Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

31.1.23

मौर्य के बयान पर अखिलेश के रूख से धर्म संकट में फस सकती है भाजपा

KP Singh-

स्वामी प्रसाद मौर्य के मुददे पर मनोज पाण्डेय एण्ड कम्पनी के दबाव को नकारकर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव उन्हें पार्टी से बाहर करने की बजाय उनके साथ खडे हो गये हैं। यहां तक कि अपने चाचा शिवपाल यादव की राय को भी उन्होने दरकिनार कर दिया है। शनिवार को स्वामी प्रसाद से मुलाकात के बाद ही उन्होंने इसे जाहिर कर दिया था, एक दिन बाद तो उन्होंने स्वामी प्रसाद मौर्य का कद पार्टी में बढाकर उन्हें इनाम दे डाला है जो पुनरूत्थानवादियों को चिढाने जैसा है।

      
दलितों और पिछडों के सम्मान के मुददे पर अखिलेश यादव ने हार्डकोर लाइन अख्तियार कर ली है जिससे पार्टी की एक लाॅबी मंे नाराजगी फैल सकती है जिसकी शायद अब वे परवाह नहीं करना चाहते है। अखिलेश यादव ने समझ लिया है कि पार्टी के दूरगामी हितों के लिये दलितों और पिछडों के सम्मान के मुददे पर सबको साधने की नीति की बजाय अडियल रूख ही अपनाना होगा। अभी तक नैरेटिव गढने की पहल भाजपा हथियाये हुये थी लेकिन अखिलेश के इस पैंतरे से यह पहल उनके हाथ में आ गयी है और वे इसके जरिये भाजपा को बैकफुट पर जाने के लिये मजबूर होने का अनुमान लगा रहे हैं।
     
एक समय जब उनके पिता और सपा के संस्थापक स्व0 मुलायम सिंह यादव राजनीतिक रसातल में पहुंच चुके थे तब उन्होने भी अपने पुनरूद्धार के लिये बसपा से समझौता करके इसी मुददे पर कटटर लाइन अख्तियार की थी लेकिन बसपा से समझौता टूटने पर वे भटक गये और तथाकथित भद्र समाज को सम्मोहित करने के चक्कर में बाबा साहब अम्बेडकर को गालियां तक दे चुके थे। यह भटकाव उन्होंने मण्डल आयोग की रिपोर्ट लागू होने के बाद बनी राजनैतिक परिस्थितियों में भी दिखाया था जिसके कारण वह जीवन के अंत तक प्रधानमंत्री बनने का अपना स्वप्न साकार होते नहीं देख पाये। अगर उन्होंने वीपी सिंह के प्रति निजी चिढ को दर किनार कर चन्द्रशेखर के साथ जाकर जनता दल तोडने की बजाय पार्टी की एकता को बनाये रखा होता तो अन्ततोगत्वा उनका प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंच जाना तय था।
       
बाद में सामाजिक मुददे पर अपनी नादानी उन्होने अखिलेश पर भी उडेल दी जिससे 2012 में मुख्यमंत्री बनने के बाद अखिलेश ने पदोन्नत दलित अधिकारियों को रिवर्ट करने जैसे प्रतिगामी कदम उठाये पर इससे उन्हें सवर्णो का आशीर्वाद भी नहीं मिल पाया और दलित तो छिटक ही गये । 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा के चुनावों के परिणामों ने जब उनके ज्ञानचक्षु खोले तो उन्होंने अपनी लाइन बदली और 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा के साथ गठबंधन करके जोर आजमाइश की लेकिन मायावती के अहंकार और राजनीतिक अपरिपक्वता के कारण इस लाइन पर आगे बढने में चुनाव परिणामों के बाद रूकावट आ गयी लेकिन अखिलेश यह समझ चुके थे कि यही लाइन आखिर में भाजपा के अश्वमेध के घोडे को रोक पायेगी।
      
अखिलेश से मुलाकात के बाद राम चरित मानस को लेकर स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपने बयान को संशोधित किया है जिससे उनका समर्थन करने में अखिलेश यादव को अब ज्यादा सुविधा हो गयी है। मौर्य ने सभी धर्मो का सम्मान करने और स्वयं को सनातनी ही बताने की बात जोड दी है। पहले उन्होने कहा था कि राम चरित मानस बकवास है और इस पर प्रतिबंध लगना चाहिये लेकिन अब उन्होने कहा कि वे राम चरित मानस को पूरी तरह खारिज नहीं कर रहे हैं पर इसमें दलितों और पिछडों के लिये जो अपमान जनक चैपाइयां या दौहे है उन्हें तो बदलना ही होगा।
       
