भड़ासियों की संख्या जिस कदर बढ़ती जा रही है उसे देखते हुए मेरे एक मित्र ने मजाक किया कि आने वाले समय का सबसे सक्रिय और आक्रामक और सच्चा मीडिया दस्ता बनेगा भड़ास। भड़ास जिसे एजेंडे पर ले लेगा उसे कायदे से निपटायेगा। भड़ास जिस मुहिम को लेकर चलेगा, उसे सफल करायेगा। उनके मजाक का आशय था कि अच्छे लोगों का एक जबर्दस्त ग्रुप जो हर तरह के चूतियापे, कुंठा, असुरक्षाबोध, हीनभावना, मठाधीशी, मक्खनबाजी आदि की ऐसी तैसी करने में सक्षम होगा और चूतियों को उनकी औकात में रखने का माध्यम बनेगा।
पर मैं मित्र के इस कथन से असहमत भी हूं और सहमत भी। असहमत इसलिए कि आज के दौर में भड़ास कोई क्रांति नहीं करने जा रहा और न ही इससे क्रांति की अपेक्षा की जानी चाहिए। भड़ास निकाल पाना अपने आप में एक बड़ी परिघटना है जिससे बुरे लोग खुब ब खुद सचेत हो जाते हैं और अच्छे लोग खिल खिल जाते हैं।
तो बंधु, बस मन की गांठें खोलिए और देखिए किस तरह चीजें आसान हो जाती हैं। हो सकता है, शुरुआत में इससे थोड़ी दिक्कत भी महसूस हो क्योंकि जो लोग अपनी भड़ास नहीं निकाल पाते वो भड़ास निकालने वालों को डराते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि वो खुद असुरक्षा बोध से ग्रस्त होते हैं और दूसरों को भी इसी दायरे में जीते देखना चाहते हैं। लेकिन आप एक बार अपने असुरक्षाबोध को जीत लीजिये, फिर देखिए, दुनिया आपके कदमों में होगी।
खैर, यहां भाषण देने का मूड नहीं। बस यह बताने का कि भड़ासियों की संख्या अब 163 हो चुकी है। ये जो 12 नए भड़ासी बढ़े हैं, उनका हृदय से स्वागत, साथ में अनुरोध कि भड़ास निकालते रहें, कूड़ा कबाड़ा दिल दिमाग से घटाते रहें। ताकि जीवन और दुनिया जीने लायक बन सके। अभी तो जो हालत है उसमें आदमी वो कहता नहीं, जिसे करता है और आदमी वो करता नहीं जिसे कहता है। इस उलटबांसी को बदलना है। जो दिखो, जो सोचो, वो कहो, वो करो।
दरअसल, मनुष्य बहुत सहज चीज बनकर पैदा होता है जिसे सिस्टम धीरे धीरे इतना हरामी और पक्क्वाला बना देता है कि वो जीने के मायने भूल जाता है। इतना धूर्त, इतना फर्जी, इतना चूतिया बन चुका होता है कि उसे अपने अंदर झांकने का वक्त ही नहीं मिलता। सोते, उठते, जागते, घूमते, आफिस में, घर में, दोस्तों में,.....हर जगह वह झूठ जीने लगता है और फिर झूठ को ही असल जीवन और सच को किताबी बातें मानने लगता है।
ऐसे में हम भड़ासी दरअसल इन्हीं चूतियों को, जो मीडिया में तो भरपूर मात्रा में हैं, हमारे आपके गली मोहल्ले में भी अड़ोस पड़ोस में भारी संख्या में मिल जाएंगे, को फिर से जीने का ककहरा सिखना होगा और खुद भी सीखना होगा।
इसका पहला चरण भड़ास निकालना है। जब हम भड़ास निकालते हैं तो अपने अंदर की सच्चाई को साहस के साथ बाहर लाने की कोशिश करते हैं। अंदर की कुंठा को बाहर लाकर खुद को कुंठामुक्त करते हैं। और इससे शुरू होती है साहस, सहजता और सच को पूरी सुंदरता के साथ समझने और जीने की यात्रा।
मक्रर संक्रांति और लोहरी की शुभकामनाओं-बधाइयों के साथ अपने नए भड़ासी मनोज के जन्मदिन पर बधाई। मनोज ने अपनी पोस्ट में अपना जन्मदिन आज होने की बात कही है और साथ में ये भी कि वो कार्टूनिस्ट हैं, अब शब्दों से भड़ास निकालना चाहते हैं। आपका स्वागत है।
जय भड़ास
यशवंत
15.1.08
कूड़ा कबाड़ा दिल दिमाग से निकालिये, आदमी बनिये
Posted by यशवंत सिंह yashwant singh
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1 comment:
बस यह बताने का कि भड़ासियों की संख्या अब 163 हो चुकी है।
ओमिगोश! हे ईश्वर !!
चलिए, अब मान ही लेते हैं कि भड़ास - हिन्दी ब्लॉगिंग के लिए एक बड़ी घटना है.
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