जब हम बचपन में गांव जाते थे तो गांव बड़ा खुशहाल नजर आता था | चारों तरफ हरियाली, चिड़ियों की चह-चाहट, धार ( खुली जगह ) के खेतों हवा के शोर से सनसनाना रही होती थी | हरे सोने से भरे जंगलों में ग्वाले (चराहे) गाय, बकरियों को जंगल में चराने ले जाते थे | नौले-गदेरों में गांव की ताई, चाची, भाभी, बहन कपड़े धोने, ठंडा पानी भरने आया करती थी | गांव की गलियों में नन्हें-नौनिहाल का शोर गूंजता था | यदि आपसी मतभेद हटा दिए जायें तो सच पहाड़ की खुशहाली की परिकल्पना की जा सकती है |
खैर, अब तो पहाड़ बांझ हो गया है यहां तक कि बांझ के जड़ो में भी पानी रिसना बंद हो गया है | वो भी इस कदर जैसे कोई नव-विवाहित नारी की गोद शादी के 2 दशक बाद भी सूनी हो | पहाड़ का पानी और जवानी दोनों पहाड़ को छोड़ मैदानों में स्थिर रह गये हैं |
हाल सरकार के बैनर तले “ पलायन आयोग “ द्वारा जारी रिपोर्ट पढ़ी जाये तो मात्र “ पलायन आयोग “ ही नहीं बल्कि अब तक तक सभी सरकारें और उनके वजीर-ए-आलाओं ने पहाड़ को मात्र ठगने और छलने के अलावा कुछ नहीं किया |
ऊँचे पहाड़ की वक्ष से गंगा-यमुना जैसी सदानीरा नदियों के उद्गम से मैदानी या किनारे बसे गांव भी पलायन के प्रेत से असुराक्षित हैं | रिपोर्ट के अनुसार ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2011 के बाद निर्जन हुए 734 गांवों में से 399 में एक किलोमीटर की परिधि में पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं थी। ऐसे में लोगों ने वहां से पलायन करना ही मुनासिब समझा और समय दर समय पलायन किया | इनमें पौड़ी जिले के सर्वाधिक 97 गांव शामिल हैं जो कि मात्र खंडरमयी इतिहासी पन्नों के गवाह बन चुके हैं । इसमें भी पौड़ी के कोट विकासखंड में सर्वाधिक 22 गांव शामिल हैं। वहीं, पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट ब्लाक में ऐसे गांव की संख्या 35 है, बागेश्वर के गरुड़ में 29, चंपावत के चंपावत ब्लाक में 22 है। यदि पहाड़ में गांव-गांव जाकर प्रदेश में पेयजल के हालात का जायजा लेना हो तो, राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (एनआरडीडब्ल्यूपी) की रिपोर्ट इसे बयां करती है कि राज्य के 39202 गांव-मजरों में से 21363 को ही पानी नसीब है। शेष 17839 में पीने को पर्याप्त पानी उपलब्ध नहीं है। इन गांव-मजरों के आसपास के पेयजल स्रोत या तो सूख चुके हैं और जहां पेयजल योजना बनी वहां यह योजनाएं बेअसर साबित हुई और हो भी रही हैं । ऐसे में हलक तर करने को पानी जुटाना लोगों के सामने एक बड़ी चुनौती है। इसी कारण से आम-जन इससे पार पाने के लिए लोग गांव छोड़ सुविधाजनक स्थानों की ओर पलायन कर रहे हैं।
Regards
HIMANSHU PUROHIT
Writing Journalist
(Freelancer)
himanshupurohit47@gmail.com
14.5.18
वीरान सूखते पहाड़ों में बूंद- बूंद को तरसते गांव
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