25-03-2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,किसी शायर ने क्या खूब कहा कि "ले आई जिन्दगी हमें कहाँ पर कहाँ से, ये तो वही जगह है गुजरे थे हम जहाँ से।" शायर ने कहा तो था यह खुद के बारे में लेकिन दुर्भाग्यवश यह शेर हमारे देश भारत की वर्तमान स्थिति पर भी खूब खरा उतर रहा है। हमारा देश एक बार फिर से सन् 1962 में पहुँच गया। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने देश की सुरक्षा को जानबूझकर खतरे में डाला था। पहले 1948 में पाकिस्तान और बाद में 1962 में चीन से भारत को मुँह की खानी पड़ी। हाल ही में युद्ध के समय नई दिल्ली मे उस वक्त विदेशी पत्रकार के रूप में तैनात मैक्सवैल द्वारा प्रकाशित की गई पुस्तक "इंडियाज चाइना वार" के अनुसार नेहरू जानते थे कि चीन भारत पर हमला करने वाला है लेकिन उन्होंने जानते हुए भी इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। नतीजा यह हुआ कि भारत के सैनिकों को बिना गोली-बारूद के ही जंग के मैदान में उतार दिया गया। खुद मेरे मामा स्व. अरविन्द कुमार सिंह कई महीनों तक बंदूक लिए अरूणाचल के जंगलों में छिपे रहे और पेड़ के पत्ते खाकर जान बचाई।
मित्रों,एक बार फिर से भारतीय सेना के लिए गोला-बारुद की भारी कमी हो गई है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार इस समय हमारी सेना के पास इतना भी गोला-बारुद शेष नहीं बचा है कि हम 20 दिनों तक लड़ सकें। उसी रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत सरकार ने इस दिशा में जो कदम उठाए हैं उसके अनुसार अपेक्षित परिणाम आने में कम-से-कम 5 साल लगेंगे। भगवान न करे इस बीच अगर चीन और पाकिस्तान ने संयुक्त मोर्चाबंदी करके एकसाथ भारत पर हमला कर दिया तो देश की रक्षा कैसे हो पाएगी? क्या देश की सुरक्षा को खतरे में डालना हमारी वर्तमान केंद्र सरकार का आपराधिक कदम नहीं है और इस देशद्रोह के लिए इसमें शामिल सभी संबद्ध मंत्रियों को सजा नहीं दी जानी चाहिए? अगर कोई सैनिक या सैन्य अधिकारी युद्ध के दौरान गलतियाँ करता है तो उसका कोर्ट मार्शल कर दिया जाता है तो क्या उन लोगों को जिन्होंने जानबूझकर देश की सेना को कमजोर किया है को सजा नहीं मिलनी चाहिए?
मित्रों,मैं पहले भी इस केंद्र सरकार पर अपने आलेखों में आरोप लगा चुका हूँ कि इसने जानबूझकर न केवल देश की अर्थव्यवस्था को बल्कि देश की सुरक्षा को भी कमजोर किया है। यह वैसी ही बात है जैसे कि मेड़ खेत को खाने लगे। मैंने यह आरोप भी लगाए थे कि केंद्र सरकार में शामिल लोग एक साथ चीन,अमेरिका और पाकिस्तान के एजेंट हैं। वास्तव में देश पर इस समय ऐसे लोगों का शासन है जो चाहते हैं कि देश टूट जाए,समाप्त हो जाए। नहीं तो क्या कारण है कि हमारे समुद्रों में खड़े-खड़े ही एक-के-बाद-एक युद्धपोत और पनडुब्बियाँ डूबते जा रहे हैं? मैं नहीं मानता कि रक्षा मंत्री एके एंटनी ईमानदार व्यक्ति हैं। अगर ऐसा है भी तो वे मनमोहन सिंह की तरह के ईमानदार हैं जिनकी नाक के नीचे बेईमान जमकर लूट मचाए हुए हैं और श्रीमान इस्तीफा देने तक की जहमत नहीं उठा रहे हैं जबकि भारत के नौसेना अध्यक्ष कई हफ्ते पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं।
मित्रों,जैसा कि मैंने आलेख की शुरुआत में ही कहा था कि हम फिर से 1962 में पहुँच गए हैं। ऐसा हुआ कैसे? आज हम शत-प्रतिशत साक्षरता के काफी निकट पहुँच चुके हैं फिर हमने ऐसे अयोग्य और देशद्रोहियों के हाथों में देश को सौंप कैसे दिया? तो क्या सिर्फ पढ़ा-लिखा होने से ही कोई कौम समझदार नहीं हो जाती? क्या भारत की जनता आज भी उतनी ही मूर्ख नहीं है जितनी कि वह 1962 में थी? पढ़ी-लिखी तो दिल्ली की जनता भी थी फिर लंपट-देशद्रोही-अराजकतावादी-सीआईए एजेंटों के हाथों में पिछले साल दिल्ली की सत्ता कैसे सौंप दी? क्या एक देशद्रोही पार्टी कांग्रेस को हटाकर दूसरी देशद्रोही पार्टी के हाथों देश को सौंप देना बुद्धिमानी कही जाएगी? भूलिए मत कि तब भी एक मेनन भारत-चीन दोस्ती के तराने गा रहा था और अब भी एक मेनन वैसे ही तराने गा रहा है। मैं नहीं जानता कि इस मेनन और इस मेनन में कोई सीधा रक्त संबंध है या नहीं लेकिन मैं इतना जरूर जानता हूँ कि उस नेहरू और इस राहुल गांधी के बीच जरूर सीधा रक्त संबंध है। मेनका गांधी ने एकदम सही सवाल उठाया है कि सोनिया अपने मायके से तो कुछ भी लेकर नहीं आई थी फिर वो कैसे दुनिया की सबसे अमीर छठी महिला बन गई? क्या देश की बर्बादी और सोनिया की समृद्धि के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है?
मित्रों,जागिए नहीं तो फिर कभी चैन से सो नहीं पाईएगा। संकट अब सिर पर आ गया है। देश की सुरक्षा खतरे में है,देश खतरे में है। देश के दुश्मनों को पहचानिए और आनेवाले चुनावों में सिर्फ और सिर्फ एनडीए को वोट दीजिए क्योंकि आपने दिल्ली के विधानसभा चुनावों में भी देखा है कि एनडीए गठबंधन को वोट न देने का सीधा मतलब होता है कांग्रेस को वोट देना। क्योंकि चुनावों के बाद बाँकी सारे दल फिर से एकसाथ हो जाते हैं देश को लूटने के लिए। क्योंकि बाँकी किसी भी दल को कोई मतलब नहीं है कि देश बचेगा या देश का नामोनिशान मिट जाएगा। भूल जाईए कि आपके क्षेत्र से एनडीए का उम्मीदवार कौन है क्योंकि अब प्रश्न हमारे आपके लोकसभा क्षेत्र भर के विकास का नहीं है बल्कि अब प्रश्न-चिन्ह लग गया है भारत और भारत के वजूद पर,अस्तित्व पर। (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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