अमरीक-
शेष देश की मानिंद पंजाब में भी बसंत पंचमी का पर्व बेहद उत्साह के साथ मनाया जाता है। नए साल के आगाज के साथ ही बसंत का आगमन भी शुरू हो जाता है। जिस दिन आकाश साफ होता है, उस दिन चौतरफा पतंगे ही पतंगे दिखाई देती हैं। गोया बादलों की जगह पतंगों ने ले ली हो। इस बार भी ऐसा ही आलम है। वैसे, बसंत पंचमी 26 जनवरी को है लेकिन इसकी धूम अभी से है। इधर के कुछ सालों में बसंत पंचमी खुशियां ही नहीं, मातम भी दे रही है। पतंगबाजी के लिए होने वाले प्लास्टिक डोर ने कहर बरपा रखा है। प्लास्टिक डोर को पंजाब में 'चीनी मांझा' भी कहा जाता है और इस पर कानूनन सरकारी प्रतिबंध है। लेकिन फिर भी इसका आतंक समूचे सूबे के चप्पे-चप्पे में तारी है। अपने आप में यह आतंकवाद की शक्ल अख्तियार कर चुका है। प्लास्टिक डोर अथवा चीनी मांझे की की चपेट में जो भी आता है, वह गंभीर रूप से जख्मी एवं लहूलुहान हो जाता है। ऐसे-जैसे उस पर नुकीले या तीखे खंजर से बदस्तूर सैकड़ों वार किए गए हों।
पिछले हफ्ते का वाकया है। राज्य के जिला लुधियाना के समराला में एक मासूम बच्चे के चेहरे और गर्दन से प्लास्टिक डोर लिपट गई थी। वह बच्चा सनी कार में अपने अभिभावकों के साथ जा रहा था और एक जगह खिड़की से सिर निकालकर उसने हो रही पतंगबाजी को देखना चाहा तो चीनी मांझे ने उस पर 'हमला' कर दिया। आकाश से टूट कर गिरी डोर ने उसे ऐसा जख्मी किया कि पहले उसे लहूलुहान अवस्था में स्थानीय अस्पताल ले जाया गया और उसके बाद राज्य के सबसे बड़े अस्पताल माने जाने वाले डीएमसी में भेज दिया गया। स्थानीय डॉक्टरों को आशंका थी कि इतना लहू बहने के बाद बच्चा बचेगा नहीं लेकिन डीएमसी में उसे 100 से ज्यादा टांकें लगाकर बचा लिया गया। उसकी आंखें भी जख्मी है और चेहरा पूरी तरह क्षत-विक्षत हो गया है। डॉक्टरों और अभिभावकों के मुताबिक पीड़ित बच्चे को ठीक होने में महीनों लग जाएंगे। इसी 23 जनवरी को जालंधर में एक एक्टिवा सवार युवा अभिषेक पर यह प्लास्टिक डोर टूटी और उसे सिर तथा चेहरे पर 72 टांकें लगाकर पीजीआई चंडीगढ़ रेफर किया गया क्योंकि उसकी आंखों की स्तिथि बहुत नाजुक हो गई थी। इसी दिन अमृतसर में रोशनी नामक सोलह साल की बच्ची भरे बाजार में चीनी मांझे की चपेट में आई और उसे बचाने के लिए तकरीबन 60 टाकें लगाए गए। प्लास्टिक सर्जरी के लिए उसे दिल्ली भेजा गया है। 22 जनवरी को कपूरथला के सुलतानपुर लोधी में 75 साल के एक वृद्ध पर प्लास्टिक डोर का कहर टूटा और आकस्मिक हुए इस हमले और अपना बहता खून देखकर उन्हें उसी वक्त हार्ट अटैक हो गया और मौके पर ही मौत को हासिल हो गए। फाजिल्का के गांव में युवा सतीश की जान भी प्लास्टिक डोर की चपेट में आने के बाद हुई। अबोहर में एक युवती को चीनी मांझे ने पिछले हफ्ते जख्मी किया था और उसका पूरा चेहरा इसकी जद में आ गया था। प्राथमिक इलाज के बाद उसे बठिंडा में एक बड़े प्राइवेट अस्पताल में भेजा गया जहां तकरीबन 80 टांकें लगे।
