विवेक दत्त मथुरिया
चलो बाबा बना जाए । बाबा मतलब साधु । भेष धारण करते ही व्यक्तित्व में दिव्यता आ जाती है। फिर मुंह, मुंह नहीं रहता श्रीमुख हो जाता है। बातें प्रवचन, भोजन प्रसाद, पैर चरण और क्रिया-कलाप लीला हो जाते हैं। सब कुछ बदल जाता है। लाभ की अपार संभावनाओं का द्वार है। जिन लोगों को वाकई अच्छे दिनों से मुलाकात करनी है, वह बाबा बनने पर सहज और सुलभ है। राजनीति सहित बाकी धंधों में तो जोखिम उठाकर इन्वेस्टमेंट करना पड़ता है। यह इन्वेस्टमेंट फ्री जोन है।
राजनीति में दाल न गले तो साधु यानी बाबा होने के लाभ ही लाभ हैं। पर शर्त एक ही आपका दिमाग शानदार और जानदार होना चाहिए। शीघ्र सफलता के लिए कमीशन पर कुछ प्रचारक रख लो । खुद के साथ साथ दो चार निखट्टूओं को भी रोजगार मिल जाएगा। बस वे जनता में अति श्रद्धा का डेमो दे सके ताकि लोग बाबा की कृपा पाने को व्याकुल हो उठें। फिर देखो प्रचार का चमत्कार। सब भेष की महिमा है। राजनीति में खादी के भेष का चमत्कार किसी से छिपा नहीं है। बाबा और नेता वही सफल है, जो टोपी पहनाने की कला में महारत रखता हो। एक बेहतरीन सेल्समैन के गुण होने चाहिए यानी अंधों को चश्मा और गंजों को कंघी चेप दे। बाबा बनते ही बेरोजगारी समाप्त हो जाती है। जो लोग रोजगार पाने में असफल रहे आज बाबा बनकर मौज काट रहे हैं। देश का कोई तीर्थ देखो बाबाओ की महिमा और चमत्कार देखने और सुनने को मिल जाएगा। बिना किसी निवेश का स्वरोजगार है। अपन भी यही सोच रहे हैं, क्यों न बाबा बन जाएं और पत्रकार बाबा के नाम से थूनी जमाई जाए। और बेरोजगारी काट रहे कुछ पत्रकारों को रोजगार मुहैया तो होगा । फिर बड़े - बड़े संपादकों के कंठी बाधी जाए। जब मीडिया में अनुयाई होंगे फिर किस की मजाल पत्रकार बाबा पर अंगुली उठाए। धर्म और आध्यात्मिक जगत में पत्रकारों का अपना एक महंत तो होगा , आश्रम होगा, रास- महारास ओर छप्पन भोग, जो लाइजनिंग का धंधा पत्रकारिता में नहीं हो सका, वो बाबा बनने से और आसान हो जाएगा और बाबा भेष में कोई दीन- ईमान पर कोई अंगुली भी नहीं उठाएगा। क्यों कोई बाबा न बने आखिर धंधा बिना निवेश का जो है। बाबाओ की मौज देखते ही बनती है। धार्मिक सेलेब्रिटी आजकल सब पर भारी पड़ रहे हैं। कभी अपने मंच पर भी कोई न कोई शिल्पा शेट्टी एक दिन आएगी। बाबा भेष का सबसे बड़ा फायदा ये है कि आप अतीत के पापों से पूर्णतः मुक्त हो जाते हैं। बस चमत्कार को नमस्कार है । चलो सब जोर से बोलो मीडिया वाले बाबा की जय।
इस व्यंग्य के लेखक विवेक दत्त मथुरिया मथुरा के युवा और प्रतिभाशाली पत्रकार हैं.
29.1.16
चलो बाबा बना जाए
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