कुछ दिन पहले मराठी के महान कवि मंगेश पाडगावंकर का निधन हुआ है. मैं उनकी रचनाओं से बहुत प्रभावित रहा हूँ. दुष्यंत और पाश की तरह उनकी रचनाएं सीधा प्रहार करती हैं. उनकी दो कविताओं के सम्पादित अंश.
-अशोक अनुराग, वरिष्ठ उद्घोषणक, आकाशवाणी
मंगेश पाडगावंकर की ये कविता 27 /10 /1974 की है, "हाथ उगेंगे" कविता के सम्पादित अंश यहाँ हैं..
हाथ उगेंगे
कैसे ? पता नहीं
मगर उगेंगे
टूटे हुए इंसानों
की पस्त हुई कतारों में
भूख से बिलबिलाते हुए बच्चों के साथ
भूख से तड़पती माँ डूब मरी थी
उस कुँए में
कूड़े के कनस्तरों में
सड़ी-बुसी रोटी बीननेवाले
सूखे के शिकार बच्चों में
अकाल में लूटी गई
हताश आबरू में
हाथ उगेंगे
कैसे ? पता नहीं
मगर उगेंगे
हाथ उगेंगे
उस क्षण काला कलूटा अँधेरा होगा
उन्मत्त राजमार्ग
सोये हुए होंगे
और यकायक
हाथ उगेंगे
हाथ उगेंगे
अनगिन मशाले बनकर
गिनना नामुमकिन होगा
इतने हाथ उगेंगे
मंगेश पाडगावकर के कविता संकलन 'सलाम' की कविता 'सलाम' के कुछ अंश यहाँ लिख रहा हूँ.. सलाम किताब साहित्य अकादेमी द्वारा 1990 में पहली बार प्रकाशित हुई थी..
सलाम
सबकू सलाम
जिसके हाथ में डंडा
उसकू सलाम
लात पड़ने के डर से
बायाँ हाथ चूतड़ पे रखके
दायें हाथ से सलाम........
अगर कहो कि ताक़त-दौलत के भडुओं का देश
तो सिर तोड़ देंगे
अगर कहो कि ओछो-लाचारों का देश
तो सड़क पर रगेदेंगे
अगर कहो कि बिकनेवालों का देश
तो राह रोकेंगे
अगर कहूँ बुरा-भला देवता-धरम-नेता कू लेकर
तो नाके पर पकड़ेंगे ठोकेंगे
अगर कहूँ शोषण करनेवालों का देश
तो नौकरी से निकाल देंगे
इस वास्ते सबसे पैले मेरी नपुंसकता कू सलाम.......
सलाम सबकू सलाम
भाइओं और भैनो सबकू सलाम
- मंगेश पडगांवकर
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