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3.1.16

2016 : बंगाल किसका?

-प्रियंक द्विवेदी-
नया साल एक तरफ जहां हम सबके लिए नई खुशियां लेकर आता है तो वहीं दूसरी तरफ राजनेताओं के लिए चिंता। राजनीति में नया साल मतलब नया चुनाव। 2016 अपने साथ इस बार पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव लेकर आया है। इस साल बंगाल की 294 विधानसभा सीट पर चुनाव होने हैं। हालांकि चुनाव आयोग ने अभी तक चुनावों की तारीख तय नहीं की है लेकिन साल के मध्य में आते आते तक बंगाल में नई विधानसभा का गठन हो सकता है। आजादी के करीब तीन दशकों तक बंगाल की राजनीति अस्थिर रही है। उसके बाद 34 सालों तक सत्ता पर कायम रहने वाली कम्युनिस्ट पार्टी को ममता बैनर्जी ने 2011 के विधानसभा चुनावों में उखाड़ फेंका था।


अगर बंगाल का आजादी के बाद का इतिहास देखा जाए तो बंगाल लंबे समय तक अस्थिरता से गुजरता रहा। आजादी के बाद जब भारत का विभाजन हुआ तो बंगाल का पूर्वी हिस्सा पाकिस्तान के पास चला गया। इस दौरान बंगाल को शरणार्थियों के संकट से गुजरना पड़ा। 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध के बाद जब पूर्वी पाकिस्तान जो बंगाल का हिस्सा था वो अलग हो गया और बांग्लादेश का गठन हुआ। उस दौरान भी बंगाल को लाखों लोगों को शरण देनी पड़ी। बंगाल हमेशा से हिंसक नक्सलवादी आंदोलन, बिजली के गंभीर संकट जैसी समस्याओं से जूझता रहा। जिस कारण राज्य का आर्थिक और राजनैतिक विकास थम सा गया। बंगाल का राजनैतिक इतिहास देखा जाए तो राज्य में 1947-1977 तक कांग्रेस ने राज किया। इस बीच राजनैतिक अस्थिरता को देखते हुए तीन बार राष्ट्रपति शासन भी लगाना पड़ा। जून 1977 में जब आपातकाल के बाद परिवर्तन की लहर चली तो राज्य में भी सत्ता परिवर्तन हुआ और 1977-2011 तक कम्युनिस्ट पार्टी ने राज्य में राज किया। इस बीच कांग्रेस से अलग होकर ममता बैनर्जी ने अपनी नई पार्टी तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की और राज्य में वाम दलों को कड़ी चुनौती दी। इसका परिणाम यह हुआ कि राज्य में ममता बैनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने 191 सीटों के साथ सरकार बनाई।  पिछले 34 सालों से चली आ रही वामदलों की सरकार को उखाड़ फेंकने के बाद ममता का कद राज्य में बंगाल टाइगर के समान हो गया था लेकिन अब ममता की हालत भी पहले से कुछ कमजोर होती दिख रही है। इस कारण पिछले महिने आमिर खान द्वारा दिए गए असहिष्णुता वाले बयान का ममता बैनर्जी ने खुले मंच से समर्थन कर मुस्लिम वोटों को अपनी तरफ आकर्षित करने की कोशिश की थी। राज्य में करीब ढाई करोड़ से ज्यादा की आबादी मुस्लिमों की है। और राज्य के वोटों में इनकी हिस्सेदारी 29 फिसदी है। राज्य की करीब 70 ऐसी विधानसभा सीट है जहाँ सिर्फ मुस्लिम वोट की बदौलत ही जीत हासिल की जा सकती है। इतना ही नहीं राज्य की 294 सीट में से 35 सीट ऐसी है जहाँ मुस्लिम वोटों की निर्णायक भूमिका होती है। इसका मतलब राज्य में मुस्लिम आबादी एक बड़ा वोट बैंक है और इन्हें आकर्षित करना हर पार्टी चाहेगी।

राज्य में मुस्लिमों का इतनीबड़ी आबादी होना भाजपा के लिए कड़ी चुनौती है। क्योंकि हालिया घटनाओं ने भाजपा को सांप्रदायिक पार्टी बना दिया है। और जब राज्य में चुनावी समर शुरू होगा तो विपक्षी दल भाजपा पर निशाने साधकर उसे सांप्रदायिक पार्टी घोषित करने की पुरजोर कोशिश करेगी। और इसका खामियाजा भाजपा को दिल्ली और बिहार की तरह ही भुगतना पड़ सकता है। बंगाल में बीजेपी की राह बिहार की तरह ही मुश्किल है। बाजपा को पिछले चुनावों से सीख लेकर कुछ कदम उठाने पड़ेंगे जैसे राज्य में राष्ट्रीय नेताओं के बजाए स्थानीय नेताओं पर ज्यादा भरोसा किया जाए। अगर यह चुनाव भी प्रधानमंत्री मोदी के दम पर लड़ा गया और  सकारात्मक परिणाम नहीं आए तो इससे प्रधानमंत्री की छवि कमजोर होती जाएगी जिससे आने वाले समय में होने वाले असम, केरल और उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव और 2019 के आम चुनावों के लिए घातक साबित हो सकता है।

बंगाल में कांग्रेस आपातकाल के बाद से हाशिए पर है और पिछले दो सालों से कांग्रेस की हालत क्षेत्रीय स्तर पर भी कमजोर होती जा रही है। और हो सकता है कि बंगाल में कांग्रेस बिहार की तरह ही वाम दलों के साथ गठबंधन करसकती है जिसका सीधा सीधा नुकसान ममता बैनर्जी को हो सकता है क्योंकि आजादी के बाद से बीजेपी बंगाल में कभी भी सत्ता पर काबिज नहीं हो पाई है। इसलिए बीजेपी को इससे यदि नुकसान नहीं होगा तो फायदा भी नहीं होगा। ममता बैनर्जी एनडीए के साथ पहले केंद्र की सरकार में साथ निभा चुकी हैं तो हो सकता है कि इस बार के चुनाव में बीजेपी औप तृणमूल कांग्रेस एकसाथ हो जाए और मिलकर चुनाव लड़े। इससे दोनों पार्टीयों को फायदा पहुंचेगा।

बीजेपी हाल ही में हुए बांग्लादेश के साथ सीमा समझौते से वोट बटोरने की कोशिश कर सकती है और हो सकता है वो कापी हद तक कामयाब भी हो जाए। रही बात मुस्लिम वोटों की तो उसका ध्रुवीकरण तो ममता बैनर्जी ने पहले ही कर रखा है और आगे भी करने की कोशिश कर सकती है। हालांकि बंगाल में बीजेपी का वोट प्रतिशत पिछले आम चुनावों में काफी बढा है। 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में बीजेपी का वोट प्रतिशत 4 फिसदी से बढकर 17 फिसदी हो गया था जबकि तृणमूल कांग्रेस 39 प्रतिशत वोट शेयर के साथ सबसे ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब हुई थी। खैर लोकसभा चुनाव के बाद से अबतक देश की राजनीति काफी हद तक बदल चुकी है और उस समय बीजेपी का जो दौर था वो अब उस तरह नहीं रहा।

कुल मिलाकर बंगाल के चुनाव भी उसी तरह रूचिकर होने वाले हैं जिस तरह बिहार चुनाव था। आने वाले समय में यदि राज्य में कोई भी गठबंधन बनता है तो उससे हमें चकित होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि राजनीति में कुछ भी स्थाई नहीं रहता। राजनीति में दोस्त कब दुश्मन बन जाएं और दुश्मन कब दोस्त जाएं। इस बात का अंदाजा लगाना उतना ही मुश्किल है जितना कि अच्छे दिनों का इंतजार करना।    

प्रियंक द्विवेदी
भोपाल
8516851837

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