वह युवती ब्यूटी पार्लर के यहां जा रही थी। संवरने के लिए। इसलिए कि 22 जनवरी को उसकी शादी थी। अब शादी टूट गई है। क्योंकि डॉक्टरों का कहना है कि लंबे इलाज के बाद प्लास्टिक सर्जरी होगी। लेकिन निशान ताउम्र रहेंगे। होशियारपुर के मुकेरियां में भी ऐसा ही एक मामला सामने आया है कि चीनी मांझे ने कुछ दिन बाद दुल्हन बनकर ससुराल जाने वाली एक लड़की के चेहरे को बेतहाशा जख्मी कर दिया। पहले उसे जालंधर लाया गया और फिर लुधियाना भेज दिया गया। हासिल जानकारी के मुताबिक उसे 72 टाकें लगाए गए हैं और उसकी मानसिक स्थिति में पागलपन के लक्षण इस हादसे के बाद आ गए हैं। खुद घर वालों ने उसकी होने वाली ससुराल में जाकर, हालात बताए और रिश्ता तोड़ दिया। मोहाली में दस साल के एक बच्चे को पीजीआई में 50 से ज्यादा टांकें लगे। फरीदकोट का 14 वर्षीय रिपुदमन सिंह की एक आंख की रोशनी हत्यारी डोर ने छीन ली। इसी तरह फगवाड़ा में प्लास्टिक डोर से जख्मी हुईं एक अधेड़ महिला की आंखों पर वार हुआ और वह पीजीआई में जेरे-इलाज हैं। इन्हें आप तमाम घटनाओं, 'दुर्घटना' लिखना ज्यादा मुनासिब होगा, का प्लास्टिक डोर के इस्तेमाल की वजह से सिलसिलेवार हो रहीं सिर्फ 20 फ़ीसदी कह सकते हैं। जैसे-जैसे बसंत पंचमी का दिन करीब आ रहा है वैसे-वैसे प्लास्टिक डोर अथवा चीनी मांझे का कहर व आतंक बेतहाशा बढ़ता जा रहा है और पंजाब में पतंगबाजी गर्मियों की शुरुआत तक जारी रहती है और तब तक हादसों-दुर्घटनाओं का यह दौर भी, जो अब बाकायदा अपने किस्म के एक आतंकवाद की शक्ल अख्तियार कर चुका है। अब यह सामाजिक विसंगति का मसला नहीं रहा बल्कि कानून- व्यवस्था से वाबस्ता हो चुका है।
प्लास्टिक डोर अथवा चीनी मांझा आसमान से कहर बनकर टूटता है। यकीनन कानून-व्यवस्था के हाथ इतने लंबे नहीं कि आकाश तक जा सकें। इस डोर के जरिए पतंगबाजी करने वाले साफ इसलिए बच जाते हैं कि यह पता लगाना लगभग नामुमकिन है कि धरती से उड़ाकर आकाश तक पहुंचाई गई डोर किन हाथों से संचालित होती है और कहां? यह डोर मीलों लंबा फासला तय करती है और जब पतंगबाजी मुकाबले में टूटती है तो हिस्सा कोई दूसरा होता है। पता नहीं चल पाता कि इस डोर के जरिए पतंग कहां से और किसने उड़ाई, जो टूटने के बाद कहर का सबब बनी। इस पर पूरे पंजाब में कानूनी पाबंदी आयद है। निचली अदालतों से लेकर यह मामला हाईकोर्ट तक जा चुका है और अंतिम फैसला यही सुनाया जाता रहा है कि उड़ाने और बेचने वाले, दोनों दोषी हैं और कानूनी दृष्टि से गुनाहगार।
तकनीकी कारणों से पुलिस बहुधा डोर बेचने वालों पर ही शिकंजा कसती है। प्रतिबंध और प्लास्टिक डोर अथवा चीनी मांझा रोकने के लिए पुलिस आए दिन छापेमारी करती है। कुछ लोग पकड़े भी जाते हैं लेकिन मुनाफे के लिए किया जा रहा यह हत्यारा धंधा फिर भी फल फूल रहा है। राज्य पुलिस मुख्यालय में तैनात आईजी सुखचैन सिंह गिल (जो पंजाब पुलिस के मुख्य प्रवक्ता भी हैं) कहते हैं, "पंजाब में चीनी डोर बेचने वालों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जा रही है और बड़े पैमाने पर ऐसे लोगों को गिरफ्त में लिया गया है जो पाबंदी के बावजूद इसे बेच रहे हैं। इसी साल 176 एफआईआर इस बाबत विभिन्न थानों में दर्ज की गईं और तकरीबन 200 लोगों की गिरफ्तारी हुई। इस डोर के खिलाफ बड़े पैमाने पर अभियान चलाया जा रहा है और जिलों में तैनात आला पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे अपने इलाकों में प्लास्टिक डोर न बिकने दें। जो बच्चे खरीदते हैं, उनके अभिभावकों पर भी कानूनी कार्रवाई की जाए।" जबकि सूबे के वरिष्ठ पत्रकार जतिंदर पन्नू के अनुसार, "यह कानून- व्यवस्था का मामला तो है ही। सामाजिक जवाबदेही का मामला भी है। आखिर लोग इतने हादसों के बावजूद क्यों नहीं चेतते और खुद आगे आकर इस डोर का बहिष्कार नहीं करते? वे अभिभावक भी दोषी हैं जो सब कुछ जानते हुए भी अपने बच्चों को इस डोर के इस्तेमाल से नहीं रोकते।" पंजाब के एक अन्य प्रमुख पत्रकार हरजिंदर सिंह लाल का कहना है कि, "लोगों को जागरूक करके इस फैलती अलामत को रोका जा सकता है।" जालंधर के एडवोकेट और बार कासिंल के सह सचिव एडवोकेट भूपेंद्र सिंह कालड़ा के मुताबिक, "प्लास्टिक डोर अथवा चीनी मांझा से अगर किसी को शारीरिक नुकसान पहुंचता है तो वह पुलिस के पास जाकर हत्या के प्रयास का मामला भी दर्ज करवा सकता है। कानूनन पुलिस भी इस धारा के तहत केस दर्ज कर सकती है।"
गौरतलब है कि प्लास्टिक डोर के बढ़ते आतंक और खून खराबे के इल्जाम में इसका (पतंग उड़ाने के लिए) इस्तेमाल करने वाला कोई भी शख्स कभी भी नहीं पकड़ा गया। पुलिस के गिरफ्त में इसे बेचने वाले आते हैं। जिन पर सरकारी आदेश के उल्लंघन के दोष में धारा-188 के तहत कार्रवाई की जाती है और अधिकांश मामलों में मौके पर ही जमानत भी दे दी जाती है। आमतौर पर छूटने के बाद दोषी फिर यह घातक डोर बेचने लगता है। जबकि सूबे भर से यह मांग उठ रही है कि खूनी डोर बेचने वालों के खिलाफ धारा-188 की बजाय भारतीय दंड संहिता की धारा 307 के तहत कार्रवाई की जाए। पंजाब विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा के अनुसार, "कानून-व्यवस्था के लिहाज से प्लास्टिक डोर की बिक्री और इस्तेमाल एक गंभीर मामला है। इसके खिलाफ और ज्यादा सख्त कानून अमल में लाया जाना चाहिए। मैं विधानसभा में यह मुद्दा उठाऊंगा।" मानसा जिला के बुडलाडा विधानसभा हलके से आम आदमी पार्टी विधायक और पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रिंसिपल बुधराम का कहना है कि लोग खुद आगे आकर पुलिस का सहयोग करें और प्लास्टिक डोर बेचने वालों के बारे में पुख्ता सूचना दें।
पंजाब के अनेक पतंग-डोर का कारोबार करने वाले कारोबारियों ने बताया कि कुछ साल पहले तक कच्ची डोर के जरिए पतंगें उड़ाईं जाती थीं और इससे किसी को कोई नुकसान नहीं होता था। सौहार्द के इस खेल को मुक्त व्यापार व्यवस्था ने बिगाड़ा। जब से चीन से प्लास्टिक डोर आने लगी, तब से कच्ची और सुरक्षित डोर बेचने वाले दुकानदारों के धंधे लगभग ठप हो गए। अमृतसर में पतंगों की डोर का कारोबार करने वाले निर्मल सिंह थिंद का कहना है, "चीनी डोर नायलॉन या सिंथेटिक धागे से बनती है और इसे बहुत ज्यादा धारदर बनाने के लिए रसायनिक पाउडर और अन्य धातुओं का इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए पतंगों के शौकीन लोग जोखिमों को नजरअंदाज करके इसे खरीदते हैं। फिर यह सस्ती भी होती है।" जालंधर के एक डोर विक्रेता विजय कुमार के अनुसार, "एक हजार मीटर की एक सामान्य सूती डोर की कीमत प्रति चरखी 400 रुपए होती है, जबकि ठीक इतनी ही कीमत पर चार हजार मीटर लंबी चीनी डोर की चरखी खरीदी जा सकती है। इसलिए भी लोग और बच्चे इसे खरीदने में तरजीह देते हैं।"
अब बाजार में इस हत्यारी प्लास्टिक डोर अथवा चीनी मांझा का दबदबा है। खरीदोफरोख्त करने वालों को इससे ज्यादा आर्थिक फायदा मिलता है। पहले परंपरागत कच्ची या सूती डोर पंजाब में बनाई जाती थी। उत्तर प्रदेश के बरेली की डोर भी खूब बिकती थी। लेकिन चीनी डोर ने कच्ची एवं सूती डोर बेचने वालों का धंधा तबाह कर दिया और कारीगर बेरोजगारी की दहलीज पर आ गए। पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी ठीक यही हालात हैं। एक सूत्र ने बताया कि वहां भारी मंदी के बावजूद बसंत को लेकर लोगों, खासकर लाहौर के बाशिंदों में जबरदस्त उत्साह का आलम है लेकिन बाजार पर कब्जा चीनी डोर का ही है। खुले व्यापार के दौर में अमृतसर और जालंधर से सूती डोर पाकिस्तानी पंजाब जाती थी लेकिन यह सिलसिला बीते चार साल से पूरी तरह बंद है। अमृतसर के एक थोक व्यापारी का कहना है कि हिंदुस्तान में ही देसी डोर के दिन पूरी तरह लदते जा रहे हैं तो आयात-निर्यात की बात करना ही बेकार है।
बहरहाल, बड़ा मसला इंसानी जिंदगीयों से खिलवाड़ का है। प्लास्टिक डोर अथवा चीनी मांझा रोज न जाने कितने लोगों को जख्मी करता और मारता है। फिर भी धड़ल्ले से इसका इस्तेमाल हो रहा है। पतंगबाजी हमारी संस्कृति का अहम हिस्सा है लेकिन अब उस पर 'खूनी रंग' चढ़ गया है। इंसान ही नहीं परिंदे भी जख्मी होकर मर रहे हैं। रिश्ते टूट रहे हैं और घायलों के इलाज में घर तक बिक रहे हैं। यह कैसी मानवविरोधी मुनाफाखोर अपसंस्कृति है? विचारणीय सवाल है!
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