मूल समस्याओं से देश का ध्यान हटाने का पाप क्यों हो रहा है
पहला दृश्य -
एक पार्टी ने घोटालों और गपल्लों से भरपूर सरकार चलाई ,देश की तिजोरी को
लूटने दिया ;सरकार के मुख्य वजीर अपने कटे हाथ जनता को दिखाते रहे और
कहते रहे -देखों मेरे तो हाथ ही कटे हुए हैं फिर मैं तो ईमानदार ही कहलाऊंगा
ना !मैं कैसे कोई घोटाला कर सकता हूँ ?जिसने किया है घोटाला उसे कुर्सी से
हटा दिया (पैसे खा गया तो खा गया ,पैसे तो जनता से कर के रूप में और ऐंठ
लिए जायेंगे ) क़ुछ रूपये पैसे बहु -बेटी के काम आ गए तो यह नारी सम्मान
की बात है,क्या दामाद से हर पैसे का हिसाब माँगूगा ,ना भाई !रिश्ते की बात
है और अहसान का बदला भी चुकता करना था ,इसलिए हजार बार चुप्पी।
मगर चुनाव और चुप्पी एक साथ नहीं चल सकती थी ,जनता हर संदेह भरे
सवाल का सीधा सपाट उत्तर चाहती है और सही उत्तर सत्ता से बाहर का रास्ता
तय कर सकता है इसलिए गलत सवाल फेंको या साइड पार्टियों से फिंकवाओ
ताकि जनता के सवाल पेट में ही रह जाये और बे बात पर मोहर लगा दे !!!
दूसरा दृश्य -
जनता थोडा सा भी भरोसा करे और सत्ता के करीब पहुँचा दे तो सीट पर
विरोधी लोगों से सहायता लेकर बैठ जाओ और इस सफलता को जनता
की जीत कह कर खुद मौज मनाओ,बंगले ,गाडी ,भत्ते ,सुरक्षा,वेतन पक्का
करो और पतली गली से बड़े आराम से निकल लो क्योंकि जो काम करता
ही नहीं है उस पर अंगुली कैसे उठ सकती है। जिसने काम किया है उस पर
अंगुली आडी -तिरछी कैसे भी उठा दो। जनता ने बवंडर बनाया तो बल्ले -
बल्ले और जनता ने आपत्ति उठाई तो हँगामा कर दो। जो बड़ा है उस पर
पत्थर मारो क्योंकि कहीं ना कहीं तो लगेगा ही। सही लगा तो मजे और नहीं
लगा तो भी मजे। लोग हैं ,सड़क पर डपली बजाने वाले के इर्दगिर्द भी घेरा
डाल देते हैं तो दुखती नस पर हाथ सहलाने से तो साथ खड़े हो ही जायेंगे।
देश में अराजकता फैले तो उनको क्या वो तो हाथ उठाकर भारत माता की
फिर भी दिखावटी जय गला फाड़ कर बोल ही देंगे। जनता इनसे सवाल
भी क्या करे ये तो कुछ काम किये ही नहीं हैं ना।
तीसरा दृश्य -
तुष्टिकरण को हवा देना और पार्टियाँ एक -दौ नहीं यानि एक -दौ को छोड़ कर
सब। गजब की निर्लज्जता है इन नेताओँ में। छड़े चौक 100 करोड़ लोगों को
सांप्रदायिक कहते फिरते हैं जैसे इनको सांप्रदायिक वोटों की जरुरत ही नहीं है।
तुष्टिकरण में खलल पड़ने पर धाड़ मार मार के आसुँ बहाते हैं। तुष्टिकरण को
हथियार बनाकर देश के दुश्मनों को नायक ठहराते हैं। बहुत सयानेपन से मुर्ख
बनाकर सत्ता की गोटी साधते रहे हैं। इन सबका एक ही काम और धर्म है कैसे
भी करो ,तुष्टिकरण को जिन्दा रखो ताकि वोट थोकबंद मिलते रहे।
चौथा दृश्य
एक पार्टी हर मंच से चाहे वह कॉलेज हो ,उद्योग मेला हो ,महिला मंडल हो ,
गाँव की चौपाल हो,शहर की बस्ती हो ,सबसे विकास की बात करती है।
किसानो के लिए बिजली और खाद की कम दाम पर उपलब्धि ,युवाओं के
लिए रोजगार के अवसर ,उद्योगो के लिए संतुलित परिस्थिति का निर्माण ,
नारी की सुरक्षा और आत्म निर्भरता की बात,सैनिकों के गौरव की बात,
घुसपैठियों पर लगाम की बात, कानून के सरली करण की बात ,काले धन
को वापिस लाने की बात ,भ्रष्ट व्यवस्था पर प्रहार की बात करती है मगर
बाकी सभी पार्टियाँ इस पार्टी को मुद्दों से भटका कर तथ्यहीन बातों की ओर
मोड़ने का मिलकर प्रयास कर रही है ,क्यों ?देश कि समस्याओं से हटकर
बात करने वाले सियासी दल क्या भारतीयों को बुद्धिहीन समझते हैं ?जनता
जानना चाहती है कि क्या तुष्टिकरण से देश आगे बढ़ जायेगा ?क्या साँप की
लकीरों को पीटने से बात बन जायेगी ?क्या सबको भ्रष्ट ठहरा देने से विकास
हो जायेगा ?
भारत चाहता है सार्थक बहस जिसके मंथन से देश को स्फूर्ति मिले ,भारत
चाहता है समस्याओं का हल कौन पार्टी किस तरीके से करना चाहती है ,
भारत चाहता है अपना खोया हुआ आत्म सम्मान जो किस तरीके से कौन
दिला सकता है ,भारत चाहता है उसके कर के पैसों का हिसाब ,भारत
चाहता है रोजगार सृजन के उपाय ,भारत चाहता है नारी का वास्तविक
सम्मान जो किस तरह के सुधार से ठोस रूप से मिलेगा ,भारत चाहता है
निर्धनता से लड़ने का तरीका … मगर सत्ता के लोभी इन पर बहस नहीं
होने देते और कोई पार्टी ये सवाल उछालती है तो बाकी मिलकर उसका
मुँह बंद करने में लग जाते हैं और उन्हें धर्म निरपेक्षता पर खतरा नजर
आता है और उसकी दुहाई में समय बर्बाद कर देती है जो कि गलत है।
पहला दृश्य -
एक पार्टी ने घोटालों और गपल्लों से भरपूर सरकार चलाई ,देश की तिजोरी को
लूटने दिया ;सरकार के मुख्य वजीर अपने कटे हाथ जनता को दिखाते रहे और
कहते रहे -देखों मेरे तो हाथ ही कटे हुए हैं फिर मैं तो ईमानदार ही कहलाऊंगा
ना !मैं कैसे कोई घोटाला कर सकता हूँ ?जिसने किया है घोटाला उसे कुर्सी से
हटा दिया (पैसे खा गया तो खा गया ,पैसे तो जनता से कर के रूप में और ऐंठ
लिए जायेंगे ) क़ुछ रूपये पैसे बहु -बेटी के काम आ गए तो यह नारी सम्मान
की बात है,क्या दामाद से हर पैसे का हिसाब माँगूगा ,ना भाई !रिश्ते की बात
है और अहसान का बदला भी चुकता करना था ,इसलिए हजार बार चुप्पी।
मगर चुनाव और चुप्पी एक साथ नहीं चल सकती थी ,जनता हर संदेह भरे
सवाल का सीधा सपाट उत्तर चाहती है और सही उत्तर सत्ता से बाहर का रास्ता
तय कर सकता है इसलिए गलत सवाल फेंको या साइड पार्टियों से फिंकवाओ
ताकि जनता के सवाल पेट में ही रह जाये और बे बात पर मोहर लगा दे !!!
दूसरा दृश्य -
जनता थोडा सा भी भरोसा करे और सत्ता के करीब पहुँचा दे तो सीट पर
विरोधी लोगों से सहायता लेकर बैठ जाओ और इस सफलता को जनता
की जीत कह कर खुद मौज मनाओ,बंगले ,गाडी ,भत्ते ,सुरक्षा,वेतन पक्का
करो और पतली गली से बड़े आराम से निकल लो क्योंकि जो काम करता
ही नहीं है उस पर अंगुली कैसे उठ सकती है। जिसने काम किया है उस पर
अंगुली आडी -तिरछी कैसे भी उठा दो। जनता ने बवंडर बनाया तो बल्ले -
बल्ले और जनता ने आपत्ति उठाई तो हँगामा कर दो। जो बड़ा है उस पर
पत्थर मारो क्योंकि कहीं ना कहीं तो लगेगा ही। सही लगा तो मजे और नहीं
लगा तो भी मजे। लोग हैं ,सड़क पर डपली बजाने वाले के इर्दगिर्द भी घेरा
डाल देते हैं तो दुखती नस पर हाथ सहलाने से तो साथ खड़े हो ही जायेंगे।
देश में अराजकता फैले तो उनको क्या वो तो हाथ उठाकर भारत माता की
फिर भी दिखावटी जय गला फाड़ कर बोल ही देंगे। जनता इनसे सवाल
भी क्या करे ये तो कुछ काम किये ही नहीं हैं ना।
तीसरा दृश्य -
तुष्टिकरण को हवा देना और पार्टियाँ एक -दौ नहीं यानि एक -दौ को छोड़ कर
सब। गजब की निर्लज्जता है इन नेताओँ में। छड़े चौक 100 करोड़ लोगों को
सांप्रदायिक कहते फिरते हैं जैसे इनको सांप्रदायिक वोटों की जरुरत ही नहीं है।
तुष्टिकरण में खलल पड़ने पर धाड़ मार मार के आसुँ बहाते हैं। तुष्टिकरण को
हथियार बनाकर देश के दुश्मनों को नायक ठहराते हैं। बहुत सयानेपन से मुर्ख
बनाकर सत्ता की गोटी साधते रहे हैं। इन सबका एक ही काम और धर्म है कैसे
भी करो ,तुष्टिकरण को जिन्दा रखो ताकि वोट थोकबंद मिलते रहे।
चौथा दृश्य
एक पार्टी हर मंच से चाहे वह कॉलेज हो ,उद्योग मेला हो ,महिला मंडल हो ,
गाँव की चौपाल हो,शहर की बस्ती हो ,सबसे विकास की बात करती है।
किसानो के लिए बिजली और खाद की कम दाम पर उपलब्धि ,युवाओं के
लिए रोजगार के अवसर ,उद्योगो के लिए संतुलित परिस्थिति का निर्माण ,
नारी की सुरक्षा और आत्म निर्भरता की बात,सैनिकों के गौरव की बात,
घुसपैठियों पर लगाम की बात, कानून के सरली करण की बात ,काले धन
को वापिस लाने की बात ,भ्रष्ट व्यवस्था पर प्रहार की बात करती है मगर
बाकी सभी पार्टियाँ इस पार्टी को मुद्दों से भटका कर तथ्यहीन बातों की ओर
मोड़ने का मिलकर प्रयास कर रही है ,क्यों ?देश कि समस्याओं से हटकर
बात करने वाले सियासी दल क्या भारतीयों को बुद्धिहीन समझते हैं ?जनता
जानना चाहती है कि क्या तुष्टिकरण से देश आगे बढ़ जायेगा ?क्या साँप की
लकीरों को पीटने से बात बन जायेगी ?क्या सबको भ्रष्ट ठहरा देने से विकास
हो जायेगा ?
भारत चाहता है सार्थक बहस जिसके मंथन से देश को स्फूर्ति मिले ,भारत
चाहता है समस्याओं का हल कौन पार्टी किस तरीके से करना चाहती है ,
भारत चाहता है अपना खोया हुआ आत्म सम्मान जो किस तरीके से कौन
दिला सकता है ,भारत चाहता है उसके कर के पैसों का हिसाब ,भारत
चाहता है रोजगार सृजन के उपाय ,भारत चाहता है नारी का वास्तविक
सम्मान जो किस तरह के सुधार से ठोस रूप से मिलेगा ,भारत चाहता है
निर्धनता से लड़ने का तरीका … मगर सत्ता के लोभी इन पर बहस नहीं
होने देते और कोई पार्टी ये सवाल उछालती है तो बाकी मिलकर उसका
मुँह बंद करने में लग जाते हैं और उन्हें धर्म निरपेक्षता पर खतरा नजर
आता है और उसकी दुहाई में समय बर्बाद कर देती है जो कि गलत है।
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