-नेताओं को बयानबाजी, हवाई दौरो व बाबाओं को चुप्पी के लिये याद रखा जायेगा।
-सेना को फर्ज अदायगी के लिये लोग कभी नहीं भुला पायेंगे।

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साथ अपने फर्ज को निभाया उसे भी कभी नहीं भुलाया जा सकता। महत्वपूर्ण सवाल यह भी कि क्या इससे कोई सबक भी लिया जायेगा? प्रकृति को गुस्सा क्यों आया?
आपदा को तो नहीं रोका जाता लेकिन लोगों को बचाया जा सकता था। जाहिर है लापरवाही सरकारी तंत्र की भी रही है। लोगों ने भी केदारनाथ को पिकनिक केंद्र बना दिया। धर्म के नाम पर कम घूमने के लिये लोग ज्यादा जाते थे। कड़वा सवाल ही सही लेकिन बताये कि तीन साल का बच्चा क्या धार्मिक यात्रा पर जा रहा था। लोग इंटरव्यू में बता रहे थे कि हम वहां घूमने गए थे। धर्म के गढ़ में अधर्म की लीला, रासलीला क्या-क्या नहीं हुआ। 50 साल पहले केदारनाथ की तस्वीर देखिए। कितना शांत था। बस चंद बाबाओं की झोपड़ियां। बाद में विकास के पंख लग गए। अनगिनत लोगों की मौत के साथ ही उत्तराखंड के गढ़वाल इलाके का ढांचा ही गड़बड़ा गया। सभी स्तर बुरी तरह प्रभावित हैं। सैंकड़ों पुल, सड़कें सरकारी-गैर सरकारी इमारतें सबकुछ तबाह। तबाही के निशां अभी बाकी हैं। यह लोगों के दिल-ओ-दिमाग से कभी नहीं मिटेंगे। यूं भी कुछ जख्मों के मरहम ओर ऐसे दर्द की दवा नहीं हुआ करती।-----सेना को फर्ज, नेताओं को हवाई यात्रा व लड़ने ओर बाबाओं को चुप्पी के लिये हमेशा याद रखा जायेगा। ब्रांडेड अरबपति बाबाओं, उनके चेले-चपाटों, समाज-धर्म के ठेकेदारों की चुप्पी भी राज रही। दर्द के तूफान को लोगों ने झेला।
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