ध्यान देने वाली बात यह है कि इसमें कोई नई बात नहीं है। खुद गोस्वामी तुलसीदास के समय कबीर दास और संत रविदास राम को अपना आराध्य मानकर भी उन्हें और उनके द्वारा प्रस्तुत राम को नकारते रहे और इसके कारण कोई ऐसा विवाद नहीं हुआ जिससे कबीरदास और रविदास को भी हिन्दू समाज महान संत मानने से हिचकता । यहां तक कि सांतवे आठवें दशक में सरिता मुक्ता जैसी बहु प्रसारित पत्रिकायें छापने वाले दिल्ली प्रेस के सम्पादक विश्वनाथ ने हिन्दू समाज के पथ भ्रष्टक शीर्षक से सीरीज छापी और इसे पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जिसके संस्करण अभी भी छप रहे हैं। लेकिन उन्हें लेकर भी कोई बडा बबाल नहीं हुआ । दूसरी ओर इसके कारण रामचरित मानस की स्वीकार्यता भी कहीं प्रभावित नहीं हुयी ।
      
हिन्दू समाज में आम तौर पर रामचरित मानस को पूज्य ग्रंथ माना जाता है लेकिन इसकी जातियों के संबंध में नसीहतें व्यवहारिक रूप से मान्य नहीं है। यहां तक कि संघ परिवार भी अमल में उसकी नसीहतों से इतर रूख अपनाये हुये है। अयोध्या में जब रामलला मंदिर का जब शिलान्यास हो रहा था तो संघ के हस्तक्षेप से पहली ईट एक दलित से रखवायी गयी थी जबकि रामचरित मानस की चैपाइयां अगर व्यवहारिक जीवन में स्वीकार होती तो यह कदापि संभंव नहीं होता। रामचरित मानस में भले ही कहा गया हो कि शूद्र कितना भी गुणी क्यों न हो आदर का पात्र नहीं हो सकता पर देश में राष्ट्रपति से ज्यादा बडा आदर का पद तो कोई नहीं है लेकिन जानबूझकर इस पार्टी की सरकार में जो दो राष्ट्रपति बने हैं वे शूद्र समाज से ही आये है और भाजपा ने बहुत गर्व से इसे प्रचारित भी किया ।
        
अटल जी की सरकार में डा0 मुरली मनोहर जोशी मानव संसाधन विकास मंत्री थे जो अत्यन्त कुलीन पहाडी ब्राम्हण मानें जाते हैं पर उनमें रामचरित मानस का निरंतर पाठ करने के बाबजूद अनुसूचित जातियों के लिये कोई पूर्वाग्रह नहीं था जिसका प्रमाण यह है कि उन्होंने अनुसूचित जाति के छात्रों को संस्कृत शिक्षण संस्थाओं में पौरोहित्य कर्मकाण्ड में प्रवीण बनाने के लिये विशेष व्यवस्थायें की थी। यहां परम्परागत धर्म और रूढियों के बजाय युग धर्म के अनुकूल व्यवस्थाओं की ओर अग्रसरता का भाव झलकता है जो सहज है।
      
बहरहाल भाजपा की धार्मिक राजनीति के मोहपाश से दलितों और पिछडों को मुक्त कराने के लिये अखिलेश यह दांव चलने की पूरी तैयारी कर चुके हैं जिसकी वजह से ही स्वामी प्रसाद के कथन पर रक्षात्मक होने की वजाय उन्होने आक्रामक मुद्रा अपना ली है जो भाजपा को बहुत धर्म संकट में डाल सकती है। अगर उसने स्वामी प्रसाद मौर्य का बहुत ज्यादा प्रतिवाद किया तो दलित और पिछडों में ऐसी जागरूकता पैदा होगी जिससे उसका जनाधार चूर चूर हो जाये। इसलिये हो सकता है कि भाजपा अब इसे ठण्डे बस्ते में डालने में ही गनीमत समझे पर अखिलेश पूरी रणनीति बनाये हुये है ताकि इसमें निरंतरता बनायी रखी जा सके। स्वामी प्रसाद मौर्य को राष्ट्रीय महा सचिव बनाकर जाति आधारित जनगणना की मांग के आंदोलन को आगे बढाने की कमान उन्हें सौंपने में यह रणनीति स्पष्ट दिखायी दे रही है।

 
K.P.Singh  
Distt - Jalaun (U.P.) INDIA Pincode-285001
Whatapp No-9415187850
Mob.No.09415187850

No comments: