हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,इन दिनों पूरे बिहार में मैट्रिक की
परीक्षा चल रही है। जैसा कि आप जानते हैं कि परीक्षा का मतलब होता है पराये
की ईच्छा लेकिन बिहार ने इस साल सुशासन ने इसकी परिभाषा ही बदल दी है और
मैट्रिक की परीक्षा में इस शब्द का मतलब हो गया है स्वेच्छा। चाहे चुनावी
मौसम में वोट-बैंक के नाराज हो जाने का खतरा हो या फिर कुछ और इस साल बिहार
की मैट्रिक-परीक्षा में कदाचार की गंगा बह रही है।
मित्रों,राज्य के लगभग प्रत्येक केंद्र पर विद्यार्थियों के साथ 5 स्टार मेहमानों जैसा सलूक किया जा रहा है। भीतर में तो किताब खोलकर लिखने की आजादी है ही बाहर से उनके परिजनों को भी चिट-पुर्जे पहुँचाने की पूरी छूट दी जा रही है। अलबत्ता इस प्रक्रिया में होम गार्ड और बिहार पुलिस के जवानों को जरूर कुछ आमदनी हो जा रही है। एक बार फिर से प्रत्येक केंद्र पर परीक्षार्थियों से इस लाजवाब सुविधा के बदले में हजारों रुपए की सुविधा-शुल्क परीक्षा-केंद्र के शिक्षकों व प्राचार्यों ने वसूली है।
मित्रों,सवाल उठता है कि सुशासन की तुगलकी शिक्षा-नीति ने सरकारी स्कूलों में शिक्षा को समाप्त तो पहले ही कर दिया था अब उसने परीक्षा को भी मजाक बनाकर रख दिया है। प्रश्न उठता है कि इस माहौल में कोई विद्यार्थी पढ़ाई करे भी तो क्यों करे? जिन चंद विद्यार्थियों ने पढ़ाई की भी है वे भी मजबूरन किताबों की सहायता से परीक्षा दे रहे हैं क्योंकि उनको लगता है कि किताब में तो सही लिखा होगा ही याद्दाश्त का क्या भरोसा? मैं श्री नीतीश कुमार जी से पूछना चाहता हूँ कि क्या जरुरत है ऐसी परीक्षा लेने की? सीधे क्यों नहीं विद्यार्थियों को डिग्री थमा देते? ऐसा करने से तो वोट-बैंक और भी ज्यादा मजबूत होगा। क्यों परीक्षार्थियों को घर से 30-40 किलोमीटर दूर आकर परीक्षा देने को मजबूर किया? उनके खुद के विद्यालय में ही क्यों नहीं ले ली गई परीक्षा? (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
मित्रों,राज्य के लगभग प्रत्येक केंद्र पर विद्यार्थियों के साथ 5 स्टार मेहमानों जैसा सलूक किया जा रहा है। भीतर में तो किताब खोलकर लिखने की आजादी है ही बाहर से उनके परिजनों को भी चिट-पुर्जे पहुँचाने की पूरी छूट दी जा रही है। अलबत्ता इस प्रक्रिया में होम गार्ड और बिहार पुलिस के जवानों को जरूर कुछ आमदनी हो जा रही है। एक बार फिर से प्रत्येक केंद्र पर परीक्षार्थियों से इस लाजवाब सुविधा के बदले में हजारों रुपए की सुविधा-शुल्क परीक्षा-केंद्र के शिक्षकों व प्राचार्यों ने वसूली है।
मित्रों,सवाल उठता है कि सुशासन की तुगलकी शिक्षा-नीति ने सरकारी स्कूलों में शिक्षा को समाप्त तो पहले ही कर दिया था अब उसने परीक्षा को भी मजाक बनाकर रख दिया है। प्रश्न उठता है कि इस माहौल में कोई विद्यार्थी पढ़ाई करे भी तो क्यों करे? जिन चंद विद्यार्थियों ने पढ़ाई की भी है वे भी मजबूरन किताबों की सहायता से परीक्षा दे रहे हैं क्योंकि उनको लगता है कि किताब में तो सही लिखा होगा ही याद्दाश्त का क्या भरोसा? मैं श्री नीतीश कुमार जी से पूछना चाहता हूँ कि क्या जरुरत है ऐसी परीक्षा लेने की? सीधे क्यों नहीं विद्यार्थियों को डिग्री थमा देते? ऐसा करने से तो वोट-बैंक और भी ज्यादा मजबूत होगा। क्यों परीक्षार्थियों को घर से 30-40 किलोमीटर दूर आकर परीक्षा देने को मजबूर किया? उनके खुद के विद्यालय में ही क्यों नहीं ले ली गई परीक्षा? (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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