सत्येंद्र कुमार-
आज जब मोबाइल स्विच ऑन किया तो गणतंत्र दिवस पर औपचारिकता वश दी जाने वाली बधाईयों से व्हाट्सएप्प पटा पड़ा मिला । मन हुआ की पूछ लूँ इन भेड़ चाल वालों से की भाई ये कैसी है बधाई, जब आज तक गणतंत्र की बात ही तुम्हे समझ नही आई !
अभी तक हमे यही पढ़ाया और बताया गया है कि गणतंत्र दिवस जनता के लिए है । गणतंत्र का मतलब जनता का तंत्र ! पर इस गणतंत्र में मेहनतकश जनता की स्थिति किसी से छिपी नही है । गण का मतलब जन समूह यानी जो शासन जनता द्वारा जनता के लिए हो ।
26 जनवरी के दिन शासक वर्ग गणतंत्र दिवस के रूप में मनाता है और जनता पर इसे राष्ट्रीय त्योहार के रूप में थोप दिया जाता है । ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 2021 के अनुसार 116 भूखमरी देशों की सूची में भारत 101 पायदान पर है मतलब नेपाल पाकिस्तान बांग्लादेश से भी पीछे ! हैप्पीनेस इंडेक्स 2022 में 46 देशों की लिस्ट में 36 रैंक पर है । आज भी देश के 80 करोड लोग 5 किलो राशन पर निर्भर है । देश की 80 प्रतिशत जनता आज भी संतुलित भोजन नहीं ले पाती । कईयों को तो मालूम ही नहीं कि संतुलित भोजन होता क्या है !
सभी के लिए सस्ता और सुलभ न्याय की बातें तो सभी करते हैं लेकिन आज भी हइकोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट में वकीलों की फीस भरकर न्याय पाना गरीबों के लिए दिवास्वप्न जैसा है ।
अंग्रेजी हुकूमत में भी हुकूमत के खिलाफ बोलने पर जनता को प्रताड़ित किया जाता और जेल में डाल दिया जाता था । हमने भी आजाद भारत मे कई ऐसी सरकारें देखी हैं जिसने अपने खिलाफ बोलने वालों को अंग्रेजी हुकूमत की तरह ही प्रताड़ित किया है । बस फर्क सिर्फ इतना है कि आजादी के बाद यह संविधान के दायरे में रहकर किया जाता रहा है ।
संविधान का अनुच्छेद 19ए हमे बोलने की स्वतंत्रता तो देता है पर वहीं 19बी में कंडीशन लगाकर बोलने की आजादी छीन लेता है ।
आजाद भारत में इमरजेंसी काल से लेकर आज तमाम ऐसे मामले देखने को मिले हैं जिसमें प्रेस की स्वतंत्रता को कुचल कर रख दिया गया ।
गणतंत्र दिवस के इस मौके पर अवतार सिंह पाश की चंद पंक्तियां प्रासंगिक है -
"संविधान
यह पुस्तक मर चुकी है
इसे मत पढ़ो
इसके लफ्जों में मौत की ठंडक है और एक एक पन्ना
जिंदगी के अंतिम पल जैसा भयानक
यह पुस्तक जब बनी थी
तो मैं एक पशु था
सोया हुआ पशु
और जब मैं जागा
तो मेरे इंसान बनने तक
ये पुस्तक मर चुकी थी
अब अगर इस पुस्तक को पढ़ोगे तो पशु बन जाओगे
सोए हुए पशु"
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