रों,हम हिन्दू शुरू से ही महामानवों के साथ-साथ पशु-पक्षी,पेड़-पौधों और धरती के कुछ भू-भागों,मिट्टी पत्थरों के पिंडों तक की पूजा करते आ रहे हैं फिर मानव तो रामकृष्ण परमहंस के अनुसार ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति है और साईं तो महामानव थे। हम साईं के शरीर की पूजा नहीं करते बल्कि उनकी त्यागपूर्ण जिंदगी और कृतियों को पूजते हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार अगर कोई अच्छे लोगों के प्रति श्रद्धा नहीं रखता और बुरे लोगों से नफरत नहीं करता तो वह मानव कहलाने के योग्य ही नहीं है। फिर कोई कैसे साईं के प्रति श्रद्धा नहीं रखे?
मित्रों,इस स्वरूपानंद ने तो गंगा पर भी एक धर्म विशेष का एकाधिकार बता दिया है। कितनी बड़ी मूर्खता है यह! क्या यह महामूर्खता नहीं है? क्या हवा,नदी और धरती पर भी किसी का एकाधिकार हो सकता है? मैं ऐसे कई मुसलमानों को जानता हूँ जिनके घर गंगा किनारे हैं और जो सालोंभर गंगा स्नान करते हैं तो क्या इससे गंगा हिन्दुओं के लिए पूजनीय नहीं रही? यह आदमी बार-बार शास्त्रों का उदाहरण देता है। ऐसे ही लोगों के लिए कबीर ने कभी कहा था कि
मैं कहता हूँ आँखन देखी,तू कहता कागद की लेखी,
तेरा मेरा मनुआ एक कैसे होई रे।
लेकिन लगता है कि इन श्रीमान् ने कबीर के इस दोहे को कभी पढ़ा ही नहीं है। अनुभव हमेशा ज्ञान से बेहतर होता है ये श्रीमान् यह भी नहीं जानते। श्रीमान् शास्त्रों में संतोषी माता और साईं बाबा को ढूंढ़ रहे हैं। मैं नहीं श्री रामकृष्ण परमहंस कहते हैं कि चूँकि सारे शास्त्रों में मनमाफिक हेराफेरी की गई है इसलिए वे झूठे हैं। उनके अनुसार ईश्वर गूंगे का गुड़ है इसलिए उसका वर्णन किया ही नहीं जा सकता। ईश्वर का वास तो अच्छे गुणों और कर्मों में हैं। कोई तो पढ़ाओ इस स्वरूपानंद को रामकृष्ण साहित्य।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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